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Updated on: 22 May, 2024 2:28 PM IST
उन्नत तकनीक के साथ किसान कर सकते हैं धान की सीधी बुआई

Paddy Cultivation: दुनिया की आधी से अधिक आबादी का मुख्य भोजन धान (चावल) है. इसकी खेती 162 मिलियन हेक्टेयर में की जाती है, जो वैश्विक कृषि योग्य भूमि का लगभग 11% हिस्सा है. प्रति वर्ष लगभग 758 टीजी (मिलियन मीट्रिक टन) चावल का उत्पादन का किया जाता है. खाद्य सुरक्षा बनाए रखने के लिए धान की खेती बहुत ही आवश्यक है. धान की पारंपरिक खेती में सबसे अधिक ऊर्जा की खपत होती है. जलवायु परिवर्तन परिपेक्ष में आधुनिक कृषि प्रणालियों को अपनाना किसानों के लिए बेहद जरूरी है. धान आधारित फसल प्रणालियों के तहत 40 से 50% उत्पादन भारत के सिंधु-गंगा के मैदानों से आता है. भारत के पूर्वी हिस्से में, 18 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर धान आधारित उत्पादन प्रणालियों का वर्चस्व है, जो राष्ट्रीय धान उत्पादन प्रणालियों के कुल क्षेत्र का लगभग 42% कवर करती है. प्रत्यारोपित धान उच्च ऊर्जा, अधिक पानी की खपत और अधिक श्रम से जुड़ा होता है जिससे किसानों के शुद्ध लाभ में कमी आती है. समय पर बारिश नहीं होने की वजह से धान की खेती में देरी होती है जिसकी वजह से उत्पादन क्षमता और लागत दोनों ही बढ़ जाती है. सुनिश्चित सिंचाई वाले क्षेत्रों में DSR एक बेहतर विकल्प है.

धान की सीधी बुवाई (DSR) तकनीकः-

धान की सीधी बुवाई एक प्राकृतिक संसाधन संरक्षण तकनीक है. धान की सीधी बुआई जीरो टिलेज मशीन या मल्टी क्रॉप प्लान्टर से कम अवशेष वाले गेहू के खेत में उपयुक्त होता है और उच्च अवशेष वाले गेहू के खेत में हैप्पी सीडर और सुपर सीडर के साथ निर्देशित बीजारोपण के फायदे हैं.

धान की सीधी बुवाई (DSR) तकनीक के साथ

किसानों के DSR खेत में वैज्ञानिकों द्वारा निरिक्षण

खेत में वैज्ञानिकों द्वारा निरिक्षण उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने के लिए किया जाता है, जिसमें सीड ड्रील (जीरो टिलेज) मशीन द्वारा धान के उपचारित बीजों एवं दानेदार उर्वरकों को पंक्ति में उचित दूरी एवं सुनिश्चित गहराई पर बुवाई करते है. धान की रोपाई विधि से खेती करने में किसानों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उनके समाधान के लिए धान की सीधी बुवाई तकनीक को अपनाना आवश्यक है. यह वास्तव में पर्यावरण हितैषी तकनीक है. जिसमें कम पानी, थोड़ी सी मेहनत और कम लागत में धान फसल से अच्छी उपज और आमदनी अर्जित की जा सकती है.

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DSR खेत में वैज्ञानिकों द्वारा निरिक्षण

धान की सीधी बुवाई वाले खेत

बुवाई हेतु उपयुक्त मशीनः-

धान की सीधी बुवाई हेतु खरीफ की सामान्य फसलों की भांति धान की सीधी बुवाई के लिए तैयार किया जाता है. वर्षा जल संरक्षण हेतु ग्रीष्मकाल में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करना चाहिए, नियंत्रण के लिए खेत का समतल होना आवश्यक हैं. यदि संभव हो तो लेजर लैंड लेवलर मशीन से भूमि समतल कर लें अन्यथा जुताई के बाद परंपरागत विधि से पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें. धान की सीधी बुवाई बिना खेत की जुताई किए कर सकते हैं या फिर खेत की जुताई कर भी कर सकते हैं. जुताई वाले खेत में ड्राइ डीएसआर अथवा वेट डीएसआर भी कर सकते हैं. वेट डीएसआर में मुख्यतः राइस व्हीट सीडर या ड्रम सीडर का प्रयोग कर सकते हैं.

