कुछ पौधों के बीज फलों, फलियों या पौधों से निकालने के बाद नमी, तापमान एवं वातन आदि की अनुकूल परिस्थितियों में अंकुरित हो जाते हैं, परन्तु कुछ पौधों के बीज इन अनुकूल परिस्थितियों में भी अंकुरित नहीं होते हैं. बीज की इस अवस्था को बीज सुषुप्तावस्था कहते हैं. कभी-कभी कुछ पौधों की प्रजातियों के बीज अनुकूल परिस्थितिया मिलने के बाद भी अंकुरित नहीं होते हैं बीज की इस स्थिति को सुषुप्तावस्था कहते हैं.
इस परिस्थिति का कारण यह है कि कुछ पौधों के बीज को अंकुरण से पहले पर्याप्त आराम अवधि की आवश्यकता होती हैं. यह अवधि दिनों से लेकर वर्षो तक अलग-अलग हो सकती हैं. यह स्थितियां जल, प्रकाश, तापमान, वायु, बीजावरण, यांत्रिक प्रतिबंध, और हार्मोन संरचाओं का जटिल मिश्रण हैं. बीज की सुषुप्तावस्था किसान के लिए हानिकारक भी हैं और लाभदायक भी हैं. हानिकारक इसलिए है कि अगर वह इस बीज की तुरन्त बुवाई करना चाहें तो नहीं कर सकते हैं. इसके लिए किसान को बीज की सुषुप्तावस्था भंग करने वाले या तोड़ने वाले उपचार करने पड़ते हैं. जबकि लाभदायक इसलिए की सुसुप्त बीज को किसान भण्डारित कर कई वर्षो तक बीजाई एवं खाने के लिए उपयोग कर सकता है.
सुसुप्ता अवस्था के प्रकार
मुख्य रूप से बीज में उपस्थित अंकुरण नियंत्रण तंत्रों के और बाहरी वातावरण में उगने के कारण बीज को विभिन्न प्रकार की सुसुप्ता अवस्था का सामना करना पड़ता हैं. ये इस प्रकार हैं-
1. बर्हिजात या बाहरी सुसुप्तावथा
2. अंर्तजात या आन्तरिक सुषुप्तावस्था
3. दोहरी सुषुप्तावस्था
बर्हिजात या बाहरी सुसुप्तावथा
इस प्रकार की सुषुप्तावस्था बीज के आवरण के कारण होती है. बीज का आवरण जो बीज को बाहरी वातावरण से सुरक्षा प्रदान करता है उसमें कई शारीरिक, यांत्रिक और रासायनिक बाधाओं की उपस्थिति होती हैं जिनके कारण बीज का अंकुरण नहीं हो पाता है. जिनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है-
अ. भौतिक सुषुप्तावस्था
इस प्रकार की सुषुप्तावस्था में बीज आवरण और कभी-कभी बीज को ढकने वाला कठोर भाग जल, वायु एवं गैसों के लिए अपारगम्य हो जाता है जो अंकुरण प्रक्रिया के लिए प्रमुख शारीरिक प्रक्रियाओं को रोकता हैं. इस अपार गम्यता के कारण जल एवं वायु बीज के भीतर प्रवेश नहीं कर पाते हैं जिससे बीज अंकुरित नहीं हो पाता है. बीज के आवरण के कारण सुषुप्तावस्था वाले बीज तब तक अंकुरित नहीं होते जब तक कि अपारगम्य आवरण या अवरोध कमजोर या प्रतिस्थापित नहीं हो जाते हैं. हालांकि बीज का भ्रूण सुसुप्त नहीं हैं, परन्तु एक जल अपारगम्य या अभेद्य आवरण द्वारा ढ़क लिया गया है.
इस प्रकार की सुसुप्ता अवस्था लेग्यूमिनेसी, सोलेनेसी एवं मालवेसी कुल के पौधों में सामन्य रूप से पायी जाती है.
