बुवाई का समय कई जगह शुरू हो चुका है तो कई क्षेत्र में बस शुरू ही होने वाला है.किसान बुवाई के लिए अपने खेतो की तैयार में लग गए है.बेहतर फ़सल उपज के लिए किसानों को कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने की जरूरत होती है.उच्च गुणवत्ता के प्रमाणित बीज के प्रयोग से ही लगभग 20 प्रतिशत उत्पादकता/उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है.पौधे का वह भाग जिसमें भ्रूण अवस्थित होता है, जिसकी अंकुरण क्षमता, आनुवंशिक एवं भौतिक शुद्धता तथा नमी आदि मानकों के अनुरूप होने के साथ ही बीज जनित रोगों से मुक्त होता है- उसको बीज कहा जाता है .अतः किसानों को बीज का चुनाव करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक हो जाता है।
केन्द्रीय प्रजाति विमोचन समिति (सी०वी०आर०सी०) के विमोचन एवं भारत सरकार की अधिसूचना के उपरान्त ही बीज उत्पादित किया जा सकता है.
अधिसूचित फसलों/प्रजातियों की निम्न श्रेणियॉ होती है-
1. प्रजनक बीज
यह बीज नाभकीय (न्यूक्लियस) बीज से बीज प्रजनक अथवा सम्बन्धित पादक प्रजनक की देखरेख में उत्पादित किया जाता है जिसकी आनुवंशिक एवं उच्च गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखा जाता है.यह आधारीय बीज के उत्पादन का स्रोत होता है.इस बीज के थैलों पर सुनहरा पीला (गोल्डन) रंग का टैग लगाया जाता है, जिसे सम्बन्धित अभिजनक द्वारा जारी किया जाता है।
2. आधारीय बीज
इस बीज का उत्पादन प्रजनक बीज से किया जाता है.आवश्यकतानुसार आधारीय प्रथम से आधारीय द्वितीय बीज का उत्पादन किया है.इसकी उत्पादन, संसाधन, पैकिंग, रसायन उपचार एवं लेबलिंग आदि प्रक्रिया बीज प्रमाणीकरण संस्था की देखरेख में मानकों के अनुरूप होती है.इसके थैलों में लगने वाले टैग का रंग सफेद होता है।
3. प्रमाणित बीज
कृषकों को फसल उत्पादन हेतु बेचे जाने वाला बीज प्रमाणित बीज है.जिसका उत्पादन आधारीय बीज से बीज प्रमाणीकरण संस्था की देख रेख में मानकों के अनुरूप किया जाता है.प्रमाणित बीज के टैग का रंग नीला होता है।
4. सत्यापित बीज (टी०एल०)
इसका उत्पादन, उत्पादन संस्था द्वारा आधारीय/प्रमाणित बीज से मानकों के अनुरूप किया जाता है.उत्पादन संस्था का लेविल लगा होता है या थैले पर उत्पादक संस्था द्वारा नियमानुसार जानकारी उपलब्ध कराई होती है।
कृषकों को अपनी फसल से बेहतर उत्पादन पाने के लिए बीज़ के चुनाव के समय इन बातों का ख़ास ख़्याल रखना चाहिए-
-बेहतर फसल उत्पादन की शुरुवात बेहतर बीज़ के चुनाव से शुरू होती है.अच्छी गुणवत्ता वाले बीज मजबूत और स्वस्थ फसलों की वृद्धि के लिए आवश्यक है, जो बीमारियों या सूखे की स्थिति में भी अपने आप को जीवित रख सकते हैं.विश्वसनीय बीजों को प्रमाणित बीज स्टॉकिस्ट या एग्रोवेट की दुकानों से खरीदा जा सकता है।
-छोटे, सिकुड़े हुए और टूटे हुए बीजों में अंकुरण के लिए कम पोषण होता है.इस तरह के बीजों को हटाकर किसान स्वस्थ पौध और फसल प्राप्त कर सकते है.
किसान अपने स्वयं के बीज भी पैदा कर सकते हैं-
इस स्थिति में, बीज़ का चुनाव फसल उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता हैं.उत्तम बीज अधिक उपज देते है.कई बीमारियां है जो बीज के माध्यम से फैलती है.यदि संक्रमित बीजों का उपयोग अगली फसल के लिए किया जाता है, तो बीज जनित रोग खेत में स्थानांतरित हो जाते है.इसलिए बीज, स्वस्थ पौधों से प्राप्त करना चाहिए।
स्वयं द्वारा बीज़ उत्पादन किसान कैसे करें?
