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Updated on: 2 March, 2019 4:49 PM IST

हमारा देश भारत कृषि प्रधान एवं गावों का देश है. जिसकी 80% जनता खेती से जुडी हुई है. आज हमारे पास ईंधन के कई स्रोत हैं, जिसमें ऐल.पी. जी, मिटटी का तेल, बिजली, बायोमास, आदि प्रमुख हैं. हमारे देश के ग्रामीण अंचलों में आज भी अधिकांश लोग खाना पकाने, आवास को गरम रखने एवं अन्य घरेलू काम हेतु पूर्णतः जंगलों पर ही निर्भर हैं. निरंतर बढ़ती हुई जनसँख्या एवं पशुओं की संख्या हेतु ईंधन, चारे की आपूर्ति एवं प्रति वर्ष जंगलों में आग लगने से वनों की स्थिति निरंतर बिगड़ती जा रही है, तथा वन निरंतर ग्रामीण क्षत्रों से दूर होते जा रहे है. जैव ईंधन ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है जिसका देश के कुल ईंधन उपयोग में एक-तिहाई का योगदान है और ग्रामीण परिवारों में इसकी खपत लगभग 90 प्रतिशत है. उपयोग किये जाने वाले जैव ईंधन में शामिल है - कृषि अवशेष, लकड़ी, कोयला और सूखे गोबर. भारत में जैव ईंधन की वर्तमान उपलब्धता लगभग 120-150 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष है जो कृषि और वानिकी अवशेषों से उत्पादित है और जिसकी ऊर्जा संभाव्यता 16,000 मेगा वाट है.

आज विश्व निरंतर कम होते प्राकृतिक संसाधनों की वजह से चिंतित है, आवश्यकता है की हम सोंचे की जितना संसाधन बचा हुआ है उसका कैसे उपयोग और प्रबंध करें जिससे इनके न होने से होने वाली परेशानियों से बचा जा सके.  इस संदर्व में बायोब्रिकेट एक अच्छा व् सरल उपाय है.

 बायोब्रिकेट क्या है: बायोब्रिकेट अनुपयोगी व् कार्बनिक कचरों से बनाया जाने वाला एक तरह का कोयला है जिसका प्रयोग ईंधन के रूप में किया जाता है. 

 सामग्री : फसल अवशेष / खरपतवार, मिट्टी, पानी, टिन की चादर, मिट्टी छानने की जाली, हथौड़ी बायोब्रिकेट बनाने का साँचा या ब्रिकेटिंग मशीन|

साँचा द्वारा ब्रिकेट बनाने की विधि 

सर्वप्रथम बायोब्रिकेट या बायोग्लोब्यूल बनाने हेतु सामग्री (फसल अवशेष / खरपतवार) एकत्रित कर लें.

सामग्री को चारकोल में परिवर्तित करने के लिए आवश्यकतानुसार जमीन पर (ऐसे स्थान पर जहाँ पानी इकट्ठा न होता हो ) एक गड्ढ़ा तैयार करें. सामान्यतः (गड्ढ़ा 1 मी० चौड़ा व 0.5 मी० गहरा बनाना चाहिए.इस सामग्री को टिन से बने ड्रम में भी चारकोल में परिवर्तित किया जा सकता है. परन्तु इसमें राख की मात्रा अधिक होती है अतः चारकोल गड्ढ़े में बनाना अधिक लाभदायक होता है.

खरपतवार / फसल अवशेष को धुप में सूखा लें.

सामग्री के सुख जाने के बाद जलाने हेतु गड्ढ़े में भर कर आग लगा दें|

जब सामग्री आधी जल जाए तब गड्ढ़े को टिन की चादर से ढँक कर किनारों को मिट्टी से दबाएं|

6-8 घंटे बाद टिन हटाकर गड्ढ़े से तैयार चारकोल बाहर निकाल लें एवं पत्थर या लकड़ी के टुकड़े या चारकोल पीसने वाली मशीन से पीसकर पाउडर बना लें.

तैयार पाउडर को मिट्टी के साथ 70% कोयला पाउडर व 30 % छनि हुई मिट्टी मिलाकर पानी से गूँथ लें| यह अनुपात मिट्टी की गुणवत्ता के अनुसार घटाया बढ़ाया जा सकता है|

तैयार मिश्रण को सांचे में भरकर उसे उचित प्रेशर से (हाथ या मशीन) से दबा कर उचित स्थान पर सांचे से निकाल कर सूखने के लिए छोड़ दें.

