रबी के मौसम में उगाई जाने वाली कुसुम एक तिलहनी फसल है. भारत में इसकी खेती तकरीबन 1.5 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर होती है. कुसुम की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और बिहार में होती है. हाल ही में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) के वैज्ञानिकों ने तिलहन फसल कुसुम की नई किस्म कुसुम – 1 विकसित की है. गौरतलब है कि कुसुम की यह किस्म न केवल अन्य क़िस्मों के अपेक्षा 4 फीसद ज्यादा तेल देगी, बल्कि दिल का भी ज्यादा बेहतर ख्याल रखेगी. इसकी खास बात यह भी है कि कुसुम की मौजूदा किस्म पीबीएनएस 12, जहां 145 दिन में तैयार होती है, वहीं नई किस्म 125 दिन में ही पककर तैयार हो जाएगी. इस किस्म की उपज सिंचित अवस्था में 20-24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर व असिंचित अवस्था में 9-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है.
खेती के लिए मिट्टी : कुसुम की खेती करने के लिए जल निकास का होना बेहद जरूरी होता है. ज्यादा समय तक खेत में पानी ठहरने के बाद फसल खराब होने लगती है. सिंचाई पर आधारित इसकी खेती के लिए अगर मिट्टी भारी हो तो अतिरिक्त जल निकास की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए.
खेत की तैयारी: बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई करने के साथ ही खेत को समतल कर लेना चाहिए. ताकि बीज ज्यादा गहराई में न जाये और सिंचाई के दौरान खेत में पानी न ठहरे.
बुवाई का समय : इस फसल को बोने का सही समय सितंबर माह के दूसरे सप्ताह से अक्तूबर माह के दूसरे सप्ताह तक होता है.
बीजोपचार: मिट्टी से उपजने वाली बीमारियों से बचाव के लिए बुवाई से पहले प्रति एक किलोग्राम बीजों को थायरम 3 ग्राम या कैप्टन 2 ग्राम या कार्बंडाजिम 2 ग्राम की दर से बीजोपचार करना चाहिए.
खरपतवार की रोकथाम: बुवाई के 10-15 दिनों के अंदर ही बीजों का अंकुरण होते ही पौधों के बीच की दूरी बनाए रखनी चाहिए और खरपतवारों को हटा देना चाहिए. फूलों के गुच्छे बनने के समय भी 25-30 और 45-50 दिनों में हाथ या फावड़े से खेत की सफाई करनी चाहिए.
खाद और उर्वरक: सही और संतुलित रूप में उर्वरक देने के लिए बुवाई के 2-3 सप्ताह पहले 2 टन प्रति एकड़ के हिसाब से सड़ी गोबर की खाद को खेत में डालना चाहिए. अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए मिट्टी की जांच कराकर जरूरत के अनुसार उर्वरकों को खेत में डालना चाहिए.
सिंचाई व्यवस्था: बीज डाले जाने वाली जगह या अंकुरण के समय मिट्टी में सही नमी नहीं पाई जाती है तो बुवाई से पहले सिंचाई कर दें. यदि मिट्टी ऐसी हो जिस में दरारें पड़ने की संभावना हो तो दरारें पड़ने से पहले सिंचाई कर दें ताकि पानी को बेहतर तरीके से नियंत्रित किया जा सके. यदि एक ही सिंचाई का प्रावधान हो तो फसल के विकास में मिट्टी की नमी कम होने से पहले ही सिंचाई करनी चाहिए.
फसल की कटाई : फसल की कटाई सुबह के समय ही करे. पौधों की जड़ से कटाई करें. बाद में इन्हें गड्डियों में बांध कर छोटे-छोटे ढेरों के रूप में खेत में रख दें. जब ये पूरी तरह सूख जाएं तब इस फसल को लकड़ी से कूटपीट कर अथवा बैलगाड़ी या ट्रैक्टर की मदद से इस की गहाई की जा सकती है. इस प्रक्रिया में सही और साफ-सुथरे बीज अलग हो जाते हैं. इस तरह की गहाई और सफाई का काम मशीन द्वारा भी किया जा सकता है. जैसे गेहूं की फसल के लिए किया जाता है या दोनों ही प्रकार की तकनीकों का इस्तेमाल इस फसल के लिए भी किया जा सकता है.
कुसुम की विभिन्न किस्में
कुसुम की एनएआरआई-एनएच 1, एनएआरआई-एच 15, ए 1, एनएआरआई 6, परभणी कुसुम (पीबीएनएस 12), फुले कुसुम, पीबीएनएस 40, एसएसएफ 658, एसएसएफ 648, फुले एसएसएफ 733, एनएआरआई एनएच 1, एनएआरआई-एच 15 संकर किस्में हैं, वहीं एनएआरआई 6, परभणी कुसुम (पीबीएनएस 12), फुले कुसुम, पीबीएनएस 40, एसएसएफ 658, एसएसएफ 648, फुले एसएसएफ 733, जेएसएफ 1, जेएसआई 7, और जेएसआई 73 आदि उन्नत किस्में हैं.