Wheat Crop Management: गेहूं, एक महत्वपूर्ण रबी फसल है. सर्दियों के मौसम में मध्यम तापमान, उपयुक्त मिट्टी और पर्याप्त नमी इसकी फसल के लिए बेहद आवश्यकता होती है. इसकी वानस्पतिक वृद्धि (पत्तियों, तनों और जड़ों का विकास) फसल की उपज का आधार होती है. किसान पौध संरक्षण उपायों, उर्वरक प्रबंधन और सिंचाई पद्धतियों को समायोजित करके फसल को सुरक्षित रख सकते हैं. पर्यावरणीय परिवर्तनों का ध्यान रखते हुए बेहतर उपज प्राप्त की जा सकती है. ऐसे में किसानों के लिए वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है..
1. तापमान
गेहूं की वानस्पतिक वृद्धि के लिए 15-24°C का तापमान आदर्श है. वर्तमान में दिन का तापमान 26°C से अधिक हो रहा है, जो फसल के लिए तनावपूर्ण हो सकता है. रात का तापमान 10°C से नीचे जा रहा है, जिससे निचली पत्तियां पीली हो रही हैं. यह बीमारी नहीं है, बल्कि नाइट्रोजन की गतिशीलता का परिणाम है. इसे सुधारने के लिए 2% यूरिया का छिड़काव उपयोगी हो सकता है.
2. पानी और नमी प्रबंधन
मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए नियमित सिंचाई आवश्यक है. अत्यधिक ठंडक में हल्की सिंचाई से पाले का प्रभाव कम किया जा सकता है. जलभराव से बचना चाहिए अन्यथा जड़ सड़ने की समस्या हो सकती है.
3. मिट्टी की स्थिति
दोमट मिट्टी जिसमें अच्छी जल निकासी हो और पर्याप्त जैविक पदार्थ मौजूद हों, गेहूं के लिए उपयुक्त है. ठंड के कारण माइक्रोबियल गतिविधि घटने से पोषक तत्वों का अवशोषण प्रभावित हो सकता है. संतुलित उर्वरक उपयोग और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के उपाय अपनाने चाहिए.
4. फोटोपीरियड
14-16 घंटे की प्रकाश अवधि गेहूं की वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा देती है. कम दिन की रोशनी फसल की वृद्धि को धीमा कर सकती है, जबकि पर्याप्त धूप प्रकाश संश्लेषण में मदद करती है.
5. कीट और रोग प्रबंधन
ठंड के कारण पाला और फफूंद रोगों का खतरा बढ़ सकता है. डायथेन एम-45 का छिड़काव पाले के प्रभाव को कम करने और रोग नियंत्रण में सहायक है.
6. पोषक तत्व प्रबंधन
नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश आवश्यक हैं. सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक और आयरन भी फसल की वृद्धि में सहायक होते हैं.
7. वायु परिसंचरण
अच्छा वायु संचार फफूंद रोगों को नियंत्रित करता है. तेज हवाओं से पौधों की रक्षा आवश्यक है.