ककड़ी भारत देश में एक बहुत ही लोकप्रिय फसल है. किसान इसकी खेती नगदी फसल के रूप में करते है और काफी अच्छा मुनाफा भी कमाते है. भारत में लगभग सभी क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है. ककड़ी को मुख्य रूप से सलाद लिए इस्तेमाल किया जाता है.
खेती का तरीका
जलवायु
ककड़ी की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु अच्छी मानी जाती है. इसके पौधे को पूर्ण रूप से 25 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान की आवश्यकता होती है. इसके अलावा इसके बीजों का जमाव 20 डिग्री सेल्सियस से कम के तापमान पर करना चाहिए.
मिट्टी
ककड़ी की खेती बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है. इस मिट्टी में ककड़ी का उत्पादन काफी अच्छा होता है. इसकी खेती के लिए बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है, जिस कारण खेतों में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होना जरूरी होता है.
जुताई
इसकी खेती के लिए 3 से 4 बार खेतों की जुताई करना बहुत जरूरी होता है. बुवाई कार्य से पहले खेतों में नाली की व्यवस्था कर लें और जब मिट्टी में नमी हो जाए तो बुवाई का काम शुरु कर देना चाहिए. नमी वाली मिट्टी में ही ककड़ी के बीजों का अंकुरण और विकास अच्छी तरीके से होता है.
बुवाई
ककड़ी फसल की बुवाई को कतारों में की जाती है. इसके कतार के बीच की दूरी 1.5 से 2 मीटर तक रखना चाहिए. इसके बीजों की खेत में बुवाई से पहले मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बैनलेट या बविस्टिन से बीजों का उपचार करें.
सिंचाई प्रबंधन
ककड़ी की फसल को अन्य फसलों की तुलना में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इसकी बुवाई का समय फरवरी से मार्च महीने के बीच होता है. इन महीनों में खेती की नमी के अनुसार इसकी सिंचाई करना चाहिए. ग्रीष्म ऋतु में ककड़ी को 5 से 7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है.
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कटाई
ककड़ी के फल 60 से 70 दिनों में तुडाई के लिए तैयार हो जाते है. ककड़ी के एक हेक्टेयर खेत से किसान को 200 से 250 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त हो सकती है. यह उपज इसकी खेती के तरीके, किस्म, उर्वरक और जलवायु पर निर्भर करती हैं. ककड़ी की फसल में तुड़ाई जब फल हरे और मुलायम हो जाए तब ही करनी चाहिए. समय से पहले फलों की तुड़ाई करने पर यह सूखने लगती है और बाजार में इसकी मांग भी घटने लगती है.