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Updated on: 13 March, 2020 5:36 PM IST
Jute Crop

जूट एक द्विबीज पत्री, रेशेदार  ,पतले तने वाला बेलनाकार पौधा है जिसके  रेशे वैसे तो छह से लेकर 10 फुट तक लंबे होते हैं लेकिन कुछ विशेष अवस्थाओं में 14 से लेकर 15 फुट लम्बे भी पाये जाते हैं. जूट के पौधे से तुरंत का निकाला गया रेशा अधिक मजबूत, चमकदार, आर्द्रताग्राही, कोमल और सफेद होता है. इस रेशे को खुला छोड़ देने से इसके गुणों में कमी आ जाती है.

जूट की पैदावार फसल की किस्म, भूमि की उर्वरता, काटने का समय आदि पर निर्भर करती है. कैप्सुलैरिस प्रजाति के जूट की पैदावार प्रति एकड़ 10-15 मन (1मन =16 किलो) और ओलिटोरियस प्रजाति के जूट की 15-20 मन (1मन =16किलो) प्रति एकड़ होती है. अच्छी जुताई और देखभाल से प्रति एकड़ 30 मन तक पैदावार हो सकती है.

जूट के रेशे से बोरे, हेसियन तथा पैंकिंग के थैले बनाए जाते हैं. कालीन, दरियां, परदे, घरों की सजावट के सामान, अस्तर और रस्सियां भी बनती हैं. जूट का डंठल जलाने के काम आता है. उसके कोयले से बारूद बनाए जा सकते हैं. डंठल का कोयला बारूद के सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है. इतना ही नहीं, इसके डंठल से लुगदी भी प्राप्त होती है, जो कागज बनाने के काम आती है.

जूट की  बुवाई का समय (Jute sowing time)

जूट की  बुवाई  ढाल वाली भूमि पर फरवरी में और ऊंचाई वाली भूमि में मार्च से जुलाई तक की जाती है. जूट की बुवाई  छिटक विधि से की जाती है. अब बुवाई के लिए ड्रिल का भी उपयोग होने लगा है. प्रति एकड़ 6 से लेकर 10 पाउंड तक बीज लगता है.

पौधे के तीन से लेकर नौ इंच तक बड़े होने पर पहली गुड़ाई की जाती है. गुड़ाई के बाद 2 से 3 बार निराई की जाती है. जून से लेकर अक्टूबर तक फसल काट ली जाती है.

जूट से सम्बंधित और अधिक जानकारी लिए कृषि जागरण के पोर्टल को विजिट करें.

English Summary: Best time to sow jute crop
Published on: 13 March 2020, 05:40 PM IST

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