देश में किसानों के बीच औषधीय पौधों की खेती काफी तेजी से लोकप्रिय हो रही है सरकार भी एरोमा मिशन के तहत किसानों प्रोत्साहित कर रही है. नतीजन इन फसलों का रकबा भी बढ़ा है और अरंडी इन्हीं फसलों में शामिल है, जिसकी खेती कर किसान बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं. अरंडी की खेती औषधीय तेल के लिए की जाती है, इसका पौधा झाड़ी के रूप में विकास होता है. खेती व्यापारिक तौर पर अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से की जाती है, भारत अरंडी का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है, भारत अरंडी का निर्यात 60 से 80 प्रतिशत तक दुनिया के अन्य देशों को करता है. किसान अरंडी की खेती करके दोहरा लाभ कमा सकते हैं, फसल की पेराई से तेल निकाल कर बेच सकते हैं फिर बची हुई खली को खाद के रूप में बेच सकते हैं.
उपयुक्त जलवायु- अरंडी की खेती सभी तरह की जलवायु में हो सकती है फसल के लिए 20-30 सेंटीग्रेट तापमान की जरूरत होती है. अरंडी के पौधे की बढ़वार और बीज पकने के समय उच्च तापमान की जरूरत होती है. अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है क्योंकि इसकी जड़ें गहरी होतीं हैं जो सूखा सहन करने में सक्षम होती हैं पाला अरंडी की खेती को नुकसान पहुंचाता है.
भूमि का चयन- अरंडी की फसल के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है फसल पीएच मान 5-6 वाली सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती हैं. अरंडी की फसल ऊसर और क्षारीय मृदा में नहीं की जा सकती है, खेती के लिए खेत में जलनिकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये नहीं तो फसल खराब हो सकती है.
खेत की तैयारी- बेहतर उत्पादन के लिए सबसे पहले ट्रैक्टर से जोड़कर मिट्टी पलटने वाले हल से 2-3 बार जुताई करें, उसके बाद 2-3 जुताई कल्टीवेटर या हैरों से करें. फिर पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें. खेत में उपयुक्त नमी रहने पर ही जुताई करना चाहिए. खेत में नमी रहने पर जुताई करने से खेत की मिट्टी भुरभुरी और खरपतवार भी खत्म हो जाएगा. अब एक सप्ताह तक खेत को छोड़ देना चाहिए जिससे अरंडी की फसल की बुवाई करने से पहले कीट और रोग धूप में नष्ट हो जाते हैं.
बुवाई का तरीका- जुलाई और अगस्त महीने में बुवाई करना चाहिए. अरंडी की हाथ से और सीड ड्रिल की मदद से भी बुवाई कर सकते हैं. पर्याप्त सिंचाई की व्यवस्था होने पर फसल की बुवाई करते वक्त एक लाइन से दूसरी लाइन की दूरी एक मीटर या सवा मीटर रखें और एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी आधा मीटर रखना चाहिए. सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था न होने पर लाइन और पौधों की दूरी कम रखनी चाहिए. एक लाइन से दूसरी लाइन की दूरी आधा मीटर और एक पौधों से दूसरे पौधों की दूरी भी आधा मीटर होनी चाहिए.
सिंचाई- जुलाई अगस्त के मौसम में बुवाई करने पर डेढ़ से दो महीने तक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. जब अरंडी के पौधों की जड़ों का विकास अच्छी तरह से हो जाए और जमीन पर पौधा अच्छी तरह से पकड़ बना लें और जब खेत में नमी की मात्रा जरूरत से कम होने लगे तब पहली सिंचाई करें. इसके बाद प्रत्येक 15 दिन के अंतराल में बारिश न होने पर सिंचाई करें.
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लागत से ज्यादा मुनाफा- अरंडी के तेलों का निर्यात विदेशों में भी होता है बाजार में औसतन 5400 से 7300 रुपये प्रति क्विंटल तक के भाव पर किसानों से तेल की खरीद की जाती है. किसान एक हेक्टेयर में 25 क्विंटल तक तेल का उत्पादन करते हैं तो भी आराम से 1 लाख 25 हजार रुपये तक का मुनाफा हासिल कर सकते हैं.