सूखने के पश्चात बयोब्रिकेट उपयोग में लेने हेतु तैयार हो जाता है.

यदि बयोब्रिकेट बनाने हेतु साँचा या ब्रिकेटिंग मशीन उपलब्ध न हो तो यह मिश्रण 4 अनुपात 1 का बनाना चाहिए अर्थार्त 80% कोयला पाउडर एवं 20% मिट्टी, इस प्रकार तैयार मिश्रण का हाथ से छोटे-छोटे ग्लोब्यूल बनाने चाहिए.

मशीन द्वारा ब्रिकेट तैयार करना : बयोब्रिकेटिंग  को व्यवसाय के रूप में अपनाने हेतु वृहद् स्तर में उत्त्पादन करने के लिए मशीन का उपयोग किया जा सकता है| यह मशीन विद्दुत चालित (सिंगल फेस चालित दो अश्वशक्ति मोटर वाली) होती है, इस मशीन से एक घंटे में लगभग 60 किलोग्राम ब्रिकेट तैयार किये जा सकते हैं. इससे तैयार किये गए ब्रिकेटों का भण्डारण व एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना भी आसान होता है.

विधि

मशीन द्वारा ब्रिकेट्स बनाने के लिए भी सामग्री (खरपतवार / फसल अवशेष) का पूर्व में वर्णित विधि के अनुसार ही चारकोल तैयार कर लिया जाता है एवं चारकोल का पाउडर बना लिया जाता है.

इस चारकोल पाउडर में 5-10 प्रतिशत (मिट्टी की गुणवत्ता के अनुसार ) मिट्टी मिलाकर पानी से गूँथ कर मिश्रण तैयार कर लेते हैं.

तैयार मिश्रण को मशीन के हांकर में धीरे-धीरे डालते रहते हैं और मशीन के बाएं तरफ लगे तीन नालियों से ब्रिकेट्स तैयार हो कर बाहर निकलने लगते हैं. इमेज

तत्पश्चात इन ब्रिकेटों को धुप में सूखाने के लिए छोड़ दिया जाता है.

सूखने के पश्चात ब्रिकेट्स जलाने हेतु तैयार हो जाते हैं जिन्हें किसी भी अंगीठी में जलाया जा सकता है या बिक्री हेतु भण्डारण भी किया जा सकता है लेकिन ब्रिकेट का पूर्ण उपयोग हेतु एक निश्चित प्रकार कि अंगीठी तैयार की गयी है.

लाभ

बयोब्रिकेट या बायोग्लोब्यूल कि उपयोग खाना बनाने, जाड़ों में सेंकने, कमरा एवं पानी गरम करने के लिए किया जाता है.

इसे परम्परागत अंगीठी में भी रखकर आसानी से जलाया जा सकता है.

इसका उपयोग करने से फसल अवशेष/ खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ वनों का बचाव कर पर्यावरण संब्धी अनेक समस्याओं का समाधान में भी सहायता मिलेगी.

यह धुआंरहित व गंधरहित ईंधन है जिसके उपयोग से लकड़ी से उठने वाले धुएं के दुस्प्र्भावों से बचाव होता है.

जैविक वस्तुओं का उपुक्त उपयोग किया जा सकता है.

महिलाओं के कार्यबोझ में कमी आ सकती है.

आर्थिक विकास हेतु सहायक है.

विभिन्न कारखानों जैसे ईंट भट्टियों, रसायनिक, कपड़ा, चमड़ा, रबर, पेपर, इत्यादि में किया जाता है.

प्रदुषण कम करने में सहायक है.

सस्ता ईंधन है.

प्लास्टिक को छोड़ कर हर एक चीज जो जलाया जा सकता है उसका उपयोग इसे बनाने में कर सकते हैं.

प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रयोग.


डॉ० सुमित रॉय एवं प्रियंका रानी*
जी० बी० पंत हिमालीय पर्यावरण एवं सतत विकास राष्ट्रीय संस्थान, कोशी, कटरमल, अल्मोड़ा
*वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्दालय, डुमराव (बिहार कृषि विश्वविद्दालय, सबौर, भागलपुर)
Mail- rani.6priyanka@gmail.com*

English Summary: Biobriquet or bioglobul
Published on: 02 March 2019, 04:56 PM IST

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