एलोवेरा लिलीएसी परिवार से संबंध रखने वाला एक पौधा है. यह मूलरूप से अमेरिका, वेस्टइंटीज तथा एशिया महाद्वीप के कुछ देशों में पाया जाता है. इसका तना छोटा, पत्तियां हरी होती हैं. एलोवेरा की पत्तियों से पीले रंग का तरल पदार्थ निकलता है, जिसके बहुत से औषधिय गुण होते हैं. एलोवेरा भारत के शुष्क इलाकों में पाया जाता है. इसकी खेती मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा हरियाणा राज्यों में की जाती है.
एलोवेरा की खेती का तरीका
मिट्टी
एलोवेरा की खेती के लिए रेतीली और काली मिट्टी सबसे उपजाऊ मानी जाती है. इसकी खेती के लिए शुष्क क्षेत्र में न्यूनतम वर्षा और गर्म आर्द्र वाला मौसम बहुत अच्छा होता है. एलोवेरा का पौधा अत्यधिक ठंड या गर्मी को सहन नहीं कर पाता है. जलभराव वाले इलाको में भी इसकी खेती नहीं करनी चाहिए. इसकी मिट्टी का पीएच मान 8.5 के आस-पास होना अच्छा माना जाता है.
मौसम
एलोवेरा के पौधे जुलाई और अगस्त माह के बीच में लगाए जाते हैं. सर्दियों का मौसम इसके लिए अनुकूल नहीं होता है. इसकी रोपाई फरवरी और मार्च माह के बीच की जाती है.
रोपण
एलोवेरा के पौधे को लगाने से पहले खेत में खूड़ बना लें. पौधों की लाइन के बीच एक मीटर की दूरी होती है. एलोवेरा की रोपाई करते समय इसकी नाली और डोली के बीच 35 सेंटीमीटर की दूरी होती है. एलोवेरा का रोपण घनत्व 50,000 प्रति हेक्टेयर होना चाहिए और दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर होनी चाहिए. अगर खेत में पुराने पौधों की जड़ों के साथ कुछ छोटे पौधे निकलने लगते हैं तो इन्हें जड़ सहित निकालकर खेत में पौधारोपण के लिए उपयोग किया जा सकता है.
कीट बचाव
पौधे को नुकसान से बचाने के लिए कीट नियंत्रण भी बहुत आवश्यक कदम है. एलोवेरा के पत्तों में मैली बग के लगने का बड़ा खतरा रहता है, इससे पत्तियों पर दाग भी पड़ जाते हैं. इससे बचाव के लिए पौधों की जड़ों पर पैराथियान या मैलाथियान के जलीय घोल का छिड़काव करना चाहिए.
लागत व कमाई
एलोवेरा की खेती शुरु करने के लिए प्रति हेक्टेयर 70000 रुपये की लागत आ सकती है और किसान भाई इसकी पत्तियों को बाजार में 25 से 30 हजार रुपए प्रति टन बेच मोटी कमाई कर सकते हैं.
उपयोग
एलोवेरा का उपयोग चर्म रोग, पीलिया, खांसी, बुखार, पथरी और अस्थमा आदि रोगों की दवा बनाने के लिए किया जाता है. वर्तमान समय में ऐलोवेरा की इस्तेमाल सौन्दर्य-प्रसाधन उद्योग में काफी जोरों से किया जा रहा है.