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Updated on: 17 October, 2020 3:48 PM IST

जड़ वाली सब्जियों में गाजर का प्रमुख स्थान है. इसकी जड़ों का उपयोग सलाद, अचार, हलुआ, सब्जी के अलावा प्रसंस्कृत उत्पादों जैसे आचार, मुरब्बा,जैम, सूप, कैंडी आदि में किया जाता है. गाजर, एंटीऑक्सीडेंट, बीटा कैरोटीन का सर्वोत्तम स्त्रोत है. इसकी जड़ों का संतरी-लाल रंग बीटा कैरोटीन के कारण होता है. मानव शरीर में बीटा कैरोटीन, यकृत द्वारा विटामिन “ए” में परिवर्तित हो जाता है. गाजर औषधीय गुणों का भण्डार है, यह आँखों की अच्छी दृष्टि तथा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बनाये रखने में मदद करता है तथा साथ ही साथ रक्त के शुद्दिकरण व शरीर में क्षारीयता-अम्लीयता को संतुलित रखने एवं आंतों को साफ रखने में सहायक है. मैदानी भागों में गाजर की खेती रबी अर्थात सर्दियों के मौसम में जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फ पिघलने के बाद बसंत या ग्रीष्म ऋतु में की जाती है. भारत में गाजर मुख्यतः हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब और उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है.

किस्मों का चुनाव

उष्णवर्गीय: यह किस्में अधिक तापमान सहन कर लेती हैं.

1. पूसा रुधिरा: लाल रंग वाली किस्म तथा मैदानी क्षेत्रों में मध्य सितम्बर से बुवाई के लिए उपयुक्त.

2. पूसा आसिता: काले रंग वाली किस्म तथा मैदानी क्षेत्रों में मध्य सितम्बर से बुवाई के लिए उपयुक्त.

3. पूसा वृष्टि: लाल रंग वाली किस्म, अधिक गर्मी एवं आर्द्रता प्रतिरोधी व मैदानी क्षेत्रों में जुलाई से बुवाई के लिए उपयुक्त.

4. पूसा वसुधा: लाल रंग वाली संकर किस्म तथा मध्य सितम्बर से अक्टूबर तक बुवाई के लिए उपयुक्त.

5. पूसा कुल्फी: क्रीम रंग वाली किस्म तथा सितम्बर से अक्टूबर तक बुवाई के लिए उपयुक्त.

6. पूसा मेघाली: संतरी रंग वाली किस्म तथा मध्य सितम्बर से अक्टूबर तक बुवाई के लिए उपयुक्त.

शीतोष्णवर्गीय: इनकी जड़ें बेलनाकार, मध्यम लम्बी, पुंछनुमा सिरेवाली होती हैं. इन किस्मों को ठंडे तापमान की आवश्यकता होती है.

1. पूसा यमदग्नि: संतरी रंग वाली किस्म तथा सितम्बर से बुवाई के लिए उपयुक्त.

2. नैन्टीज: संतरी रंग वाली किस्म तथा सितम्बर से बुवाई के लिए उपयुक्त.

3. पूसा नयन ज्योति: संतरी रंग वाली संकर किस्म तथा सितम्बर से बुवाई के लिए उपयुक्त.

जलवायु: गाजर एक ठण्डी जलवायु की फसल है. बीज का जमाव 7 से 24oC तक आसानी से हो जाता है. गाजर के रंग तथा आकार पर तापक्रम का बहुत असर पड़ता है. अच्छे जड़ विकास एवं रंग हेतु 16-21oC तापक्रम उत्तम पाया गया है.

भूमि का चुनाव तैयारी: गाजर की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, परन्तु उचित जल निकास वाली जीवांशयुक्त रेतीली अथवा रेतीली दोमट मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है. बहुत ज्यादा भारी और ज्यादा नर्म मिट्टी गाजर की जड़ों के अच्छे विकास के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है. 6.5-7 पी. एच. मान वाली भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है. गाजर की अच्छी फसल के लिए भूमि को भली-भांति तैयार करना अत्यंत आवश्यक है. भूमि की लगभग 1 फुट की गहराई तक अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए. पहली गहरी जुताई डिस्क हल से करके 3-4 बार हैरो चलाकर पाटा लगा देना चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाये.

बीज दर : बीज की मात्रा बुवाई के समय, भूमि के प्रकार, बीज की गुणवत्ता, आदि पर निर्भर करती है, जो प्रति हेक्टेयर 5-8 किग्रा तक हो सकती है.

बुवाई का समय: गाजर की बुवाई जुलाई  से लेकर नवम्बर जा सकती है, परन्तु अक्टूबर में बोई जाने वाली फसल, उत्पादन तथा गुणवत्ता दोनों दृष्टि से सर्वोत्तम मानी जाती है.

बीज बुवाई: बुवाई हेतु उन्नतशील किस्मों के चुनाव के अलावा बीजों का स्वस्थ होना भी अत्यन्त आवश्यक है. बुवाई क्यारियों में 1-2 से.मी. गहराई पर 30-40 से.मी. के अंतराल पर बनी मेड़ों में करें और पतली मिट्टी की परत से ढक दें. बीजों को बारीक छनी हुई रेत में मिलाकर बुवाई करने से बीजों का वितरण समान होता है तथा बीज भी कम लगता है. बीज जमने के 30 दिन के बाद प्रत्येक पंक्ति में लगभग 6-8 से.मी. की दूरी छोड़कर फालतू पौधों को निकाल देना चाहिए, जिससे पौधों की बढ़वार के लिए पर्याप्त स्थान मिलता है तथा जड़ों का विकास भी अच्छा होता है.

