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Updated on: 31 January, 2023 3:27 PM IST
कलिहारी की खेती

कलिहारी एक सुंदर आरोही पौधा है. इसकी पहचान सुंदर भड़कीले, लाल-पीले रंग के विशिष्ट प्रकार के पुष्पों में की जाती है. इसे संस्कृत में अग्निशिखा के नाम से भी जाना जाता है. इसके विशिष्ट आकृति, रंग विन्यास एवं सुंदरता के कारण इसे लोग गृह वाटिकाओं में भी लगाते हैं.

खेती का तरीका

मृदा

कलिहारी की खेती के लिए 6 से 7 pH मान की बलुई-दोमट मिट्टी उचित मानी जाती है. रोपण स्थल पर जल निकासी की अच्छी सुविधा होनी चाहिए. हालांकि इसे थोड़ी बहुत कंकरीली. पथरीली भूमि पर भी उगाया जा सकता है.

खेत की तैयारी

खेत में जून माह के प्रथम सप्ताह में गहरी जुताई कर 80 से.मी.के अंतराल पर मेड व नालियां बना लें. खेती की तैयारी के समय ही प्रति हेक्टेयर 15-20 टन गोबर खाद और 5 टन ढेंचा खाद (हरी खाद) एवं 10 टन वर्मीकम्पोस्ट का प्रयोग किया जा सकता है.

रोपणी

खेत में सीधे बीज बोकर कलिहारी की अच्छी फसल प्राप्त करना कठिन होता है क्योंकि एक वर्ष में पौधों में केवल प्रकंद ही तैयार हो पाते हैं. इनमें फूल, फल नहीं बन पाते हैं. अतः पहले रोपण में ही बीज बोकर खेत में प्रत्यारोपण हेतु प्रकंद तैयार कर लें. स्वस्थ एवं परिपक्व बीजों को क्योरियों में 10 से 15 से.मी. के अंतर पर बोना चाहिए. एक से दो वर्ष में पौधों में प्रत्यारोपण हेतु उपयुक्त आकार के (50-60 ग्राम वजन के) प्रकंद तैयार हो जाएंगे. यह ध्यान रखें कि प्रकन्द जितना स्वस्थ व वजनदार होगा, पौधा उतना ही अधिक वृद्धि करेगा.

प्रकंदों का प्रत्यारोपण

कलिहारी एक आरोही लता है तथा इसकी पत्तियों के सिरे पर घुमावदार सूत्राकार लता तंतु होते हैं जो सहारा मिलने पर तेजी से बढ़ते हैं. खेत में प्रत्येक कंद के पास बांस की डंडियां अथवा पेड़ों की सूखी टहनियां गाड़ देनी चाहिए ताकि उनके सहारे लता का आरोहण तेजी से हो सके.

सिंचाई

वर्षा में इसे सिंचाई को कम ही आवश्यकता होती है, परंतु कम वर्षा होने अथवा कंकरीली भूमि होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई की भी जरुरत पड़ती है. सिंचाई का ध्यान फूल आने पर विशेष रूप से देना होता है.

निराई-गुड़ाई

खेत को आवश्कतानुसार एक बार अच्छी तरह निंदाई-गुड़ाई करके वहां पर खरपतवार को निकाल देना चाहिए. ऐसा करते समय यह ध्यान रखा जाये कि इससे कलिहारी के पौधों को जरा भी नुकसान न पहुंचें.

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पैदावार

कलिहारी की खेती से प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष 200-300 किलोग्राम बीज एवं 150 से 200 किलोग्राम छिलके प्राप्त होते हैं. इसकी खेती के 4 से 5 वर्षों के अंतराल पर 3 से 4 टन सूखे प्रकंद भी प्राप्त किये जा सकते हैं.

English Summary: Cultivation and Management of Kalihari
Published on: 31 January 2023, 03:34 PM IST

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