खीरे के बाद दूसरे नंबर पर सबसे अधिक लोकप्रिय कद्दूवर्गीय फसल अगर कोई है, तो वो ककड़ी है. ये कम लागत में अच्छा मुनाफा भी दे सकता है. हमारे देश के लगभग सभी क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है. गर्मियों का मौसम अभी अपनी चरम पर पहुंच रहा है, ऐसे में बाजार में इसकी मांग भी बढ़ती जा रही है. वैज्ञानिक विधि द्वारा अगर इसकी खेती की जाए तो मुनाफा डबल हो सकता है.
उपयुक्त जलवायु
ककड़ी की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु सबसे बेहतर है. पौधें पूर्ण रूप से 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच ही विकसित हो सकते हैं. इसके साथ ही बीजों का जमाव लगभग 20 डिग्री सेल्सियस से कम के तापमान पर संभव नहीं है.
मिट्टी चयन
ककड़ी की खेती बलुई दोमट या दोमट मिट्टी पर आसानी से की जा सकती है. इस तरह की मिट्टी पर इसका उत्पादन बढ़ जाता है. हालांकि ध्यान रहे कि इसकी खेती के लिए बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है. इसलिए खेतों में जल निकासी की व्यवस्था का होना जरूरी है. वैसे इसकी खेती नदी किनारे क्षेत्रों पर अधिक होती है, क्योंकि ऐसे क्षेत्रों का पी.एच मान 6-7 रहता है, जो इसके लिए उपयुक्त है.
जुताई
इसकी खेती के लिए 3-4 जुताई करना जरूरी है. बुवाई कार्य से पहले नाली बनानी चाहिए और मिट्टी में जब नमी हो तो बुवाई कार्य शुर कर देना चाहिए. नमी वाली मिट्टी में ही ककड़ी के बीजों का अंकुरण और विकास अच्छा हो सकता है.
बीज की बुवाई
ककड़ी फसल की बुवाई को कतारों में करते हुए प्रत्येक कतार की दूरी 1.5-2.0 मीटर तक रखना चाहिए. ध्यान दें कि एक जगह पर 2 बीज की बुवाई करें, ताकि बीज जमाव के बाद एक स्वस्थ पौधा छोड़कर दूसरा पौधा निकाल दे.
सिंचाई प्रबंधन
ग्रीष्म ऋतु में ककड़ी को 5 से 7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जरूरत पड़ती है. जबकि फसल की तुड़ाई से 2 दिन पहले भी सिंचाई करना जरूरी है.
फलों की तुड़ाई
ककड़ी की फसल में तुड़ाई में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए. ध्यान रहे कि जब फल हरे और मुलायम हो, तब ही तुड़ाई का काम किया जाना चाहिए. समय से पहले या समय के बाद फलों की तुड़ाई हो, तो वो अपना आकर्षण और गुण खो देते हैं और बाजार में भाव घट जाता है.