Emblica Officinalis:आंवला को एक चमत्कारी फल माना जाता है, जो विटामिन C, एंटीऑक्सीडेंट्स और कई अन्य औषधीय गुणों से भरपूर होता है. यह हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ विभिन्न बीमारियों से बचाव करता है. भारत में आंवला की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, लेकिन कई प्रकार के रोग और विकार इसकी गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित करते हैं. यदि इन रोगों का समय पर प्रभावी प्रबंधन न किया जाए, तो आंवला का उत्पादन और आर्थिक लाभ दोनों ही कम हो सकते हैं.
इस लेख में हम आंवला में लगने वाले प्रमुख रोगों, उनके लक्षणों और प्रभावी नियंत्रण उपायों पर विस्तृत चर्चा करेंगे.
1. उकठा रोग (Wilt Disease)
कारक: Fusarium sp.
लक्षण
- पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और धीरे-धीरे मुरझाकर गिर जाती हैं.
- तने की छाल फटने लगती है और पौधा सूखने लगता है.
- अत्यधिक वर्षा या पाला पड़ने से यह समस्या अधिक देखी जाती है.
प्रबंधन
- छोटे पौधों को पाले से बचाने के लिए उन्हें ढककर रखें और मिट्टी को हल्का नम बनाए रखें.
- पौधों के चारों ओर घास-फूस या काली पॉलिथीन बिछाने से रोग का असर कम होता है.
- रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/लीटर) या रोको एम (2 ग्राम/लीटर) का घोल बनाकर मिट्टी में अच्छी तरह सिंचाई करें.
2. रतुआ रोग (Rust Disease)
कारक: Ravenelia emblicae
लक्षण
- फलों पर छोटे काले उभरे हुए फफोले बनते हैं, जो धीरे-धीरे बड़े होकर धब्बों का रूप ले लेते हैं.
- संक्रमित पत्तियों पर गुलाबी-भूरे रंग के उभार विकसित होते हैं, जो बाद में गहरे भूरे हो जाते हैं.
- संक्रमित फल देखने में खराब लगते हैं और बाजार में उनकी कीमत कम हो जाती है.
प्रबंधन
- घुलनशील गंधक (4 ग्राम/लीटर) का छिड़काव करें.
- टिल्ट (2%) या क्लोरोथैलोनिल (0.2%) का 15 दिन के अंतराल पर जुलाई-अगस्त में 2-3 बार छिड़काव करें.
3. काली फफूंद (Black Mold/Sooty Mold)
कारक: विभिन्न फफूंद, विशेष रूप से स्केल कीट के कारण उत्पन्न चिपचिपे पदार्थ पर बढ़ती है.
लक्षण
- पत्तियों, टहनियों और फूलों पर मखमली काली फफूंद जम जाती है.
- यह रोग प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करता है और पौधों की बढ़वार धीमी कर देता है.
प्रबंधन
- 2% स्टार्च का छिड़काव करें.
- अधिक संक्रमण होने पर 05% मोनोक्रोटोफॉस + 0.2% कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें.
4. नीली फफूंद (Blue Mold)
कारक: Penicillium citrinum
लक्षण
- फलों पर भूरे जलसिक्त धब्बे विकसित होते हैं.
- समय के साथ ये धब्बे पहले पीले, फिर भूरे और अंत में हरे-नीले रंग में बदल जाते हैं.
- फलों से बदबू आने लगती है और वे पूरी तरह से खराब हो जाते हैं.
प्रबंधन
- फलों की तुड़ाई सावधानीपूर्वक करें ताकि उन्हें चोट न लगे.
- भंडारण स्थान को स्वच्छ रखें और बोरेक्स या नमक से उपचारित करें.
- तुड़ाई से 20 दिन पहले कार्बेन्डाजिम (1%) या थायोफेनेट मिथाइल (0.1%) का छिड़काव करें.
5. फल सड़न (Fruit Rot - Pestalotiopsis cruenta)
लक्षण
- नवंबर महीने में अधिक प्रचलित.
- फलों पर अनियमित भूरे रंग के धब्बे विकसित होते हैं, जिन पर रूई जैसी सफेद फफूंद दिखाई देती है.
- संक्रमित फल अंदर से गहरा भूरा हो जाता है और सूखने लगता है.
प्रबंधन
- तुड़ाई से 15 दिन पूर्व 1% कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करें.
- भंडारण में साफ-सफाई का ध्यान रखें.
6. एन्थ्रेक्नोज (Anthracnose)
कारक: Colletotrichum Gloeosporioides
लक्षण
- पत्तियों पर छोटे गोल भूरे धब्बे, जिनके किनारे पीले रंग के होते हैं.
- फलों पर धंसे हुए काले-भूरे धब्बे, जिनके बीच में उभरे हुए गहरे काले धब्बे होते हैं.
- अधिक नमी में धब्बों से बीजाणु अधिक मात्रा में निकलते हैं, जिससे रोग तेजी से फैलता है.
प्रबंधन
- फल लगने से पहले साफ (2 ग्राम/लीटर) का छिड़काव करें.
- तुड़ाई से 20-25 दिन पूर्व पुनः छिड़काव करें.
7. मृदु सड़न (Soft Rot - Phomopsis phyllanthi)
लक्षण
- फलों पर 2-3 दिन में धुंए जैसे भूरे-काले गोल धब्बे बनते हैं.
- यह संक्रमण 8 दिनों में पूरे फल को ढक लेता है, जिससे फल विकृत हो जाता है.
- यह रोग विशेष रूप से परिपक्व फलों में अधिक देखा जाता है.
प्रबंधन
- तुड़ाई से 20 दिन पूर्व डाइफोलेटान (15%), डाइथेन एम-45 (0.2%) या साफ (0.2%) का छिड़काव करें.
8. आंतरिक सड़न (Internal Rot)
लक्षण
- आंवला की प्रजाति Fransis और Banarasi में यह रोग अधिक पाया जाता है.
- फलों के अंदरूनी ऊतक पहले भूरे होते हैं, फिर सख्त होकर गहरे काले रंग में बदल जाते हैं.
- फलों के अंदर गोंद जैसे पदार्थ भर जाते हैं.
प्रबंधन
- Chakaiya, NA-6 और NA-7 प्रजातियों को प्राथमिकता दें.
- जिंक सल्फेट (4%) + कॉपर सल्फेट (0.4%) + बोरेक्स (0.4%) का सितंबर-अक्टूबर में छिड़काव करें.