खाद एवं उर्वरक: अच्छी पैदावार के लिए गाजर में बुवाई से लगभग 2-3 सप्ताह पूर्व खेत में 15-20 टन/हेक्टेयर पूर्णतया सड़ी हुई गोबर की खाद भली-भांति मिला दें तथा 100 किग्रा नत्रजन, 60 किग्रा फॉस्फोरस तथा 60 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें.  उर्वरकों को अंतिम जुताई के समय भूमि में मिलाकर आवश्यकतानुसार मेड़ें तथा क्यारियां बना लें. नत्रजन की आधी तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय तथा नत्रजन की शेष बची आधी मात्रा बुवाई के लगभग एक माह पश्चात निराई गुड़ाई के समय देना चाहिए.

सिंचाई: गाजर के बीज के जमाव में समय लगता है अतः बुवाई के पश्चात हल्की सिंचाई करनी चाहिये. भूमि में पर्याप्त नमी सुनिश्चित करने के लिए आवश्यकतानुसार 5-7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें तथा ध्यान रखें कि  नालियों की आधी मेड़ों तक ही पानी पहुंचे. कम सिंचाई से जड़ें सख्त हो जाती हैं और इनमें कसैलापन भी आ सकता है तथा आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से गाजर की जड़ों में मिठास की कमी हो जाती है.

खपतवार नियंत्रण: फसल को बुवाई से लगभग 4-6 सप्ताह तक खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए. बुवाई के तीसरे एवं पाँचवे सप्ताह में खरपतवार निकलने के साथ-साथ खुरपी से गुड़ाई कर मेड़ों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिये.

तुड़ाई/खुदाई एवं उपज: गाजर बुवाई के लगभग ढाई से तीन महीनों के बाद तुड़ाई/खुदाई के लिए तैयार हो जाती है. जड़ों के तैयार हो जाने पर हल्की सिंचाई देकर अगले दिन खुदाई करनी चाहिये. खुदाई हमेशा ठंडे मौसम में अर्थात सुबह के समय करनी चाहिये. गाजर की औसतन 25-30 टन प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त जाती है.

कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी

गाजर को मुलायम अवस्था में खेत से निकालें. खुदाई के बाद पत्तियों को हटाकर धुलाई कर, श्रेणीकरण करें. श्रेणीकृत गाजरों को प्लास्टिक की थेलियों या क्रेट में भरकर बाजार भेजें. अगर भण्डारण की आवश्यकता हो तो 3-4 oC तापमान एवं 85-90 प्रतिशत आर्द्रता पर शीतगृह में रखें. 

प्रमुख रोग एवं कीट प्रबंधन

सर्कोस्पोरा पर्ण अंगमारी (सर्कोस्पोरा कैरोटेई): इस रोग के लक्षण पत्तियों, पर्णवृंतों तथा फूल वाले भागों में दिखाई पड़ते हैं. रोगी पत्तियां मुड़ जाती हैं. पत्ती की सतह तथा पर्णवृंतों पर बने दागों का आकार अर्ध गोलाकार, धूसर, भूरा या काला होता है. फूल वाले भाग बीज बनने से पहले ही सिकुड़ कर खराब हो जाते हैं.

प्रबंधन: खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करें. स्वस्थ एवं प्रमाणित बीजों का प्रयोग करें. बीजों को बुवाई के समय कवकनाशी द्वारा उपचारित करें. फसल में लक्षण दिखने पर क्लोरोथैनोलिन 2 किग्रा का एक हजार लीटर पानी में घोल बनाकर, प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

स्क्लेरोटीनिया विगलन (स्क्लेरोटीनिया स्क्लेरोशियोरम): इस रोग में पत्तियों, तनों एवं डंठलों पर सूखे धब्बे उत्पन्न होते हैं तथा रोगी पत्तियां पीली पड़कर झड़ जाती हैं. कभी-कभी सारा पौधा भी सूखकर नष्ट हो जाता है. फलों में रोग के लक्षण शुरुआत में सूखे दाग के रूप में आते हैं तथा बाद में कवक गूदे में तेजी से बढ़ती है और पूरे फल को सड़ा देती है.

प्रबंधन: बीज को बुवाई से पूर्व ट्राइकोडर्मा @ 0.6- 1% की दर से उपचारित करें तथा संक्रमित पौधों के मलवे को निकलकर नष्ट कर दें. गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें तथा फसल चक्र अपनाएं.

गाजर की सुरसुरी (कैरट वीविल)

इस कीट के शिशु गाजर के ऊपरी हिस्से में सुरंग बनाकर नुकसान पहुंचाते हैं.

प्रबंधन: कीट की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. 1 मि.ली. / 3 लीटर या डाइमेथोएट 30 एस. एल. 2 मि.ली. / 3 लीटर का छिड़काव करें.

लेखक: डॉ. पूजा पंत, सहायक प्राध्यापक, कृषि संकाय, एस.जी.टी. विश्वविद्यालय, गुरुग्राम, हरियाणा 

English Summary: Complete knowledge of carrot farming and advanced varieties
Published on: 17 October 2020, 03:56 PM IST

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