हमारे देश में सरसों की खेती रबी के सीजन में की जाती है. इसकी खेती के लिए खेतों की अच्छी जुताई के साथ-साथ सिंचाई की अच्छी व्यवस्था भी होनी चाहिए. बाजार में आजकल विभिन्न प्रकार की सरसों की किस्में मिलती हैं. ऐसे में नवगोल्ड भी सरसों की एक खास किस्म की फसल हैं, जिसकी खेती कर आप कम मेहनत में ज्यादा उत्पादन कर सकते हैं. आइये आज हम आपको इस नई किस्म की खेती के तरीकों के बारे में बताते हैं.
तापमान (Tempreture)
नवगोल्ड किस्म के सरसों का उत्पादन 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के तापमान में किया जाता है. इसकी खेती सभी तरह की मृदाओं में कई जा सकती है, लेकिन बलुई मिट्टी में इसका उत्पादन अच्छा होता है. इसके बीज की बुआई बीजोपचार करने के बाद ही करें, जिससे पैदावार काफी बेहतरीन होती है.
मिट्टी (Soil)
नवगोल्ड किस्म के सरसों की खेती के लिए सबसे पहले खेत को रोटावेटर से जोत लें और पाटा की मदद से समतल कर लें. यह ध्यान रखें कि समतल मैदान में ही सरसों के पौधों का विकास अच्छी तरह से हो पाता है.
फसल में सिंचाई (Irrigation )
नवगोल्ड किस्म के बीजों का निर्माण नई वैज्ञानिक विधि द्वारा किया जाता है. इस फसल को पूरी खेती की प्रक्रिया में बस एक बार ही सिंचाई की आवश्यकता होती है. फसल में सिंचाई फूल आने के समय ही कर देनी चाहिए.
खाद और उर्वरक (Fertilizer)
इस किस्म के बीजों के लिए जैविक खाद का उपयोग बेहतर माना जाता है. इसकी खेती के लिए गोबर के खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश की मात्रा को बैलेंस रखना चाहिए.
ये भी पढें: सफ़ेद प्याज को मिला GI टैग, खेती करने वाले किसानों को होगा जबरदस्त फायदा
खरपतवार का नियंत्रण (Weed Protection)
सरसों की खेती के लिए इसके खेत को समय-समय पर निराई और गुड़ाई की आवश्यकता होती है. बुवाई के 15 से 20 दिन बाद खेत में खर पतवार आने लगते हैं. ऐसे में आप खरपतवार नाशी पेंडामेथालिन 30 रसायन का छिड़काव मिट्टी में कर सकते है. इसके अलावा अगर इसमें लगने वाले प्रमुख रोग आल्टरनेरिया, पत्ती झुलसा, सफ़ेद किट्ट, चूणिल और तुलासिता जैसे रोग लगते हैं तो आप फसलों पर मेन्कोजेब का छिड़काव कर सकते हैं. नवगोल्ड किस्म के सरसों में आम किस्म की तुलना में ज्यादा तेल का उत्पादन होता है और इसकी खेती के लिए भी ज्यादा सिंचाई और मेहनत की जरुरत नहीं पड़ती है.