बुवाई हेतु उपयुक्त मशीन

धान की सीधी बुवाई राइस व्हीट सीडर

साफ एवं फसल अवशेष रहित खेतों में धान की सीधी बुवाई जीरो टिल ड्रील अथवा मल्टीक्रोप प्लांटर से की जा सकती है. सीधी बुवाई हेतु बैल चालित सीड ड्रील का भी उपयोग किया जा सकता है. जिन खेतों में फसलों के अवशेष हो, वहां हैपी सीडर या रोटरी डिस्क ड्रिल एवं सुपर सीडर जैसी मशीनों से धान की बुवाई करनी चाहिए. नौ कतार जीरो ड्रिल मशीन से करीब प्रति घंण्टा एक एकड़ में धान की बुवाई हो जाती है. ध्यान देने योग्य बात है कि बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए.

धान की सीधी बुवाई राइस व्हीट सीडर

साफ एवं फसल अवशेष रहित खेतों में धान की सीधी बुवाई जीरो टिल ड्रील अथवा मल्टीक्रोप प्लांटर से की जा सकती है. सीधी बुवाई हेतु बैल चालित सीड ड्रील का भी उपयोग किया जा सकता है. जिन खेतों में फसलों के अवशेष हो, वहां हैपी सीडर या रोटरी डिस्क ड्रिल एवं सुपर सीडर जैसी मशीनों से धान की बुवाई करनी चाहिए. नौ कतार जीरो ड्रिल मशीन से करीब प्रति घंण्टा एक एकड़ में धान की बुवाई हो जाती है. ध्यान देने योग्य बात है कि बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए.

हैपी सीडर या रोटरी डिस्क ड्रिल

धान की सीधी बुवाई मल्टीक्रोप प्लांटर से / धान की सीधी बुवाई जीरो टिल ड्रील से

बुवाई का उचित समयः-

सीधी बुवाई तकनीक में प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण बिंदू उचित समय पर बुआई करना हैं. उत्तर और मध्य भारत में मानसून आने के 10 से 12 दिन पूर्व अर्थात मध्य जून तक बुवाई संपन्न कर लेना चाहिए. मानसून के क्रियाशील होने से पहले धान की जड़े भूमि में स्थिर हो जाये और पौधों में कम से कम 2-3 पत्तियां निकल आये, जिससे खरपतवार धान के पौधों से प्रतिस्पर्धा करने में सफल न हो सकें. बिहार में मानसून आगमन के पहले ही धान की बुआई सूखे खेतों में की जाती है, जिसे खुर्रा विधि के नाम से जाना जाता है. देर से तैयार होने वाली किस्में (130-150 दिन) की बुवाई 25 मई से 15 जून, मध्य अवधि (110-125 दिन) की बुवाई 15 जून से 25 जून तथा शीघ्र तैयार होने वाली किस्मों (110-125 दिन) की बुआई 25 जून से 15 जुलाई तक संपन्न कर लेना चाहिए, ऊपरी जमीन, जहां पानी जमाव नही होता हो, वहां अल्प अवधि वाली किस्मों की सीधी बुवाई 15-20 जुलाई तक की जा सकती है. मानसून प्रारंभ होने के पश्चात बुवाई करने पर खरपतवार का प्रकोप अधिक होता है.

