एलोवेरा को घृतकुमारी के नाम से भी जाना जाता है. बाजार में इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए इसकी खेती एक मुनाफे का सौदा है. हर्बल और कास्मेटिक्स में इसकी मांग निरंतर बढ़ती ही जा रही है. सौंदर्य प्रसाधन के सामान में इसका सर्वाधिक उपयोग होता है. वहीं हर्बल उत्पाद व दवाओं में भी इसका प्रचुर मात्रा में उपयोग किया जाता है. आज बाजार में एलोवेरा से बने उत्पादों की मांग काफी बढ़ी हुई है. ऐसे में अगर आप एलोवेरा का खेती करते हैं तो यह काफी फायदे का सौदा हो सकता है और आप सालाना 8 से 10 लाख रुपए तक कमाई आराम से कर सकते हैं.
खेती का तरीका
जलवायु
घृतकुमारी की खेती के लिए मुख्यतः गर्म आर्द्र व उष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है. इसकी बिजाई सिंचित क्षेत्रों में सर्दियों के समय को छोड़कर पूरे वर्ष की जाती है.
भूमि
घृतकुमारी की खेती असिंचित तथा सिंचित दोनों प्रकार की भूमि में की जा सकती है, परन्तु ऊँची भूमि पर इसकी खेती करना ज्याद उचित माना जाता है. इसकी बुआई से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर खरपतवारों को साफ कर लें.
सिंचाई
बिजाई के तुरंत बाद ही पौधों को सिंचाई की जरुरत होती है. आपको समय-समय पर इसके खेत की सिंचाई करते रहना चाहिए, जिससे घृतकुमारी के पत्तों में जेल की मात्रा अच्छी बनी रहेगी. फसल बिजाई के एक मास बाद पहली निकाई गुड़ाई करनी चाहिए तथा 2 से 3 गुड़ाई प्रति वर्ष करनी चाहिए.
फसल की कटाई
मुख्यतः इस फसल पर किसी तरह के कीटों एवं बीमारी का प्रकोप नहीं पाया गया है, लेकिन कभी कभी दीमक का प्रकोप हो जाता है. पौध लगाने के एक वर्ष बाद में परिपक्व होने के बाद निचली तीन पत्तियों को तेज धारदार हंसिये से काट लिया जाता है. पत्ते काटने की इस प्रक्रिया को प्रत्येक तीन-चार महीने पर किया जा सकता है.
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उपज
प्रति वर्ष एक एकड़ की खेती से 20000 किलोग्राम घृतकुमारी प्राप्त किया जा सकता है. इसकी ताजा पत्तियों का बाजार में वर्तमान भाव तीन से पाँच रूपये प्रति किलोग्राम है. इन पत्तों को ताजा अवस्था में आयुर्वेदिक दवाईयां बनाने वाली कंपनियों तथा प्रसाधन सामग्री निर्माताओं को बेचा जा सकता है.