Pusa Double Zero Mustard 33: भारत में सरसों की खेती रबी सीजन की एक महत्वपूर्ण फसल है, और इसकी उन्नत किस्मों का चयन किसानों के लिए उपज और गुणवत्ता दोनों में सुधार करने का एक मुख्य माध्यम बनता जा रहा है. पूसा डबल जीरो सरसों 33 (Pusa Double Zero Mustard 33) सरसों की एक उन्नत किस्म है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा द्वारा विकसित किया है. यह किस्म उच्च उत्पादन क्षमता, बेहतर गुणवत्ता वाले तेल और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए प्रसिद्ध है. आइए जानते हैं कि इस किस्म की विशेषताएं क्या हैं और इसे कैसे सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है-
पूसा डबल जीरो सरसों 33 की खेती
सरसों की उन्नत किस्म पूसा डबल जीरो सरसों 33 की खेती मुख्य रूप से जोन- II में की जा सकती है, जिसमें राजस्थान के उत्तरी और पश्चिमी भाग, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्र शामिल हैं. यह किस्म विशेष रूप से सिंचित अवस्था में समय पर बुवाई के लिए अनुकूल है.
पूसा डबल जीरो सरसों 33 की मुख्य विशेषताएं
सरसों की उन्नत किस्म पूसा डबल जीरो सरसों 33 में 1.13% इरूसिक एसिड और केवल 15.2 पीपीएम ग्लूकोसाइनोलेट्स होते हैं, जो इसे खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य मानकों के अनुरूप बनाते हैं. इस किस्म में तेल की मात्रा भी अधिक होती है, लगभग 38%, जिससे यह किस्म किसानों के लिए आर्थिक दृष्टि से काफी लाभकारी है. इसके बीज का रंग पीला होता है, और यह सफेद रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी है. इसके अलावा, कम जल के तनाव की स्थिति में भी यह सहनशील होती है, जो इसे शुष्क क्षेत्रों में उगाने के लिए एक आदर्श विकल्प बनाता है.
पूसा डबल जीरो सरसों 33 की उत्पादन क्षमता
सरसों की उन्नत किस्म पूसा डबल जीरो सरसों 33 की औसत उत्पादन क्षमता लगभग 26.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि अधिकतम उत्पादन क्षमता 31.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. यह किस्म लगभग 141 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे यह किसानों के लिए एक मध्यम अवधि की फसल बन जाती है. समय पर बुवाई और उचित प्रबंधन के साथ, किसान इस किस्म से बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.
पूसा डबल जीरो सरसों 33 की बुवाई के तरीके
बीज दर और दूरी: पूसा डबल जीरो सरसों 33 के लिए 3-4 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई की जानी चाहिए. पंक्तियों के बीच 30-45 सेमी की दूरी और पौधों के बीच 10-15 सेमी की दूरी सुनिश्चित करें ताकि पौधों को पर्याप्त जगह और पोषण मिल सके. सही दूरी और बीज दर से पौधों की संख्या में वृद्धि होती है और इससे उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
बुवाई की गहराई: बीज की गहराई 2.5 से 3.0 सेमी होनी चाहिए. यदि बीज अधिक गहराई पर बोए जाते हैं, तो अंकुरण प्रभावित हो सकता है, जबकि कम गहराई पर बुवाई से पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त नहीं होते. इसलिए सही गहराई का ध्यान रखना बेहद महत्वपूर्ण है.
बुवाई का समय: सरसों की बुवाई का सही समय 15 से 20 अक्टूबर के बीच होता है. इस समय पर बुवाई करने से पौधों का विकास बेहतर होता है और उपज में वृद्धि होती है. यदि किसी कारणवश समय पर बुवाई नहीं हो पाती है, तो 1 से 20 नवंबर तक बुवाई की जा सकती है, लेकिन इसके लिए अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है, खासकर मौसम के बदलाव से बचाव के लिए.
उर्वरक प्रबंधन: सरसों की अच्छी उपज के लिए उर्वरकों का संतुलित उपयोग आवश्यक है. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, और गंधक का सही अनुपात में उपयोग करना चाहिए. मिट्टी परीक्षण के आधार पर उर्वरक की सही मात्रा निर्धारित की जा सकती है, जिससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त हो सकें. मिट्टी में उर्वरकों का उचित वितरण फसल की उपज और गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद करता है.
सिंचाई प्रबंधन: सिंचाई की संख्या फसल की जरूरत और जल उपलब्धता के अनुसार तय की जानी चाहिए. आमतौर पर, 1 से 3 सिंचाई पर्याप्त होती हैं. पहली सिंचाई बुवाई के 35-40 दिन बाद की जानी चाहिए, और दूसरी सिंचाई फूल आने के समय होनी चाहिए. सही समय पर सिंचाई से फसल की गुणवत्ता और उपज दोनों में वृद्धि होती है. पानी की कमी से बचने के लिए मिट्टी की नमी की निगरानी करना भी महत्वपूर्ण है.
रोग और कीट प्रबंधन: पूसा डबल जीरो सरसों 33 किस्म सफेद रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी है, लेकिन अन्य रोगों जैसे भूरी गेरुई और चूर्णी फफूंदी से बचाव के लिए किसानों को सतर्क रहना चाहिए. कीट और रोग प्रबंधन के लिए जैविक और रासायनिक दोनों तरीकों का उपयोग किया जा सकता है. पौधों की नियमित निगरानी करके समय पर उपचार किया जा सकता है, जिससे फसल को नुकसान से बचाया जा सके.
ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि पूसा डबल जीरो सरसों 33 एक उन्नत किस्म है जो किसानों को बेहतर उत्पादन, उच्च गुणवत्ता वाला तेल और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है. इसके अलावा, इसका कम जल की जरूरतों को पूरा करने की क्षमता और सफेद रतुआ के प्रति प्रतिरोध इसे कई क्षेत्रों के लिए एक आदर्श विकल्प बनाते हैं. उचित बुवाई, उर्वरक और सिंचाई प्रबंधन के साथ किसान इस किस्म से अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकते हैं.