जबकि, बीज का चयन मुख्य रूप से स्वस्थ उत्पादन/बीजों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है, इसका उपयोग फसल की किस्म की गुणवत्ता को बनाए रखने और सुधारने के लिए भी किया जा सकता है.बीज उत्पादन के लिए लगाए गए फसल में विभिन्न पौधों के लक्षणों का निरीक्षण करके किसान यह जान सकता है कि कौन सा पौधा बेहतर विकास कर रहा है और कौन सा नहीं.कुछ पौधों में ऐसी विशेषताएं हो सकती है जो अधिक वांछनीय है.बीज उत्पादन के लिए लगाए गए फसल वृद्धि के दौरान, किसान इन अंतरों का निरीक्षण करके, एक रिबन के साथ या छड़ी के साथ, पसंदीदा पौधों को चिह्नित कर सकता है.कटाई के दौरान, किसान इन चिन्हित पौधों के बीज को अगली फसल के लिए आरक्षित कर सकते हैं.फसल में कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए भी अच्छे बीज का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है.यह उन किसानों के लिए महत्वपूर्ण है जो अगले सीजन के लिए रखे जाने वाले, उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करने के लिए, अपनी अगली फसल में सुधार करना चाहते है।
बीजों की गुणवत्ता को वॉछित स्तर पर सुनिश्चित करने के लिए बीज प्रमाणीकरण का प्राविधान है.जनक बीजों का प्रमाणीकरण गठित समिति द्वारा किया जाता है जबकि आधारीय एवं प्रमाणिता बीजों का प्रमाणीकरण का उत्तरदायित्व प्रदेश की बीज प्रमाणीकरण संस्था का है।
प्रमाणीकरण की प्रक्रिया निम्न चरण में पूर्ण की जाती है:-
1. बीज का सत्यापन
आधारीय एवं प्रमाणित बीजों के उत्पादन हेतु क्रमशः प्रजनक एवं आधारीय बीजों का प्रयोग आवश्यक है.उसी श्रेणी के बीज से उसी श्रेणी के बीज उत्पादन की अनुमति विशेष परिस्थितियों में दी जाती है.बीज प्रमाणीकरण संस्था निरीक्षण के समय बिल, भण्डार रसीद तथा टैग से बीज स्रोत का सत्यापन करती है.
2. फसल निरीक्षण
पुष्पावस्था एवं फसल पकने के समय दो निरीक्षण आवश्यक है.निरीक्षण के समय बीज फसल में अवॉछित पौधे नहीं होने चाहिए.फसल भी खरपतवार रहित होनी चाहिए.निरीक्षण के समय खेत में जगह-जगह पर काउन्ट लिये जाते हैं.काउन्ट की संख्या खेत क्षेत्रफल तथा एक काउन्ट पौधों की संख्या पर निर्भर करती है.यदि काउन्ट में आवॉदित पौधों की संख्या निर्धारित मानक से अधिक है तो फसल निरस्त कर दी जाती है.
3. प्रयोगशाला परीक्षण
विधायन के उपरान्त प्रत्येक लाट से न्यायदर्श लेकर प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु भेज दिया जाता है.जनक बीजों का परीक्षण विश्वविद्यालय की तथा आधारीय व प्रमाणित बीजों का परीक्षण बीज प्रमाणीकरण संस्था की प्रयोगशाला में किया जाता है.यदि कोई न्यायदर्श बीज मानक के अनुरूप नहीं पाया जाता है तो उसको निरस्त कर दिया जाता है.आधारीय व प्रमाणित बीजों का परीक्षण बीज प्रमाणीकर संस्था की प्रयोगशाला में किया जाता है.यदि कोई न्यायदर्श बीज मानक के अनुरूप नहीं पाया जाता है तो उसकों निरस्त कर दिया जाता है।
1. टैगिंग
विधियन के उपरान्त बीजों को ऐसे आकार के थैलों में भरा जाता है कि उसमें एक एकड़ बुवाई हेतु बीज आ जाय.जनक बीज पर सुनहरी पीले रंग का टैग सम्बन्धित प्रजनक तथा आधारीय व प्रमाणित बीजों पर क्रमशः सफेद व नीले रंग के टैग बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा उपलब्ध कराये जाते है।
उस बीज को उत्तम कोटि का माना जाता है जिसमें आनुवांशिक शुद्धता शत-प्रतिशत हो, अन्य फसल एवं खरपतवार के बीजों से रहित हो, रोग व कीट के प्रभाव से मुक्त हो, जिसमें शक्ति और ओज भरपूर हो तथा उसकी अंकुरण क्षमता उच्च कोटि की हो, जिसमें खेत में जमाव और अन्ततः उपज अच्छी हो।
कृषि विभाग द्वारा खरीफ, रबी एवं जायद फसलों के विभिन्न प्रजाति के प्रमाणित बीजों का वितरण सभी जनपदों के विकास खण्ड स्थिति बीज भण्डार के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है।
अतः किसान भाईयों से अनुरोध है कि अपने विकास खण्ड से बीज प्राप्त कर अपने पुराने बीजों को बदलते हुए, प्रमाणित बीजों से बुवाई करें, जिससे उनकी फसलों के उत्पादन में वृद्धि हो.शोधित बीज बच जाने पर पुनः प्रयोग करें.बीज प्रयोगशाला से पुनः जमाव परीक्षण कराकर मानक के अनुरूप होने पर पुनः बोया जा सकता है.
किसान भाईयों को चाहिए कि वे अपनी फसलों के बीज जैस-धान, गेहूं, समस्त दलहनी फसलें एवं राई-सरसों तथा सूरजमुखी को छोड़कर, समस्त दलहनी फसलों का बीज प्रत्येक तीन वर्ष में बदल कर बुवाई करें.इसी प्रकार ज्वार, बाजरा, मक्का, सूरजमुखी, अरण्डी एवं राई/सरसों की फसलों में प्रत्येक तीन वर्षा पर बीज बदल कर बुवाई की जानी चाहिए.