मानसून में Kakoda ki Kheti से मालामाल बनेंगे किसान, जानें उन्नत किस्में और खेती का तरीका! ये हैं धान की 7 बायोफोर्टिफाइड किस्में, जिससे मिलेगी बंपर पैदावार दूध परिवहन के लिए सबसे सस्ता थ्री व्हीलर, जो उठा सकता है 600 KG से अधिक वजन! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Karz maafi: राज्य सरकार की बड़ी पहल, किसानों का कर्ज होगा माफ, यहां जानें कैसे करें आवेदन Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक Krishi DSS: फसलों के बेहतर प्रबंधन के उद्देश्य से सरकार ने लॉन्च किया कृषि निर्णय सहायता प्रणाली पोर्टल
Updated on: 9 January, 2023 4:45 PM IST
कोको की खेती की जानकारी

कॉफी या कोको से बने उत्पाद का जायका आपने कभी ना कभी जरूर लिया होगा. कोको एक नगदी फसल है, जिसका उत्पादन भारत में भी बड़े पैमाने में किया जाता है. कोको के फल के बीज को पीसकर कोको पाउडर तैयार किया जाता है, जिसका इस्तेमाल कॉफी, केक, सौंदर्य उत्पाद आदि में किया जाता है. कोको की खेती के लिए अधिक मेहनत की आवश्यकता नहीं होती है यदि किसी चीज की आवश्यकता है तो वह है ध्यान देने की. कोको को नारियल और सुपारी पाम के लिए उगाया जा सकता है, तो वहीं कोको सदाबहार खेतों में सूक्ष्म जलवायु की स्थिति में आसानी से उगाया जा सकता है.  भारत में, वर्तमान कोको का उत्पादन लगभग 12,000 मीट्रिक टन है जिसमें अकेला तमिलनाडु लगभग 400 मीट्रिक टन का उत्पादन करता है.

कोको की किस्में

कोको में तीन प्रकार के क्रिओलो, फोरास्टेरो और ट्रिनिटारियो होते हैं.

सीसीआरपी - 1

सीसीआरपी - 2

सीसीआरपी - 3

सीसीआरपी - 4

सीसीआरपी- 5

सीसीआरपी- 6

सीसीआरपी - 7

सीसीआरपी - 8

सीसीआरपी - 9

सीसीआरपी - 10

सीसीआरपी - 11

सीसीआरपी - 12

सीसीआरपी - 13

सीसीआरपी - 14

सीसीआरपी - 15

विट्टल किस्में और संकर।

•  वीटीएलसीसी-1 विट्टल कोको क्लोन 1

•  VTLCS-1 विट्टल कोको चयन 1

•  VTLCS-2 विट्टल कोको चयन 2

•  वीटीएलसीएच-1 विट्ठल कोको हाइब्रिड 1

•  वीटीएलसीएच-2 विट्टल कोको हाइब्रिड 2

•  वीटीएलसीएच-3 विट्टल कोको हाइब्रिड 3

•  वीटीएलसीएच-4 विट्टल कोको हाइब्रिड 4

•  VTLCH-5 विट्टल कोको हाइब्रिड 5 (नेत्रा सेंचुरा)

कोको की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

कोको एक बारहमासी फसल है, इसके अच्छे उत्पादन के लिए वर्षावन की आवश्यकता होती है और खास बात यह कि कोको में हर प्रकार के मौसम को झेलने की क्षमता होती है. कोको की खेती के लिए मुख्यत: 1000 मिमि से 2000 मिमि वर्षा और न्यूनतम 15 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम 35 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है. तो वहीं कोको की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.0  इष्टतम माना जाता है.

कोको की खेती के लिए भूमि की तैयारी

कोको की खेती के लिए सबसे पहले भूमि की 3 से 4 बार जुताई कर लेनी चाहिए ताकि मिट्टी को भूरभूरा बनाया जा सके. इसके साथ ही यदि कोको की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है तो उससे पहले मृदा परीक्षण जरूर करवा लें. खेत को तैयार करते हुए जल निकासी की व्यवस्था जरूर बनाएं. 