सीधी बुवाई के लिए उन्नत किस्मेंः-

किसान धान की किस्मों के बीज समयानुसार और क्षेत्रानुसार चयन करके अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. सिंचाई की उपलब्धता और क्षेत्र में वर्षा की स्थिती को देखते हुए उन्नत किस्मों/संकर किस्मों का चयन करना चाहिए. ऐसी किस्मों का चयन करना चाहिए जिनकी प्रारंभिक बढ़वार तीव्र गति से हो, जड़े गहरी हो तथा पानी की आवश्यकता कम हो. बिहार की असिंचित उ़च्च भूमियों में अल्प अवधि वाली किस्मों जैसे राजेन्द्र बगवती, राजेन्द्र निलम, राजेन्द्र स्वेता, राजेन्द्र मन्सूरी 1, राजेन्द्र सरस्वती, स्वर्णा सब 1, सबोर अर्धजल एवं सी.आर. धान 203 का प्रयोग करना चाहिए. असिंचित अवस्था वाली मध्यम भूमियों के लिए आई.आर. 64, राजेन्द्र मसूरी, सबोर सब 1 किस्में उपयुक्त हैं, असिंचित निचली भूमियों के लिए राजश्री, राजेन्द्र मन्सूरी 1, स्वर्णा धान आदि किस्में उपयुक्त पायी गयी हैं.

बीज दर एवं बीजोपचारः-

धान की सीधी बुवाई हेतु 10-12 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होता है. परन्तु यह भी आवश्यक है कि बीज प्रमाणित हो तथा उनकी जमाव क्षमता 85-90 प्रतिशत होना चाहिए. अंकुरण क्षमता कम होने पर बीज दर बढ़ा लेना आवश्यकता है. प्रमाणित किस्म के बाजार से क्रय किये गये बीज या संकर किस्मों के बीज उपचारित करने की आवश्यकता नहीं है. परन्तु यदि किसान भाई स्वयं का बीज स्तेमाल करते हैं, तो बुवाई से पूर्व धान के बीजों का उपचार अति आवश्यक है. सबसे पहले बीज को 8-10 घंटे पानी में भीगोकर उसमें से खराब बीजों को निकाल देते है. इसके बाद एक किलोग्राम बीज की मात्रा के लिए 0.2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के साथ 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम मिलाकर बीज को 2 घंटे छाया में सुखाकर सीड ड्रील मशीन द्वारा बुवाई की जाती है. 

धान की सीधी बुवाई का तरीकाः-

धान की सीधी बुवाई दो विधियों नम विधि व सूखी विधि से की जाती है. नम विधि में बुवाई से पहले एक गहरी सिंचाई की जाती है. जुताई योग्य होने पर खेत तैयार कर सीड ड्रील से बुवाई की जाती हैं. बुवाई के बाद हल्का पाटा लगाकर बीज को ढंक दिया जाता है, जिससे नमी संरक्षित रहती हैं. सूखी विधि में खेत को तैयार कर मशीन से बुवाई कर देते हैं और बीज अंकुरण के लिए वर्षा का इंतजार करते हैं अथवा सिंचाई लगाते है, मौसम एवं संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर बुवाई की विधि अपनाना चाहिए. सिंचाई की सुविधा होने पर नम विधि द्वारा बुवाई करना उत्तम रहता हैं. इसमें खेत को तैयार कर अंकुरित बीजों की बुवाई की जाती हैं. इस विधि के प्रयोग से फसल में 2-3 सप्ताह तक सिंचाई की आवश्यकता नही होती है, साथ ही खरपतवार का प्रकोप कम होता हैं. धान की सीधी बुवाई करते समय बीज 2-3 सें.मी. गहराई पर ही बोना चाहिए ताकि जमाव अच्छे से हो सके. नमी अधिक होने पर उथली व कम होने पर हल्की गहरी बुवाई करना चाहिए. मशीन द्वारा सीधी बुवाई में कतार से कतार की दूरी 18-22 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 5-10 सें.मी. होती है. बिहार के किसानों में सीधी बुआई की धुरिया विधि प्रसिद्ध होती है. इस विधि में वर्षा आगमन से पूर्व खेत तैयार कर सूखे खेत में धान बिजाई की जाती है. प्रथम सप्ताह में बैल चालित बुवाई यंत्र अथवा ट्रैक्टर चालित सीड ड्रिल द्वारा कतारों में 20 सेमी. की दूरी पर करना चाहिए.

