भारत की अर्थव्यवस्था में तिलहन वर्गीय फसलें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और इनकी उत्पादकता में वृद्धि से विदेशी मुद्रा की बचत में महत्वपूर्ण योगदान होता है. इस समूह में राया (राई), पीली और भूरी सरसों, तोरिया, गोभी सरसों, अफ्रीकन सरसों और तारामीरा जैसी प्रमुख फसलें शामिल हैं. क्षेत्रफल के आधार पर सरसों वर्गीय फसलों की खेती में भारत, चीन के बाद दूसरे स्थान पर है, लेकिन प्रति हेक्टेयर उत्पादकता के आधार पर भारत अभी भी कम उत्पादक है. देश में सरसों वर्गीय फसलों की खेती लगभग 7 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर की जाती है, जिससे 7.98 मिलियन टन का वार्षिक उत्पादन होता है, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग 10.9-14.1% है. इन फसलों से प्राप्त तेल को मानव उपभोग और खाद्य तेल के रूप में अत्यधिक पौष्टिक और गुणवत्ता में श्रेष्ठ माना जाता है. सरसों की उपज को बढ़ाने और इसे टिकाऊ बनाने में कीटों और बीमारियों का प्रकोप एक बड़ी चुनौती है.
सरसों की खेती प्रमुखतः वर्षा से संचित नमी या सीमित सिंचाई सुविधाओं वाले क्षेत्रों में की जाती है. सरसों की फसल को कीटों और रोगों से काफी नुकसान होता है, जिससे इसकी पैदावार में उल्लेखनीय गिरावट आ जाती है. अगर इन कीटों और बीमारियों का समय पर नियंत्रण किया जाए तो सरसों के उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है. चेंपा या माहू, सरसों की आरामक्खी, चितकबरा कीट, लीफ माइनर, और बिहार हेयरी केटरपिलर इसके प्रमुख कीटों में से हैं. किसी भी फसल को कीटों से बहुत अधिक नुक्सान होता है क्यूंकि यह उपज कम करने के साथ साथ उसके बाजार मूल्यों पर भी प्रभाव डालता है| इसलिए यह जरूरी है कि किसी भी फ़सल के उत्पादन में उस फसल को बोने से पूर्व ही उसके कीटों हेतु एक समेकित कीट नियंत्रण प्रणाली बना दी जाये जिससे कि आर्थिक और उत्पादन में होने वाली हानि से बचा जा सके.
प्रमुख कीट –
माहू कीट (Lipaphis Erysimi)
पहचान:
ये कीट आकार में छोटे, नरम, तथा सफेद-हरे रंग के होते हैं, जिनके शरीर के (abdomen) पिछले भाग में दो नलिकाकार संरचनाएँ होती हैं.जो कि शरीर के 6 वे व 7 वे भाग पर होती है. इनके मुखांग चूसक प्रकार के होते हैं, जो पौधों के रस को चूसने के लिए अनुकूलित होते हैं. ये कीट समूहों में पत्तियों, पुष्पों, तनों और फलियों पर एकत्रित होकर चिपक जाते हैं. यह कीट पौधों के रस को अवशोषित कर उन्हें कमजोर बना देते हैं. मुख्यतया यह पौधे के फ्लोएम वाले भोजन पर भक्षण करता है, इसका प्रकोप सरसों में नवम्बर के अंतिम सप्ताह से आरंभ होता है, जब फसल में फूल बनने की प्रक्रिया शुरू होती है, और यह मार्च तक सक्रिय रहता है. अनुकूल वातावरण मिलने पर यह फूल बनने से पूर्व भी आ सकता है तथा पौधे की पत्तियों व तने रस चूसने का काम करता है.
क्षति के लक्षण:
माहू कीट के वयस्क और शिशु दोनों पौधों के विभिन्न हिस्सों से रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं. यह कीट सरसों की फसल का एक प्रमुख हानिकारक कीट है. इसके शिशु और वयस्क दोनों ही पत्तियों, तनों, पुष्पक्रम, और फलियों पर समूह बनाकर रहकर रस चूसते हैं. इसके कारण पौधे पीले, कमजोर, और बदरंग हो जाते हैं, और फलियों की संख्या में कमी आती है, जिससे दाने कम और आकार में छोटे हो जाते हैं. यह कीट मधुरस जैसे पदार्थ का उत्सर्जन भी करता है, जिसके कारण पौधों पर काले फफूंद (सूटी मोल्ड) का विकास होता है, जो पौधों की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया को प्रभावित करता है. बादलयुक्त मौसम और कम तापमान इस कीट के प्रसार के लिए अत्यधिक अनुकूल होते हैं. यह कीट सरसों की फसल को 25 से 40 प्रतिशत तक क्षति पहुंचाने में सक्षम है. सघन खेती के कारण धूप पौधे के सभी भागों तक नहीं पहुँच पाती जिससे कि इस कीट को एक अनुकूल वातावरण मिल जाता है अपनी जनसख्या बढ़ाने में…
नियंत्रण:
- नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों की अधिक मात्रा के प्रयोग से तिलहन ब्रैसिका फसलों में एफिड्स का खतरा अधिक होता है, इसलिए ऐसे उर्वरक का कम ही उपयोग करें.
