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Updated on: 27 January, 2023 4:41 PM IST
चन्द्रशूर की खेती कैसे करें?

रबी फसलों के सीजन में बारानी और सिंचित स्थितियों में खेती किए जाने वाला चन्द्रशूर एक बहुत गुणकारी और लाभकारी औषधीय पौधा है. सरसों ( क्रुसीफेरी) कुल से संबन्धित चन्द्रशूर पौधे को हालिम, हलम, असालिया, रिसालिया, असारिया, हालू, अशेलियो, चनसूर, चन्द्रिका, आरिया, अलिदा, गार्डन-कैस और लेपिडियम सेटाइवम आदि नामों से भी जाना जाता है. चन्द्रशूर की खेती उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश में व्यावसायिक स्तर पर की जाती है. चन्द्रशूर लगभग 2 से 3 फुट ऊंचाई प्राप्त करके लाल-लाल बीज उत्पन्न करता है. चन्द्रशूर के नौकाकार और बेलनाकार बीजों को पानी में भिगाने से लसदार पदार्थ उत्पन्न होता है.

चंद्रशूर की खेती करने के लिए अच्छे जल निकास और सामान्य पी एच मान वाली बलुई-दोमट मिट्टी में इसकी खेती होती है. मुख्य रूप से चन्द्रशूर की खेती रबी सीजन वाली फसलों के साथ की जाती है.

चन्द्रशूर को बारानी और असिंचित अवस्था में पलेवा की गई नमी युक्त मिट्टी में बिजाई की जाती है. चन्द्रशूर की बिजाई अक्तूबर के दूसरे पखवाड़े में की जा सकती है, सिंचित अवस्था में ही चंद्रशूर की बिजाई की जाए तो वह सर्वोत्तम रहती है. इसके बीज बहुत छोटे होते हैं, इसलिए एक एकड़ के लिए लगभग 1 से 2 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है.

चन्द्रशूर की खेती के लिए खेत की तैयारी

चंद्रशूर की खेती के लिए सिंचित बलुई दोमट मिट्टी पर दो बार हैरो चलाई जाती है और भुरभुरी मिट्टी पर एक बार सुहागा (कृषि यंत्र) चलाना अत्यंत जरूरी है.

चंद्रशूर की बिजाई का तरीका

चंद्रशूर की बिजाई लाइनों से लाइनों की दूरी 30 सेंटीमीटर और बीज की गहराई 1 से 2 सेंटीमीटर ही रखें. बीज अधिक गहरा डालने पर अंकुरण पर दुष्प्रभाव पड़ने से कम जमाव होने का खतरा रहता है.

चन्द्रशूर की खेती के लिए खाद और उर्वरक

किसानों को चन्द्रशूर की खेती करने से पहले खेतों में लगभग 6 टन गोबर की अच्छी गली सड़ी खाद प्रति एकड़ खेत में डालनी चाहिए. 20 किलोग्राम नत्रजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस और आवश्यकतानुसार पोटाश खाद चंद्रशूर की बिजाई के वक्त डालें.

चन्द्रशूर की खेती में सिंचाई प्रबंधन

चन्द्रशूर फसल की अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. चंद्रशूर की फसलों को 2 से 3 सिंचाइयां ही काफी होती हैं. चंद्रशूर का बीज जमाव के समय खेत में पर्याप्त नमी रहना आवश्यक है. जिसके कारण किसानों को हल्की सिंचाई करना जरूरी होता है. वहीं अगर सर्दी की वर्षा हो जाए तो सिंचाइयों की संख्या कम हो जाती है.

चन्द्रशूर की खेती में खरपतवार रोकथाम

चन्द्रशूर की स्वस्थ फसल प्राप्त करने के लिए दो निराई-गुड़ाई बिजाई के क्रमशः 3 और 6 सप्ताह बाद करनी चाहिए. लाईनों में बोई गई फसल में बाद में भी खरपतवार दिखाई दे सकते हैं, जिन्हें खुरपी, दरांती या हाथ आदि से निकाला जा सकता है.

चन्द्रशूर की खेती में कीट और रोग नियंत्रण

चन्द्रशूर की खेती में पाऊडरी मिल्ड्यू की शिकायत आ जाती है, ऐसी अवस्थाओं में चंद्रशूर की फसल को बचाने के लिए एक मिलीलीटर मैलाथियान प्रति लीटर पानी के साथ सल्फर छिड़काव करते हैं. पाऊडरी मिल्ड्यू से बचाने के लिए सल्फर डस्ट का छिड़काव करें.

चन्द्रशूर फसल की कटाई और गहाई

चन्द्रशूर की फसल कटाई बीजाई के 110 से 120 दिन होने लगती है. चंद्रशूर की पत्तियां जब पीली होने लग जाए और बीज का रंग लाल हो जाए तो चंद्रशूर की फसल कटने के लिए तैयार हो जाती है. किसान चंद्रशूर की फसलों को कटाकर दो दिन सुखाते हैं और फिर उसकी गराई करते हैं.

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चन्द्रशूर की फसल से पैदावार

चन्द्रशूर की उपरोक्त विधि से खेती करने पर प्रति एकड़ 7 से 9 क्विंटल बीज प्रति एकड़ प्राप्त होता है. चन्द्रशूर को बरसीम में मिलाकर भी उत्तम चारे के लिए छिड़काव किया जा सकता है. बरसीम में जई, जापानी सरसों, चाइनीज़ कैबेज एवं इसको भी साथ मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है.

English Summary: chandrashur powder farming benefits and Disadvantages
Published on: 27 January 2023, 04:50 PM IST

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