ब. यांत्रिक सुषुप्तावस्था
इस प्रकार की सुसुप्ता अवस्था में बीज आवरण इतना कठोर होता है कि वे अंकुरण के दौरान भ्रूण को बढ़ने नहीं देता हैं. बीज आवरण कभी किसी भी प्रजाति में सुसुप्ता अवस्था एकमात्र का कारण नहीं हो सकता है, लेकिन कठोर आवरण अन्य कारकों के साथ मिलकर अंकुरण में देरी कर सकते हैं. इस प्रकार के बीजों में बीज आवरण; गुठली वाले फलों की गुठली एवं खोल वाले फलों के बीजों के खोल जल और गैसों के लिए प्रत्यक्ष रूप से पारगम्य है, लेकिन वे इतने कठोर होते हैं कि भ्रूण को बढ़ने नहीं देते हैं. अतः बीज का अंकुरण तो होता है पर अंकुर बीज आवरण को तोड़ नहीं पाता है, क्योंकि बीजावरण बहुत अधिक यांत्रिक प्रतिरोधी होते हैं जिस कारण अंकुरण तब तक नहीं होता जब तक कि बीज आवरण को मुलायम या नरम नहीं किया जाता है.
स. रासायनिक सुषुप्तावस्था
पौधों के विभिन्न भागों में कई प्रकार के रासायनिक वृद्धि अवरोधक पाये जाते हैं तथा वे वहां से स्थानान्तरित होकर बीज के आवरण में भी आ जाते हैं बीजों को अंकुरित नहीं होने देते हैं. जैसे कुछ पौधों के तनों में, कुछ पौधों की पत्तियों में, कुछ के फलों में, कुछ की जड़ों में तो कुछ के बीजों में पाये जाते हैं. बीजों में कुछ रसायन उपस्थित होते हैं जो अकुरण को रोक देते हैं. कई रासायनिक अवरोधको को पौधों के विभिन्न हिस्सो से निकाला गया है जो बीज के अंकुरण को रोकते हैं. कुछ निरोधात्मक रसायन फल एवं बीज आवरण में उत्पादित एवं संचित होते हैं. वृद्धि अवरोध से संबधित कुछ पदार्थ हैं- जैसे विभिन्न फिनाल, कामेरिन एवं एब्सिसिक अम्ल आदि.
कभी-कभी मांसल फलों में फल रस बीज के अंकुरण को रोक देता है. यह खट्टे फल, गुठली वाले फल, सेब, नाशपाती, टमाटर में सामान्यः पाया जाता है.
बर्हिजात या बाहरी सुसुप्तावथा
कई बीजों में सुसुप्ता अवस्था बीज के आन्तरिक ऊतको के कारण होती है. बीज की सुषुप्तावस्था बीज के भीतर उपस्थित आन्तरिक जीवित ऊतको के कारण होती है. यह सुषुप्तावस्था दो प्रकार की होती हैं-
अ. शारीरिक दैहीक सुषुप्तावस्था
कई समशीतोष्ण फलों (जैसे नाशपाती, सेब, आडू, चैरी और खुबानी) सब्जियों और फूलों में शारीरिक सुसुप्ता अवस्था पाई जाती है. शारीरिक सुषुप्तावस्था एक से छः महिने तक रहती है जो बीजों का भण्डारण करने से समाप्त की जा सकती है. इन प्रजातियों के बीजों में निष्क्रिय भ्रूण होते हैं इसलिए वे अनुकूल परिस्थितियों में भी अंकुरित नहीं होते हैं, क्योंकि ऐसे बीजों को अंकुरण योग्य होने के लिए कुछ समय विश्राम की आवश्यकता होती है. जब बीज अपना विश्रामवस्था पूरी कर लेते हैं तब वे अनुकूल परिस्थितियां मिलने पर अंकुरित हो जाते हैं.
इस प्रकार की सुसुप्ता अवस्था गर्मी की संवेदनषीलता के कारण भी हो सकती है जिसमें तापमान का बीज अंकुरण पर सीधा प्रभाव पड़ता है या प्रकाश संवेदनशीलता के कारण. कुछ प्रजातियों के बीजों को अंकुरित होने के लिए प्रकाश या अंधेरे की आवश्यकता होती है.
