भारत में किसान बागवानी की फसलों से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. देश में सेब के बाद नाशपाती के फल को प्राथमिकता दी जाती है. नाशापाती एक मौसमी फसल है और इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक माना जाता है. साथ ही नाशपाती के अच्छे उत्पादन से किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. नाशपाती की खेती ठंडे जलवायु वाले क्षेत्र में बंपर उत्पादन देती है. आंकड़ो पर नजर डालें तो किसान केवल एक पेड़ से 1 से 2 क्विंटल नाशपाती के फल प्राप्त कर सकते हैं.
नाशपाती के फायदे
नाशपाती में भरपूर मात्रा में आयरन और फाइबर पाया जाता है. कहा जाता है कि नाशपाती के सेवन से शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ती है साथ ही शरीर से बेड कोलेस्ट्रॉल खत्म होता है. जिसे लेकर बाजार में इसकी मांग काफी अधिक रहती है.
यहां होती है नाशपाती की खेती
नाशपाती की खेती के लिए ऊंचाई वाले क्षेत्र उपयुक्त माने जाते हैं. लेकिन भारत में नाशपाती की खेती जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्ताराखंड और मध्यप्रदेश में की जाती है. देखा जाए तो पूरे विश्व में नाशपाती की कुल 3 हजार से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें भारत में 20 से अधिक नाशपाती की किस्में मौजूद हैं.
नाशपाती की उन्नत किस्में
भारत में नाशपाती की 20 से अधिक किस्मों की खेती की जाती है, जिसमें अगेती किस्में में थम्ब पियर, लेक्सटन सुपर्ब, कोसुई, शिनसुई, अर्ली चाईना और सीनसेकी आदि मुख्य हैं. वहीं नाशपाती की पछेती किस्मों में काश्मीरी नाशपाती, कान्फ्रेन्स (परागण), और डायने डयूकोमिस आदि प्रमुख हैं.
इसके अलावा भारत के निचले क्षेत्र और मध्यवर्ती भाग में नाशपाती की गोला, होसुई, कीफर (परागण), पंत पीयर-18, पत्थर नाख, और चाईना नाशपाती की अच्छी उपज प्राप्त होती है.
नाशपाती के लिए जलवायु
नाशपाती की खेती के लिए 10-25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त है. साथ ही वर्षा वाले मौसम में नाशपाती की खेती खूब फलती है. नाशपाती की खेती के लिए 50-75 मिमी वर्षा होनी जरूरी है. नाशपाती की बुवाई के लिए 10-18 डिग्री सेल्सियस तापमान होना जरूरी है.
नाशपाती की खेती के लिए मिट्टी
नाशपाती की खेती के लिए गहरी मिट्टी और मध्यम बनावट वाली बलुई दोमट उपयुक्त मानी जाती है. साथ ही मिट्टी की पीएच लेवल 7 से 8.5 के बीच होना चाहिए. किसानों को नाशपाती की खेती करने से पहले अपने खेत की मिट्टी की जांच जरूर करवानी चाहिए.
नाशपाती का बुवाई का समय
नाशपाती की बुवाई जनवरी माह तक खत्म कर लेनी चाहिए. 1 साल का पौधा रोपण के लिए उपयुक्त माना जाता है. ध्यान रहे कि रोपण के वक्त पौधे से पौधे की दूरी 8X5 मीटर की होनी चाहिए. साथ ही खेत में उपयुक्त जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए
नाशपाती के लिए खेती की तैयारी
पौधों के उन्नत विकास के लिए जरूरी है कि उसकी नींव सही हो. इसी प्रकार नाशपाती की खेती के लिए सबसे पहले खेत की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लें. जिसके लिए कल्टीवेटर का उपयोग करके खेत की 2-3 बार गहरी जुताई कर लेनी चाहिए. अब खेत में पानी छोड़ दें और फिर मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए रोटावेटर की सहयता से खेत की 2-3 बार जुताई कर लें.
नाशपाती के पौधों की रोपण विधि
नाशपाती के पौधों की रोपाई से पहले खेत में 1X1x1 मीटर का गड्ढा खोद लें. फिर गड्ढों को भरने के लिए मिट्टी में सड़ी हुई गोबर की खाद अच्छे से मिलाकर उसमें डाल दें. फिर आखिर में गड्ढों में 10 किलो गाय का सड़ा हुआ गोबर मिला लें.
नाशपाती पौधे की सिंचाई
बुवाई के बाद जरूरी है कि पौधों को नियमित रूप से पानी मिलता रहे. इसी प्रकार से नाशपाती के पौधों के लिए रोपाई के बाद नियमित रूप से सर्दियों में 15 दिनों के अंतराल में और गर्मियों में 5-7 दिनों के बीच सिंचाई करनी चाहिए. इसके अलावा नाशपाती के पेड़ को एक साल में 75 से 100 सेंटीमीटर बारिश की जरूरत होती है.
नाशपाती में कीट और उनका नियंत्रण
स्पाइडर घुन- यह घुन पत्तियों को खाता है और उसका रस चूसता है जिससे पत्तियां का रंग पीला पड़ जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए 1.5 ग्राम/ घुलनशील सल्फर या 1 मिली/ प्रोपरजाइट या 1 मिली फेनाजाक्विन, या 1.5 मिली डाइकोफोल को प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव करें.
हूपर:
यह रोग भी पत्तियों से रस चूसता है. संक्रमण होने पर फूल चिपचिपे हो जाते हैं और काली फफूंद प्रभावित भागों पर नजर आने लगती है. इसके लिए 1 किग्रा कार्बरिल या 200 मि.ली. डाइमेथोएट को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
एफिड और थ्रिप्स-
ये पत्तियों से रस चूसते हैं और पत्तियों को पीला कर देते हैं. वे शहद की तरह पदार्थ स्रावित करते हैं और प्रभावित क्षेत्रों पर काली फफूंद विकसित हो जाती है. इसके लिए 60 मि.ली. इमिडाक्लोप्रिड या फिर 80 ग्राम थियामेथोक्सम को 150 लीटर पानी में मिलाकर फरवरी के अंतिम सप्ताह में जब फसल में पत्ते निकलने शुरू हों तब स्प्रे करें. दूसरा स्प्रे मार्च महीने में पूरी तेजी के साथ करें और तीसरा फल बनने की अवस्था में करें.
नाशपाती पपड़ी:
पत्तियों के नीचे गहरे फफूंदीदार धब्बे देखे जाते हैं. बाद में ये ग्रे कलर में बदल जाते हैं. अंत में पत्ते गिरने लगते हैं और इसका असर फलों पर भी देखने को मिलता है. इसके नियंत्रण के लिए 2 ग्राम कैप्टान स्प्रे को प्रति लीटर पानी में मिलाकर संक्रमित फलों व पौधे पर छिड़क दें तथा संक्रमित पत्तों और फलों को हटा दें.
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नाशपाती की उपज
बुवाई के लगभग 145 दिनों के बाद नाशपाती के फल परिपक्व हो जाते हैं. जिसके बाद आप इसे तोड़ कर मंडियों में भेज सकते हैं. नाशपाती के एक पेड़ से लगभग 1 से 2 क्विंटल उत्पादन मिल सकता है. इसी प्रकार एक एकड़ जमीन से आपको 400 से 700 क्विंटल उत्पादन प्राप्त हो सकता है.