सांवा की फसल भारत की प्राचीन फसल है जो असिंचित क्षेत्रो में बोई जाने वाली सूखा प्रतिरोधी फसल कहलाती है. असिंचित क्षेत्रो में बोई जाने वाली मोटे अनाजों में सांवा का अहम स्थान है. इसमे पानी की जरूरत अन्य फसलों की अपेक्षा कम होती है. सांवा का उपयोग चावल की तरह किया जाता है. साथ ही इसका चारा पशुओं को बहुत पसंद आता है. इसमे चावल की तुलना में पोषक तत्वों के साथ-साथ प्रोटीन की पाचन योग्यता 40 फीसदी तक होती है. इसलिए खेती भी फायदेमंद मानी जाती है.
जलवायु और मिट्टी - सांवा की फसल कम उपजाऊ वाली मिट्टी में भी बोई जा सकती हैI जिसे नदियों के किनारे की निचली भूमि में भी उगाया जा सकता है. लेकिन बलुई दोमट और दोमट भूमि सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है. वहीं सांवा के लिए हल्की नम और उष्ण जलवायु उपयुक्त होती है. यह एक खरीफ मौसम की फसल है.
खेत की तैयारी - मानसून शुरू होने से पहले खेत की जुताई करना जरूरी होता है बारिश होने पर पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या फिर देशी हल से करके खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए. पहली जुताई में 50-100 क्विंटल कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए.
बुवाई - सांवा की बुवाई का सबसे अच्छा समय 15 जून से 15 जुलाई तक होता है मानसून शुरू होने पर इसकी बुवाई कर देनी चाहिए. सांवा की बुवाई ज्यादातर छिटकवा विधि से करनी चाहिएI लेकिन बुवाई कूड़ बनाकर 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए. कुछ जगहों पर रोपाई भी करते है लाइन से लाइन की दूरी 25 सेंमी रखनी चाहिए.
सिंचाई - सांवा की खेती में सिंचाई की जरूरत नहीं होती क्योंकि यह खरीफ अर्थात वर्षा ऋतू की फसल होती है लेकिन काफी समय तक बारिश न होने पर फूल आने की अवस्था में एक सिंचाई करना बहुत जरूरत होती है जल भराव की स्थिति वाली भूमि में जल निकास होना जरुरी है.
कटाई और मड़ाई- सांवा की फसल पकाने पर ही कटाई हसिया से पौधे सहित करनी चाहिए. इसके छोटे-छोटे बण्डल बनाकर खेत में ही एक सप्ताह तक धूप में अच्छी तरह सुखाकर मड़ाई करना भी जरूरी होता है.
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पैदावार - इसकी पैदावार में दाना 12- 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और भूसा 20 - 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलता है. और बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिलती है सांवा का चावल क़रीब 100 से 120 रूपए किलोग्राम बिकता है.