प्रदेश के धान गेहूँ फसल चक्र में विशेषतौर पर जहॉ गेहूँ की बुआई में विलम्ब हो जाता हैं, गेहूँ की खेती जीरो टिलेज विधि द्वारा करना लाभकारी पाया गया है. इस विधि में गेहूँ की बुआई बिना खेत की तैयारी किये एक विशेष मशीन (जीरों टिलेज मशीन) द्वारा की जाती है.
इस विधि में निम्न लाभ पाए गए है (The following advantages have been found in this method)
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गेहूँ की खेती में लागत की कमी (लगभग 2000 रूपया प्रति हे0).
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गेहूँ की बुआई 7-10 दिन जल्द होने से उपज में वृद्धि.
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पौधों की उचित संख्या तथा उर्वरक का श्रेष्ठ प्रयोग सम्भव हो पाता है.
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पहली सिंचाई में पानी न लगने के कारण फसल बढ़वार में रूकावट की समस्या नहीं रहती है.
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गेहूँ के मुख्य खरपतवार, गेहूंसा के प्रकोप में कमी हो जाती है.
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निचली भूमि नहर के किनारे की भूमि एवं ईट भट्ठे की जमीन में इस मशीन समय से बुआई की जा सकती है.
जीरो टिलेज विधि से बुआई करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है (While sowing by zero tillage method, it is necessary to keep the following things in mind)
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बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए. यदि आवश्यक हो तो धान काटने के एक सप्ताह पहले सिंचाई कर देनी चाहिए. धान काटने के तुरन्त बाद बोआई करनी चाहिए.
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बीज दर 125 किग्रा०प्रति हे0 रखनी चाहिए.
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दानेदार उर्वरक (एन.पी.के.) का प्रयोग करना चाहिए.
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पहली सिंचाई, बुआई के 15 दिन बाद करनी चाहिए.
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खरपतवारों के नियंत्रण हेतु तृणनाशी रसायनों का प्रयोग करना चाहिए.
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भूमि समतल होना चाहिए.
नोट :
गेहूँ फसल कटाई के पश्चात फसल अवशेष को न जलाया जाये.