- खेत का नियमित निरिक्षण करें क्योंकि एफिड पहले खेत की किनारे की पंक्तियों को संक्रमित करता है और फिर खेत के मुख्य हिस्सों में चला जाता है. किनारे की पंक्तियों से संक्रमित टहनियों को 10-दिन के अंतराल पर 2-3 बार तोड़कर नष्ट कर दें.
- विभिन्न राज्यों में तिलहन ब्रैसिका फसलों पर एफिड के पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुए, 10% पौधों में जब संक्रमण टर्मिनल शूट के प्रति 10 सेमी पर 26-28 एफिड्स तक पहुंच जाए तो फसल पर छिड़काव करें.
- संक्रमित फसल पर ऑक्सी-डेमेटन मिथाइल 25 EC (1 मिली/ली) या डाइमेथोएट 30 EC (1 मिली/ली) या थायमेथोक्सम 25 WG (2 ग्राम/ली) का छिड़काव करें. यदि आबादी फिर से बढ़ती है, तो 15-दिन के अंतराल पर छिड़काव दोहराएं या कीटनाशक छिड़काव का समय निर्धारित करने के लिए कृषि-सलाह और एफिड पूर्वानुमान का पालन करें.
- लेडीबर्ड बीटल, सिरफिड्स, क्राइसोपरला आदि जैसे प्राकृतिक शत्रुओं की रक्षा के लिए, अनुचित छिड़काव से बचा जाये.
- गोभी वर्गीय फसलों को सरसों के पास न उगायें क्यूंकि यह इनके वैकल्पिक आश्रय हैं.
- 10 प्रति हेक्टेयर की दर से पीले स्टिकी ट्रैप की स्थापना करना.
पैन्टेड बग/चितकबरा बग (Bargrada Hilaris Cruciferarum)
पहचान:
वयस्क का शरीर ढाल के सामान होता है, और इसका आकार 5-7 मिमी लंबा और 3-4 मिमी चौड़ा होता है. मादाएं नर से आकार में थोड़ी बड़ी होती हैं. वयस्क का रंग लाल और पीले रंग के निशानों के साथ काला होता है और यह हार्लेक्विन बग से बहुत मिलता-जुलता है; हालाँकि, हार्लेक्विन बग में लंबवत निशान होते हैं, और बगराडा बग में निशान मुख्य रूप से लंबाई में होते हैं. वयस्क बगराडा बग के प्रोनोटम (शरीर पर आगे की ओर स्थित पृष्ठीय वक्षीय प्लेट) और स्कुटेलम (वक्ष की पृष्ठीय सतह पर केंद्रीय त्रिकोणीय प्लेट) दोनों में केंद्र में नीचे की ओर एक स्पष्ट अनुदैर्ध्य निशान होता है.
जीवन चक्र:
अण्डे का निक्षेपण सामान्यतः बीजपत्रों, पत्तियों, तनों के नीचे और पौधों के आधार के पास मिट्टी में होता है. अंडे आमतौर 10-12 के ग्रुप में दिए जाते हैं. प्रत्येक वयस्क मादा एक मौसम के दौरान 100 से अधिक अंडे दे सकती है. अंडे अपारदर्शी, सफेद से हल्के लाल रंग के होते हैं, और अनुकूल तापमान दौरान लगभग 3 से 4 दिनों के बाद निम्फ निकलते हैं .30डिग्री सेल्सियस तापमान प्रजनन के लिए सबसे उपयुक्त तापक्रम है.
क्षति के लक्षण:
यह बग चूसने वाले मुंह के अंगों के माध्यम से शारीरिक क्षति पहुंचाते हैं. पौधे के विकास के शुरुआती चरण के दौरान क्लोरोफिल सामग्री में कमी आती है कीट के भक्षण के परिणामस्वरूप युवा पौधे मुरझा जाते हैं और सूख जाते हैं. वयस्क कीड़े अपने लार युक्त पदार्थ पौधे में उत्सर्जित करते हैं जो फलियों को खराब कर देते हैं.
नियंत्रण:
- गहरी जुताई करें ताकि बग के अंडे नष्ट हो जाएं.
- कीटों के हमले से बचने के लिए जल्दी बुआई की जरूरत है.
- कीटों के हमले को कम करने के लिए बुआई के बाद चार सप्ताह के दौरान फसल की सिंचाई करें.
- कटाई की गई फसल की जल्दी से जल्दी सफाई करें.
- सरसों की फसल के अवशेषों को जला दें ताकि कीटों का प्रकोप अगले साल की फसल तक न पहुंचे.
- कीट आमतौर पर पत्तियों और तने पर इकट्ठा होते हैं जिन्हें हिलाकर हटाया जा सकता है और केरोसिनयुक्त पानी में डालकर मार दिया जा सकता है.
- 600-700 लीटर पानी में डाइमेथोएट 30 ईसी @625 मिली का छिड़काव फसल पर करें.
लेखक:
अंशुमन सेमवाल1*, मंजू देवी2
कीट विज्ञानं विभाग, डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय,सोलन
औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय,थुनाग (मंडी) डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय,सोलन