Poultry Farming: बारिश के मौसम में ऐसे करें मुर्गियों की देखभाल, बढ़ेगा प्रोडक्शन और नहीं होगा नुकसान खुशखबरी! किसानों को सरकार हर महीने मिलेगी 3,000 रुपए की पेंशन, जानें पात्रता और रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया खुशखबरी! अब कृषि यंत्रों और बीजों पर मिलेगा 50% तक अनुदान, किसान खुद कर सकेंगे आवेदन किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ GFBN Story: मधुमक्खी पालन से ‘शहदवाले’ कर रहे हैं सालाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए उनकी सफलता की कहानी फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 31 January, 2023 3:27 PM IST
कलिहारी की खेती

कलिहारी एक सुंदर आरोही पौधा है. इसकी पहचान सुंदर भड़कीले, लाल-पीले रंग के विशिष्ट प्रकार के पुष्पों में की जाती है. इसे संस्कृत में अग्निशिखा के नाम से भी जाना जाता है. इसके विशिष्ट आकृति, रंग विन्यास एवं सुंदरता के कारण इसे लोग गृह वाटिकाओं में भी लगाते हैं.

खेती का तरीका

मृदा

कलिहारी की खेती के लिए 6 से 7 pH मान की बलुई-दोमट मिट्टी उचित मानी जाती है. रोपण स्थल पर जल निकासी की अच्छी सुविधा होनी चाहिए. हालांकि इसे थोड़ी बहुत कंकरीली. पथरीली भूमि पर भी उगाया जा सकता है.

खेत की तैयारी

खेत में जून माह के प्रथम सप्ताह में गहरी जुताई कर 80 से.मी.के अंतराल पर मेड व नालियां बना लें. खेती की तैयारी के समय ही प्रति हेक्टेयर 15-20 टन गोबर खाद और 5 टन ढेंचा खाद (हरी खाद) एवं 10 टन वर्मीकम्पोस्ट का प्रयोग किया जा सकता है.

रोपणी

खेत में सीधे बीज बोकर कलिहारी की अच्छी फसल प्राप्त करना कठिन होता है क्योंकि एक वर्ष में पौधों में केवल प्रकंद ही तैयार हो पाते हैं. इनमें फूल, फल नहीं बन पाते हैं. अतः पहले रोपण में ही बीज बोकर खेत में प्रत्यारोपण हेतु प्रकंद तैयार कर लें. स्वस्थ एवं परिपक्व बीजों को क्योरियों में 10 से 15 से.मी. के अंतर पर बोना चाहिए. एक से दो वर्ष में पौधों में प्रत्यारोपण हेतु उपयुक्त आकार के (50-60 ग्राम वजन के) प्रकंद तैयार हो जाएंगे. यह ध्यान रखें कि प्रकन्द जितना स्वस्थ व वजनदार होगा, पौधा उतना ही अधिक वृद्धि करेगा.

प्रकंदों का प्रत्यारोपण

कलिहारी एक आरोही लता है तथा इसकी पत्तियों के सिरे पर घुमावदार सूत्राकार लता तंतु होते हैं जो सहारा मिलने पर तेजी से बढ़ते हैं. खेत में प्रत्येक कंद के पास बांस की डंडियां अथवा पेड़ों की सूखी टहनियां गाड़ देनी चाहिए ताकि उनके सहारे लता का आरोहण तेजी से हो सके.

सिंचाई

वर्षा में इसे सिंचाई को कम ही आवश्यकता होती है, परंतु कम वर्षा होने अथवा कंकरीली भूमि होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई की भी जरुरत पड़ती है. सिंचाई का ध्यान फूल आने पर विशेष रूप से देना होता है.

निराई-गुड़ाई

खेत को आवश्कतानुसार एक बार अच्छी तरह निंदाई-गुड़ाई करके वहां पर खरपतवार को निकाल देना चाहिए. ऐसा करते समय यह ध्यान रखा जाये कि इससे कलिहारी के पौधों को जरा भी नुकसान न पहुंचें.

ये भी पढ़ेंः कलिहारी का पौधा है सेहत के लिए फायदेमंद, खेती से होगा मुनाफा

पैदावार

कलिहारी की खेती से प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष 200-300 किलोग्राम बीज एवं 150 से 200 किलोग्राम छिलके प्राप्त होते हैं. इसकी खेती के 4 से 5 वर्षों के अंतराल पर 3 से 4 टन सूखे प्रकंद भी प्राप्त किये जा सकते हैं.

English Summary: Cultivation and Management of Kalihari
Published on: 31 January 2023, 03:34 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now