Black Gram Cultivation: उड़द की खेती हल्के गर्म मौसम में की जाती है. इसके लिए 25 से 30 डिग्री का तापमान उचित होता है. इसकी खेती के लिए हल्की रेतीली, दोमट मिट्टी, जहां पानी का निकास अच्छा हो, वहां अच्छे तरीके से की जाती है. इसकी खेती से पहले खेत की गहरी जुताई करने के बाद भूमि को समतल कर दें. इस बात का खास ध्यान रखें कि वर्षा के पहले इसकी बुवाई करने से पौधो की बढ़वार अच्छी होती है. आज हम आपको इसकी खेती के दौरान लगने वाले लगने वाले रोगों और इसके बचाव के तरीके के बारे में बताने जा रहे हैं.
पत्ती धब्बा रोग
उड़द की फसल में यह रोग एक महामारी के रूप में फैलता है. इसके लगने से पौधों की वृद्धि रूक जाती है और उपज को भारी नुकसान होता है. रोगजनक पौधों की पत्तियां सूख कर गिरने लगती है और इनमें प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया प्रभावित होती है. इस रोग से प्रबंधन के लिए रोग से ग्रसित पौधे के अवशेषों को एकत्र कर जला दें ताकि यह अन्य पौधों में न फैले. इसके बीज के उपचार के लिए कार्बेंडाजिम का छिड़काव करें. इसके अलावा डाइथेन-जेड 78 दवा का भी छिड़काव कर सकते हैं.
पीला मोजेक रोग
यह वायरस के माध्यम से होने वाला रोग है. यह संक्रमण सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है. इस रोग का प्रकोप तीव्रता से बढ़ता है और पूरी फसल को प्रभावित कर देता है. इस रोग का लक्षण फसल बुआई के 2 सप्ताह बाद दिखने लगता है. यह रोग जनक पत्तियां गोलाकार पीले रंग की हो जाती है. इस रोग के प्रबंधन के लिए पुराने पौधों के अवशेषों व खरपतवारों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए.
चारकोल रॉट रोग
इस रोग का प्रकोप पंजाब व उड़ीसा राज्य की फसलों में ज्यादा देखा गया है. यह चारकोल विगलन रोग मैक्रोफोमिना फैजिओलाई नामक फफूंद से फैलता है. यह रोग पौधों के तने व जड़ों को प्रभावित करता है, जिससे यह सड़ने लगता है और पौधे मर जाते हैं. प्रभावित पौधे की जड़ों व तनों पर काली- भूरे रंग के कवक बन जाते हैं. इस रोग से बचाव के लिए कार्बेंडाजिम से बीज का उपचार करना चाहिए.
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भभूतिया रोग
यह रोग उड़द की खरीफ और रबी दोनों मौसम में लगता है. इसका आक्रमण सबसे पहले पत्तियों पर होता है और पत्तियों पर सफेद रंग के छोटे-छोटे चकत्ते बन जाते हैं. यह धब्बे बड़े होकर एक-दूसरे से मिल जाते है और पूरी पत्तिया ढक लेते हैं. इस रोग से प्रबंधन के लिए घुलनशील गंधक और कार्बेन्डाजिम का छिड़काव पौधे की जड़ों पर करना चाहिए.