ब. आकारिकी सुषुप्तावस्था
इस प्रकार की सुसुप्ता अवस्था में फल पकते समय या बीज की परिपक्वता के समय बीज के भीतर भ्रूण अल्पविकसित या अविकसित अवस्था में रहता है. अगर इस समय फल या फली से बीज निकालकर तुरन्त उनकी बुआई की जाती है तो ऐसे बीज अंकुरित नहीं होते हैं. ऐसे बीजों को कुछ समय तक रखा जाता है जिससे उनके भीतर का भ्रूण पूर्ण विकसित हो जाये. ऐसी प्रजातियों के फलों या फलीयों से बीज नकालने के बाद भी भ्रूण विकसित होता रहता है .
दोहरी सुसुप्तावथा
कुछ पौध प्रजातियों के बीजों में दोहरी सुषुप्तावस्था होती है. इन बीजों में सुषुप्तावस्था आन्तरिक एवं बाहरी दोनों प्रकार की स्थितियों के कारण होती है. कुछ प्रजातियों में कठोर अभेद्य बीज आवरण एवं आन्तरिक सुषुप्तावस्था दोनों पाये जाते हैं. अतः इसे दोहरी सुषुप्तावस्था कहा जाता है.
बीज की सुषुप्तावस्था को कम करने के उपाय
बीजों की सुषुप्तावस्था को तोड़ने या कम करने के लिए विभिन्न तरीकों को विकसित किया गया है, कुछ ऐसे ही तरीकों का एक संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है -
बीज आवरण को मुलायम करना
जैसा की हमने जाना की सुषुप्तावस्था बीज आवरण के कारण होती है. अतः बीज आवरण एवं अन्य आवरणों को मुलायम करने से बीज के अन्दर पानी और गैसों के बेहतर अवषोशण में मदद मिलती है, जिसके परिणामस्वरूप बीजों का बेहतर अंकुरण होता है. बीजों को एक प्रक्रिया द्वारा जल एवं वायु के लिए पारगम्य बनाया जाता है. इस प्रक्रिया को स्कॅरीफिकेशन (खरोचना) कहा जाता है.
अ. खरोचना
यह बीज के कठोर आवरण एंव अन्य आवरणों को खरोचने, तोड़ने, छिलने या मुलायम करने की प्रक्रिया है, जिसमें उन्हें पानी एवं गैसों के लिए पारगम्य बनाया जाता है. बीजों के खरोचने के विभिन्न तरिके हैं-
क. यांत्रिक खरोचना
यांत्रिक खरोचना में बीजों को किसी खुरदरी सतह या रेगमाल पर रगड़ कर या क्षतिग्रस्त कर उनके बीजआवरण को मुलायम किया जाता है जिससे वे जल एवं गैस के प्रति पारगम्य हो जाते हैं. बड़े पैमाने पर खरोचने के लिए यांत्रिक खरोचने का उपयोग किया जाता है. खरोचने के बाद बीज को सुखा कर भण्डारित कर सकते है अथवा तुरन्त बुआई करनी चाहिए अन्यथा इन पर रोगों एवं कीटो का आ्क्रमण अधिक होता है, क्योंकि खुरचने के कारण इनकी सतह खुल जाती है जिस पर आक्रमण असानी से हो जाता है.
ख. अम्ल द्वारा खरोचना
सान्द्र सल्फरिक अम्ल के साथ सुखे बीजों का उपचार बीजों के कठोर आवरण एवं अन्य आवरणों को मुलायम करने के लिए एक प्रभावी साधन है. इस प्रक्रिया में बीजो को एक कांच, प्लास्टिक, गैर-धातु या लकड़ी के पात्र में 1:2 के अनुपात में सान्द्र सल्फूरिक अम्ल में रखा जाता है. पात्र में बीजों को अम्ल के प्रभाव से बचाने के लिए बीजों को लगातार चालाना चाहिए. अलग-अलग प्रजातियों के बीजों के आधार पर बीजों को उपचारित करने का समय 5 मिनट से लेकर 6 घण्टे तक हो सकता है.