संतूलित उर्वरक प्रबंधनः-

मिट्टी परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए. सामान्यतः सीधी बुवाई वाली धान में प्रति हैक्टर 120 कि.ग्रा. नत्रजन, 50-60 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश की जरूरत होती हैं. नत्रजन की आधी मात्रा के साथ फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा अर्थात 130 किग्रा डी.ए.पी., 80 किलोग्राम यूरिया एवं 67 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश का उपयोग बुवाई के समय करना चाहिए. शेष 60 किग्रा नत्रजन अर्थात 130 किग्रा. यूरिया को दो बराबर भागों में बांटकर बुवाई के 25-30 दिन बाद तथा बाली निकलने के समय कतारों में दें. इसके अलावा धान-गेहूं फसल चक्र में 25 किलोग्राम अर्थात 130 किलोग्राम यूरिया को दो बराबर भागो में बांटकर बुवाई के 25 से 30 दिन बाद तथा बाली निकलने के समय कतारों में दें. इसके अलावा धान-गेहूँ फसल चक्र में 25 किलोग्राम प्रति हैक्टर जिंक सल्फेट का प्रयोग बुवाई के समय करना चाहिए. ध्यान दें कि ड्रिल मशीन में डी.ए.पी. एवं एन.पी.के. के उर्वरक का ही प्रयोग करें, अन्यथा उर्वरक जैसे यूरिया एवं म्यूरकट आफॅ पोटाश के पिघलने से मशीन चोक हो सकती है.

सिंचाई प्रबंधनः-

पहले यह धारणा थी कि धान के खेत में पानी भरा रहना चाहिए तभी अधिक पैदावार प्राप्त हो सकती है, लेकिन अनुसंधान परिणामों से ज्ञात होता है कि धान में आवश्यकता से अधिक पानी देने से कोई लाभ नही होता हैं. धान की सीधी बुवाई के समय खेत में उचित नमी होना जरूरी है, सूखे खेत में बुवाई की स्थिति में बुवाई के बाद दुसरे दिन हल्की सिंचाई करना चाहिए. बुआई से प्रथम एक माह तक हल्की सिंचाई के द्वारा खेत में नमी बनाए रखना चाहिए. फसल में पुष्पन अवस्था में पानी की कमी खेत में नहीं होनी चाहिए. मुख्यतः कल्ला फूटने के समय, गभोट अवस्था और दाना बनने वाली अवस्थाओं में धान के खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखना आवश्यक हैं. कटाई से 15-20 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए जिससे फसल की कटाई सुगमतापूर्वक से हो सके. धान की सीधी बुवाई करने पर लगभग 40-45 प्रतिशत पानी की बचत की जा सकती है.

खरपतवार नियंत्रणः-

धान की सीधी बुवाई में खरपतवार प्रकोप एक बड़ी समस्या है. खरपतवार-फसल प्रतिस्पर्धा के कारण धान उत्पादन में 30-80 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है. समुचित खरपतवार प्रबंधन से हम धान की सीधी बुवाई की उत्पादन लागत कम करते हुए अच्छी पैदावार ले सकते हैं. सीधी बुवाई में प्रथम 2-4 सप्ताह तक खेत में खरपतवार रहित अवस्था प्रदान करना उचित पैदावार के लिए आवश्यक है. धान की बुवाई करने के बाद नमी खेत में पेंडीमेथालिन 30 ई.सी. की 3.25 लीटर मात्रा अथवा प्रेटीलाक्लोर 30.7 ई.सी. (इरेज, सेफनर) 1.65 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के 2-3 दिन बाद (अंकुरण पूर्व) छिड़काव करना चाहिए. इससे प्रायः सभी प्रकार के खरपतवारों का अंकुरण रूक जाता है. बुवाई के 20-25 दिन बाद उगे हुए खरपतवारों के नियंत्रण के लिए विसपायरीबैक सोडियम 10 एस.एल. (नामिनी गोल्ड) 250 मि.ली. या आलमिक्स 20 प्रतिशत 20 ग्राम प्रति हैक्टर मात्रा 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से चैड़ी पत्ती के साथ-साथ मोथा कुल के खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है. इसके बाद खरपतवार प्रकोप होने पर 1-2 निराई की जा सकती हैं. खेत में अंकुरित धान की बुवाई करने की स्थिति में एनीलोफॉस 30 प्रतिशत की 1.5 लीटर मात्रा प्रति हैक्टर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के पांचवे-छटवे दिन छिड़काव करने से खरपतवारों का अंकुरण नही होता है.

