सोमानी क्रॉस X-35 मूली की खेती से विक्की कुमार को मिली नई पहचान, कम समय और लागत में कर रहें है मोटी कमाई! MFOI 2024: ग्लोबल स्टार फार्मर स्पीकर के रूप में शामिल होगें सऊदी अरब के किसान यूसुफ अल मुतलक, ट्रफल्स की खेती से जुड़ा अनुभव करेंगे साझा! Kinnow Farming: किन्नू की खेती ने स्टिनू जैन को बनाया मालामाल, जानें कैसे कमा रहे हैं भारी मुनाफा! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 25 January, 2023 3:22 PM IST
काल मेघ की खेती

कालमेघ एक औषधीय पौधा है. इसे कडू चिरायता व भुईनीम के नाम से भी जाना जाता है. कालमेघ के विकास के लिए शुष्क जलवायु उपयुक्त मानी जाती है. यह एक शाकीय पौधा होता है, जिसकी ऊँचाई 1 से 3 फीट तक होती है. इसकी छोटी–छोटी फलियों में बीज लगते हैं, जो आकार में छोटे व भूरे रंग के होते हैं. इसका उपयोग आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और एलोपैथिक दवाईयों के निर्माण में किया जाता है. यह यकृत विकारों तथा मलेरिया रोग से निदान के लिए एक औषधी का काम करता है. खून साफ करने, जीर्ण ज्वर एवं विभिन्न चर्म रोगों को दूर करने में भी इसका उपयोग किया जाता है.

खेती का तरीका

जलवायु

इसको गर्म नम तथा पर्याप्त सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है. मानसून के समय इसकी काफी वृद्धि होती है. सितम्बर के समय जब मौसम न ज्यादा गर्म और न ही ठंडा होता है तब इसके पौधों पर फूल आने लगते हैं. फूल तथा फलियों का बनना दिसम्बर के मध्य तक होता है. दक्षिण भारत में इस तरह की जलवायु अक्टूबर से फरवरी या मार्च के बीच होती है, जो कालमेघ की खेती के लिए उपयुक्त होती है.

भूमि

मध्यम उर्वरता तथा उचित जल निकास युक्त बलुई दोमट, दोमट भूमि में इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है. इसको छायादार स्थानों पर भी उगाया जा सकता है. इसके खेत की तैयारी के लिए एक जुताई के बाद पाटा लगाकर भूमि को समतल कर देना चाहिए. इससे भूमि भुरभुरी भी हो जाती है.

खाद तथा उर्वरक

कालमेघ को कम तथा मध्य उर्वरता वाली भूमि में उगाया जा सकता है. मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए 10 से 15 टन सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग किया जा सकता है. कालमेघ को 80 किलो नत्रजन तथा 40 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर देने की आवश्यकता होती है, जिससे पौधों की वृद्धि अच्छी होती है तथा उपज भी बढ़ जाती है. नत्रजन की मात्रा को दो भागों में 30 से 45 दिन के अंतराल पर डालना चाहिए.

निराई-गुड़ाई

फसल के उचित रूप से बढ़ने हेतु एक या दो निकाई गुड़ाई की आवश्यकता होती है. मानसून के समय फसल पर्याप्त रूप से बढ़ती है तथा जमीन को घेर लेती है जिससे खरपतवार दब जाते हैं और निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है.

कटाई

कालमेघ के पेड़ 90 से 100 दिन के बाद जब अपनी पत्तियां गिराना शुरु कर दे तब इसकी कटाई शुरु कर देनी चाहिए. इसकी कटाई को 100 से 120 दिन तक का समय लग जाता है. यदि एकवर्षीय रूप में फसल को मई-जून में उगाया गया हो तो उसकी कटाई सितम्बर में करनी चाहिए. इसके लिए कृषि क्रियाओं का उचित प्रबन्ध आवश्यक है. जाड़ों के मध्य में फसल सुषुप्तावस्था में रहती है. फूल निकलने के समय पत्तियों में ऐंड्रोग्रफेलाइट की मात्रा अधिक होती है तथा यह पौधों के सम्पूर्ण भागों में पाया जाता हैं. इसलिए सम्पूर्ण पौधे के ऊपरी भाग को काट कर छाया में सुखाना चाहिए.

ये भी पढ़ेंः औषधीय पौधे कालमेघ की खेती कैसे करें, आइए जानते हैं पूरी जानकारी

पैदावार

कालमेघ की खेती में प्रति एकड़ 5 से 6 टन सूखी कालमेघ की उपज प्राप्त की जा सकती है. बाजर में इसकी कीमत 70 से 80 हजार प्रति टन कीमत है. जिसकी खेती कर आप अच्छी कमाई कर सकते हैं.

English Summary: Cultivation and Management of Kalmegh
Published on: 25 January 2023, 03:29 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now