ग. गर्म जल द्वारा खरोचना
इस विधि में बीजों को 12 घण्टे के लिए 77 डिग्री सेंटीग्रेड के गर्म पानी में रखा जाता है. इसमें बीज एवं पानी का अनुपात 1:5 होना चाहिए. जब बीजों को पानी में भिगोया जाता है तो अन्त-शोषण के कारण बीज फुलता है एवं आवरण कमजोर पड़ जाता है. फुले हुए बीजों को तुरन्त बुआई के लिए इस्तेमाल किया जाता है एवं बिना फुले हुए बीजों को छोड़ देना चाहिए क्योंकि ये अंकुरित नहीं होते हैं.
घ. गर्म नम माध्यम द्वारा खरोचना
इस विधि में बीजों को गर्म एवं नम माध्यम में कई महिनों तक रखने से सूक्ष्म जीवाणुओं की गतिविधियों के माध्यम से बीज आवरण और अन्य आवरणों को मुलायम किया जा सकता है . यह उपचार दोहरी सुषुप्तावस्था वाले बीजों में सुषुप्तावस्था को कम के लिए अत्यधिक लाभदायक है. इस उपचार में कठोर बीजों को गर्मियों में मिट्टी में रखा जाता है जब मृदा का तापमान अधिक रहता है जो आमतौर पर अंकुरण की सुविधा देता है.
ङ. अपरिपक्व फलों की तुड़ाई करना
जिन प्रजातियों के बीज में कठोर बीज आवरण बनता है उनके बीजों के अपरिपक्व अवस्था में ही फलों सा पौधे से निकाल लिया जाता है, जिससे उनके बीज का आवरण कठारे नहीं हो पाता है. इस तरह के बीजो को फल से निकालने के बाद तुरन्त बोया जाना चाहिए.
ब. स्तरिकरण
यह एक विश्व प्रसिध्द बागवानी क्रिया है जिसमें बीजों के भ्रूण को परिपक्व या पकने के बाद एक निश्चित मात्रा में ठण्डे (5-10 डिग्री सेल्सियस) तापमान में रखा जाता है. आमतौर पर स्तरिकरण के पर्याय के रूप में नम द्रुतशीतन शब्द का उपयोग किया जाता है. स्तरिकरण निम्न तरिको से किया जा सकता है-
क. प्रशीतित स्तरिकरण
इस विधि में बीजों का पहले 12-24 घण्टे के लिए गर्म पानी में भिगोया जाता है और जब बीज पूरी तरह से फूल जाते हैं तब इनको रेत या स्फॅगनम मास (एक प्रकार की घास) में 1:3 कें अनुपात में रखते हैं. रेत या स्फॅगनम मास बीज को नमी बनाए रखते हैं एवं पर्याप्त वातन प्रदान करते हैं. बीजों को रेत या स्फॅगनम मास में मिलाने के बाद एक छिद्रित बक्से या डिब्बे में भर दिया जाता है एवं उपर से एक छिद्रित ढक्कन से ढक दिया जाता है. अब इस बक्से को 100 सेल्सियस पर फ्रीज में प्रतिशत के लिए रखा जाता है. आगे जब बीज अंकुरित हो रहे हो तो बीजों को कम भंडारण तापमान पर स्थानान्तरित किया जाना चाहिए. यह उपचार अधिकतर समशीतोष्ण फसलों के बीजों सुषुप्तावस्था पर नियंत्रण पाने में बहुत सहायक है.
ख. बाहरी स्तरिकरण
यह विधि वहां प्रयोग में लाई जाती है जहा प्रशीतित भण्डारण की सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती है. इस विधि में जमीन में एक उचित आकार का एक गहरा गड्डा खोदा जाता है या उठी हुई क्यारी बनाई जाती है. इन गड्डो या क्यारीयों में अन्दर की और दिवारों एवं फर्श को लकड़ी से ढक दिया जाता है. अब तुड़ाई या कटाई किये बीजों को इसके अन्दर भरकर उपर से लकड़ी से ढ़क देते हैं तथा फिर मिट्टी दी जाती है. बीज के अंकुरण के लिए तापमान और नमी की आवश्यकता प्राकृतिक वर्षा और सर्दियों की ठण्ड से पूरी हो जाती है, जिससे बीज अंकुरित हो जाता है.