धान की सीधी बुवाई के लाभ

भारत के सभी राज्यों में विशेषकर धान-गेंहूं फसल प्रणाली वाले क्षेत्रों में गिरते भूजल स्तर, मजदूरों की कमी, जलवायु परिर्वतन और धान की खेती में बढ़ती लागत के कारण धान की सीधी बुवाई कारगर साबित हो रही है. सीधी बुवाई विधि से धान की खेती करने के प्रमुख लाभ निम्न हैः-

पानी की बचत

धान की कुल सिंचाई की आवश्यकता का लगभग 20 प्रतिशत पानी रोपाई हेतु खेत कदवा करना में प्रयुक्त होता हैं. सीधी बुवाई में 20 से 25 प्रतिशत पानी की बचत होती है क्योंकि इस विधि से धान की बुवाई करने पर खेत में लगातार पानी भरा रखने की आवश्यकता नही पड़ती है.

समय और श्रमिकों की बचत

सीधी बुवाई करने से रोपाई की तुलना में 30-40 श्रमिक प्रति हैक्टर की बचत होती है. इस विधि में समय की बचत भी हो जाती है क्योकि इस विधि में धान की पौध तैयार करने और रोपाई करने की जरूरत नही पड़ती हैं.

कम लागत में उपज बराबर

पौधशला के लिए खेत तैयार कर क्यारी बनाना, उर्वरक और सिंचाई की व्यवस्था करना, पौध उखाड़कर मुख्य खेत में रोपने हेतु मजदूरों पर होने वाला व्यय, खेत में कदवा करना आदि कार्यों में अधिक खर्च आता है. इस प्रकार सीधी बुवाई में अनावश्यक खर्चों से बचा जा सकता है. इस विधि से किसानों को प्रति हैक्टर करीब 10 हजार रूपये की बचत हो सकती है. धान की उपज रोपण विधि के बराबर अथवा अधिक आती है.

पर्यावरण सुरक्षा

धान की रोपाई वाली खेती पर्यावरण के लिए भी संकट खड़ा करती है. रोपण विधि में धान के खेत में लगातार पानी भरा रहने से मिथेन गैस का उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक है. ऐसे में पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से भी किसानों को धान की रोपाई छोड़कर सीधी बुवाई विधि को अपनाने की जरूरत होती है.

भूमि की भौतिक दशा

धान की खेती रोपाई विधि से करने पर खेत में कदवा करने की जरूरत पड़ती है जिससे भूमि के भौतिक गुणों जैसे मिट्टी की संरचना, मिट्टी सघनता तथा अंदरूनी सतह में जल की पारगम्यता आदि को खराब कर देती है जिससे भविष्य में मिट्टी की उपजाऊ क्षमता पर विपरित प्रभाव पड़ता है.

शीघ्र फसल परिपक्वता

रोपित धान की अपेक्षा सीधी बुवाई वाली फसल 7-10 दिन पहले पक जाती है, जिससे रबी फसलों की समय पर बुवाई की जा सकती है. अतः हम कह सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा की अनिश्चितता, मानसून में देरी और रोपण विधि से धान की खेती में बढ़ती लागत को ध्यान में रखते हुए. अब किसान भाइयों को धान की खेती सीधी बुवाई विधि से करना चाहिए. इससे अगली फसल की बुवाई के लिए पर्याप्त समय मिलने के साथ-साथ मजदूरों के खर्च में कमी, जल उपयोग में कमी, जमीन की उर्वरा शक्ति के संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलने के साथ-साथ भरपूर उत्पादन भी प्राप्त होगा.

उपज

धान की सीधी बुवाई से उन्नत किस्मों की उत्पादन क्षमता भी बढ़ जाती है, क्योकि उपज को प्रभावित करने वाले कारकों का इस पर प्रभाव कम पड़ता है. इसकी उपज लगभग 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है.

English Summary: context of climate change farmers can do direct sowing of paddy with advanced technology
Published on: 22 May 2024, 02:52 PM IST

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