कोको की बीज का प्रवर्धन

बीज प्रवर्धन

कोको के बीज प्रवर्धन में बीजों को राख या चूने से उपचारिचत किया जाता है. जिसके बाद कोको के बीजों को थैलियों में बोया जाता है, जिसके लिए छाया वाले स्थान की आवश्यकता होती  है. जब इनमें से पौधे निकलकर 60 सेमी के हो जाते हैं तो यह खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

कोको का वानस्पति प्रसार

कोको की खेती के लिए दूसरा तरीका वानस्पति प्रसार या कलम विधि द्वारा किया जाता है. जिसके लिए कोको की टहनी को कलम, मुकुलन या ग्राफ्टिंग द्वारा बुवाई की जाती है.

कोको की खेती के लिए रोपण

कोको की खेती के जरूरी है कि आप एक निश्चित दूरी पर पौधों को रोपित करें. यदि आप साथ में नारियल की खेती कर रहे हैं तो 7.5 मीटर X 7.5 मीटर की दूरी पर पौधों को रोपित करें.

यदि आप कोको की खेती के साथ सुपारी के खेती कर रहे हैं तो उसके लिए आपको प्रति पौधों से पौधे की दूरी 2.7 मीटर X 2.7 मीटर की आवश्यकता होती है.

कोको की खेती में सिंचाई

कोको की फसल में बुवाई के बाद सिंचाई करना भी बहुत जरूरी हो जाता है. जैसा कि कोको की फसल में अधिक पानी की आवश्यकता होती है तो गर्मी या शुष्क मौसम की स्थिति में 3 दिनों के अंतराल में सिंचाई कर लेनी चाहिए. मानसून के वक्त खेतों से जल निकासी कर लेनी चाहिए ताकि फसल को सड़ने से बचाया जा सके.

कोको की फसल में खाद व उर्वरक

किसी भी पौधे के विकास के लिए जरूरी है कि उसे पर्याप्त मात्रा में सभी पोषक तत्व मिलते रहें. यदि आप जैविक खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं तो भी आपकी फसल को अच्छा लाभ मिलेगा. इसके अलावा आप खेतों में कोको के प्रत्येक पौधे में 100 ग्राम ‘N’ , 40 ग्राम ‘P205’ और 140 ग्राम K20 को गोबर की सड़ी हुई खाद के साथ मिलाकर डाल दें.

कोको की खेती में छंटाई

कोको की खेती में छंटाई की प्रक्रिया में ध्यान रखना चाहिए. छंटाई से तात्पर्य है कि पौधों में से खराब और मृत शाखाओं को अलग कर दें, ताकि उससे बाकि पौधे खराब न हो पाएं. यह प्रक्रिया हर 6 महीने में दोहरानी चाहिए.

ये भी पढ़ेंः कोको की खेती बना सकती है मालामाल

कोको की कटाई

कोको के पौधों की रोपाई के तीसरे साल से इसमें फूल आने शुरू हो जाते हैं. इसके अलावा 5वें साल से कोको के पौधों से उपज प्राप्त होने लगती है. कोको की फली 5 से 6 महीने पक कर तैयार हो जाती है, जिसकी तुड़ाई की जा सकती है. अब कोको के फल के बीज को अलग कर उसे सुखाया जाता है.

कोको की उपज

कोको की कलम/ वानस्पतिक विधि से की गई बुवाई से लगभग 500 से 800 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर कोको के बीज प्राप्त होंगे. तो वहीं बीज प्रवर्धन से तैयार की गई फसल से 200 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर कोको के बीज प्राप्त होंगे. अब आपका कोको बाजार में बिकने को तैयार है.

नोट- यह जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है.

English Summary: Cultivate cocoa in this way, you will get bumper production
Published on: 09 January 2023, 04:53 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now