ग. बाहरी रोपण/बुआई
इस विधि में बीजों को सीधें क्यारीयों में लगा सकते हैं या खेत में बुआई कर सकते हैं, जब प्राकृतिक पर्यावरणीय परिस्थितियां उनके अनुकूल होती है तब बीज अंकुरित हो जाते हैं. यह विधि उन प्रजातियों के लिए अपनाई जाती है जिनके बीजों को परिपक्व होने के बाद शीत उपचार की आवश्यकता होती है. बीज को लगाने या बुवाई के बाद जब शीत का मौसम आता है तो पर्याप्त ठण्ड मिलने के उपरान्त वे अंकुरित हो जाते हैं.
अवरोधको का निक्षालन
कुछ पौध प्रजातियों के बीजावरण में कुछ वृद्धि अवरोधक पाये जाते हैं जो अकुरण को रोकते हैं. इन अवरोधकों को बीज से निकालना आवश्यक होता है, जिससे बीजों का अंकुरण आसानी से हो सके. इस प्रक्रिया में बीजों को 12-14 घण्टे के लिए बहते पानी में या कुछ घण्टों के लिए स्थिर पानी में भिगोने से अवरोधकों और कुछ फॅनोलिक यौगिकों को बाहर निकालने में मदद मिलती है जिससे बीजों का अंकुरण आसानी से हो जाता है.
पूर्व द्रूतशीतन
कुछ पौध प्रजातियों के बीजों में पूर्व द्रूतशीतन उपचार द्वारा सुषुप्तावस्था को दूर किया जा सकता है. इस उपचार में पानी में भिगोए या फुले हुए बीजों को बुवाई से पहले 5-7 दिनों तक 5-100 सेल्सियस तापमान पर रखा जाता है. इसके बाद बीज को तुरन्त खेत में बोया जाता है.
पूर्व सुखाना
सुषुप्तावस्था को दूर करने के लिए कुछ बीजों को बोने से पहले सुखाना भी एक उपयोगी क्रिया है. इसमें बीजों को बुवाई के 5-7 दिन पहले 37-400 सेल्सियस तापमान पर रखा जाता है. इसके बाद बीज को तुरन्त खेत में बोया जा सकता है.
हार्मोनल उपचार
हार्मोनल उपचार बीज की सुषुप्तावस्था को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसके लिए जिबरेलिक अम्ल की 200-500 पीपीएम की सान्द्रता सबसे व्यापक रूप से उपयोग की जाती है. इसके अतिरिक्त बीजों की सुषुप्तावस्था को दूर करने के लिए बीजों को 3-5 मिनट के लिए कायनेटिन के 100 पीपीएम के घोल मे रखा जाता है.
रसायनिक उपचार
थायोयूरिया रासायनिक उपचार का एक उदाहरण है जिसे कुछ प्रकार के सुसुप्त बीजों में अंकुरण को प्रोत्साहित करने के लिए जाना जाता है. इस विधि में पहले बीज को पानी में भिगोया जाता है, फिर भिगोए बीजों को 3-5 मिनट के लिए थायोयूरिया के 0.5-3: घोल में रखा जाता है. इसके पश्चात बीजों को पानी से धोया जाता है और इनकी खेत में बुवाई की जाती है. इसी तरह पोटेशियम नाइट्रेट और सोडियम हाइपोक्लोराइट भी कई पौधों की प्रजातियों में बीजों के अंकुरण को प्रोत्साहित करते हैं.
लेखक: हेमन्त सुरागै एवं एस. के. तिवारी
सहायक प्राध्यापक उद्यानिकी, उद्यानिकी, सेज विश्वविद्यालय इन्दौर (म.प्र.)