Suran ki Kheti: किसान अपनी आय को बढ़ाने के लिए खेतों में औषधीय पौधे की खेती को अपना रहे हैं. औषधीय पौधों की खेती में किसानों की लागत कम और मुनाफा अधिक होता है. अगर आप भी औषधीय पौधों की खेती कर अपनी आय को बढ़ाना चाहते हैं, तो आज हम आपके लिए ऐसे बेहतरीन औषधीय गुणों से भरपूर पौधा सूरन की खेती के बारे में जानकारी लेकर आए है. सूरन के पौधे को भारत के अलग-अलग राज्यो में कई नामों से जाना जाता है, जैसे कि जिमीकंद या फिर ओल का पौधा कहा जाता है. ऐसे इस पौधे की खेती व इसे जुड़ी कुछ जरूरी बातों का बारे में जानते हैं...
सूरन के पौधे से जुड़ी जरूरी बातें
सूरन के पौधे की खेती एक कंद वाली फसल है, जो औषधीय गुणों से भरपूर है. यह एक पौधा स्वास्थ्य से लेकर अन्य कई गुणों से भरपूर है. इस पौधे से पाचन तंत्र को सुधारने, बवासीर, मधुमेह और जोड़ों के दर्द जैसी समस्याओं के उपचार किया जाता है. खासतौर पर इसके पौधा का उपयोग सब्जी, अचार और औषधियों के रूप में किया जाता है.
सूरन के पौधे की खेती
सूरन के पौधे की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त होती है. इसकी खेती से अच्छी पैदावार के लिए किसान बलुई दोमट मिट्टी करें. फरवरी से अप्रैल के बीच इसकी बुवाई का समय अच्छा होता है. ध्यान रहे कि सूरन की फसल से उच्च उपज पाने के लिए अच्छे जल निकासी की जरूरत होती है. सूरन की फसल को पूरी तरह से तैयार होने में करीब 8-10 महीने का समय लगता है. जब सूरन पौधों की पत्तियाँ सूख कर पीली पड़ने लगें तो ऐसे में किसान को इसकी खुदाई कर देनी चाहिए. सूरन को जमीन से निकालने के बाद अच्छी तरह से मिट्टी साफ़ कर दें और 2-4 दिन के लिए धूप में सूखाने के लिए छोड़ दें. धूप लगने से इनका लाइफ टाइम बढ़ जाता है और फिर इसे आराम से 6 से 7 महीने तक उपयोग में लाया जा सकता है.
सूरन के पौधे में कीट व रोग का प्रभाव
सूरन के पौधे की सबसे अच्छी खासियत यह है कि इस फसल में कीड़ा और फफूंद लगने का खतरा बेहद कम होता है. लेकिन कुछ रोग इस फसल में लग सकते हैं. जैसे कि झुलसा रोग, तना लगन और तम्बाकू संडी रोग आदि. इसके बचाव के लिए किसान को निम्नलिखित कार्यों को करना चाहिए.
झुलसा रोग: इससे बचाव के लिए सूरन के पौधे पर इंडोफिल और बाविस्टीन के घोल को उचित मात्रा मे पौधों की पत्तियों पर छिड़काव करते रहना चाहिए.
तना लगन: पौधे के तने को सड़ने से बचाने के लिए इसकी जड़ों पर कैप्टन नाम की दवा का छिड़काव करना चाहिए.
तम्बाकू संडी रोग: सूरन के पौधों पर लगने वाले इस रोग से बचाव के लिए मेन्कोजेब, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और थायोफनेट की उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए.
सूरन की किस्में
सूरन की खेती से अच्छी पैदावार पाने के लिए किसानों को इसकी उन्नत किस्मों को खेत में लगाना चाहिए. जैसे कि- गजेंद्र, बीसीए-1 और एनडीए-9 जैसी किस्में विभिन्न क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय है. इसके अलावा कई क्षेत्रों में स्थानीय किस्मों जैसे लाल और सफ़ेद फल वाली किस्मों की भी किसान खेती कर सकते हैं.
सूरन की खेती से उत्पादन और मुनाफा
किसान सूरन की खेती अगर एक हेक्टेयर खेत में करते हैं, तो वह 80-90 टन सूरन की उपज प्राप्त कर सकते हैं. भारतीय बाजार में सूरजन के प्रति क्विटल दाम लगभग 3000 रूपए है. ऐसे में अगर हिसाब लगाया जाए तो किसान इसकी प्रति एकड़ में खेती कर 4-5 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं.