रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 2050 तक खाद्य पदार्थों की मांग में बढ़ोतरी आ सकती है. ऐसे में किसानों की इसमें एक ख़ास भूमिका को देखते हुए कई नई खेती तकनीक को पेश किया जा रहा है. ऐसी ही एक कृषि पद्धति हाइड्रोपोनिक (Hydroponics) है. इस हाइड्रोपोनिक खेती प्रणाली के ज़रिए फसलों का कम लागत के साथ अच्छा उत्पादन किया जा सकता है.
इसी प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए पालमपुर में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद- हिमालयन बायोरसोर्स इंस्टीट्यूट (Council of Scientific and Industrial Research- Institute of Himalayan Bioresource Technology) ने कम कीमत वाला Hydroponics System तैयार करने की योजना बनायी है क्योंकि हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम स्थापित करने के लिए प्रारंभिक निवेश लागत काफी अधिक है. इस बात की जानकारी CSIR-IHBT के वैज्ञानिक डॉ आशीष वारघाट ने दी. इसी के सम्बन्ध में संस्थान ने हाइड्रोपोनिक खेती प्रणाली पर चार दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किया.
लगभग 43 प्रगतिशील किसानों, बेरोजगार युवाओं और जम्मू, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और नागालैंड जैसे राज्यों के छात्रों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया. यहां प्रतिभागियों को तकनीकी ज्ञान और हाइड्रोपोनिक प्रणाली में पौधे के विकास के बारे में जानकारी दी गयी.
प्रधान वैज्ञानिक और कार्यक्रम समन्वयक डॉ राकेश कुमार का कहना है कि उम्मीद की जा रही है कि हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम बाजार 2019 में 8.1 अरब डॉलर से बढ़कर 2025 तक USD 16.0 बिलियन तक हो सकता है.
क्या है हाइड्रोपोनिक्स खेती? (What is Hydroponics Farming?)
इस खेती तकनीक के तहत केवल पानी में या बालू अथवा कंकड़ों के बीच नियंत्रित जलवायु में पौधे उगाये जाते हैं जिसमें मिटटी का उपयोग नहीं किया जाता है. हाइड्रोपोनिक्स में पौधों और चारे वाली फसलों को नियंत्रित परिस्थितियों में लगभग 15 से 30 डिग्री सेल्सियस ताप पर लगभग 80 से 85 प्रतिशत आर्द्रता (Humidity) में उगाया जाता है. इस तकनीक में पौधों को ज़रूरी पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिये पौधों में एक ख़ास तरह का घोल डाला जाता है. इस घोल में पौधों विकास के लिए ज़रूरी खनिज और पोषक तत्व मिलाए जाते हैं. घोल में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सल्फर, जिंक और आयरन आदि तत्वों को एक खास अनुपात में मिलाया जाता है.
हाइड्रोपोनिक्स के ज़रिए खेती करने से किसानों को मिलेंगे ये फ़ायदे
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हाइड्रोपोनिक्स खेती कम जगह में भी आसानी से की जा सकती है.
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पारम्परिक खेती के मुकाबले इसमें फसल चक्र और संतुलित पोषक तत्वों की बेहतर आपूर्ति की वजह से ज़्यादा उत्पादन और मुनाफा मिलता है.
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सीमित स्थान पर ही पौधों का विकास बेहतर होता है.
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यह प्रणाली जलवायु, जंगली जानवरों और किसी बाहरी जैविक या अजैविक कारकों से प्रभावित नहीं है.
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इसमें पानी का कम और उचित उपयोग किया जाता है.
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मिट्टी और जमीन से कोई संबंध न होने की वजह से इन पौधों में बीमारी या कीट का खतरा भी नहीं होता और ऐसे में किसी भी तरह का कीटनाशक भी नहीं उपयोग करने की ज़रूरत होती है. कम होती हैं और इसीलिये इनके उत्पादन में कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है.