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Updated on: 4 May, 2020 1:51 PM IST

भारत में लौंग का प्रयोग कई तरह की बीमारियों में बहुत पहले से होता रहा है. यह एक सदाबहार पेड़ है, जो सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी है. किसानों के लिए लौंग इसलिए भी फायदेमंद है, क्योंकि एक बार लगाने के बाद यह कई सालों तक उपज देता रहता है. वैसे तो देश के सभी हिस्सों में इसकी खेती होती है, लेकिन तटीय रेतीले इलाकों को विशेषकर इसकी खेती के लिए ही जाना जाता है. चलिए आपको बताते हैं कि कैसे कम पैसों में आप लौंग की अधिक उपज पा सकते हैं

जलवायु एवं मिट्टी

उष्णकटिबंधीय जलवायु को लौंग की खेती के लिए उपयुक्त माना गया है. इसके पौधों को बारिश की जरूरत पड़ती है. इसलिए रोपण का कार्य जून-जुलाई में करना बेहतर है. ध्यान रहे कि इसके पौधों को अधिक धूप की जरूरत नहीं होती, तेज़ धूप और सर्दी से इन्हें खास बचाने की जरूरत है. इसकी खेती छायादार जगहों पर अधिक लाभदायक है.

इसकी खेती नम कटिबंधीय क्षेत्रों की बलुई मिट्टी पर की जा सकती है. लेकिन ध्यान रहे कि लौंग के पौधों के लिए जल भराव वाली मिट्टी सही नहीं है. पानी के भरने से पौधों को नुकसान होता है और इससे पौधे खराब हो जाते हैं.

रोपण

लौंग के पौधों का रोपण मानसून के वक्त किया जाना चाहिए. पौधे को रोपने के लिए करीब 75 सेंटीमीटर लम्बा, चौड़ा और गहरा गड्डा खोदना सही है. एक गड्डे से दूसरे गड्डे की दूरी करीब 6 से 7 सेंटीमीटर होनी चाहिए.

सिंचाई

लौंग के पौधों को गर्मियों में लगातार सिंचाई की जरूरत पड़ती है. मानसून के वक्त जरूरत अनुसार सिंचाई की जा सकती है, बस ध्यान रहे कि खेती में जलभराव न होने पाए.

फलों की तुड़ाई 

लौंग के पौधों से करीब 4 से 5 साल में फल प्राप्त होना शुरू हो जाता है. इसके फल पौधों पर गुच्छों के रूप में लगते हैं. इनका रंग लाल गुलाबी होता है और इन्हें फूलों के खिलने से पहले ही तोड़ना होता है.

English Summary: Clove farming is very beneficiary for farmers this method of Clove farming can give double profit
Published on: 04 May 2020, 01:56 PM IST

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