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Updated on: 16 June, 2021 5:07 PM IST
Paddy Farming

धान भारत की मुख्य फसल है. मुख्यतौर पर ये मॉनसून की खेती है, लेकिन कई राज्यों में धान की खेती सीजन में दो बार होता है. भारत धान की जन्म-स्थली मानी गई है. यह भारत सहित एशिया एवं विश्व के बहुत से देशों का मुख्य भोजन है. विश्व में मक्का के बाद सबसे अधिक उत्पन्न होने वाला अनाज धान ही है, यह भारत की सबसे अधिक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है. चावल में पाया जाने वाला मांड में अधिक मात्रा में स्टार्च पाया जाता है, जो कपड़े उद्योग में अधिक प्रयोग होता है.

धान का जो भूसा होता है, उसे मुर्गी पालन के बीछावन में प्रयोग किया जाता है. धान के अवशेष से तेल निकाला जाता है, जो खाने में प्रयोग किया जाता है. चावल एक पोषण प्रधान भोजन है, जो तत्काल ऊर्जा प्रदान करता है, क्योंकि इसका सबसे महत्वपूर्ण घटक कार्बोहाइड्रेट (स्टार्च) है.

धान की खेती के लिए जलवायु (Climate for paddy cultivation)

यह उष्ण तथा उपोष्ण जलवायु की फसल है. इस फसल की पैदावार के लिए अधिक तापमान, अधिक आद्रता, अधिक वर्षा अच्छी होती है. इस फसल की खेती 100 सेंटीमीटर से 250 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है.

धान की खेती के लिए भूमि (land for paddy cultivation)

उचित जल निकास वाली भारी दोमट मिट्टी इस फसल की खेती के लिए उपर्युक्त मानी गई है. इस फसल के लिए अधिक जल धारण क्षमता वाली भूमि की आवश्यकता पड़ती है. धान की फसल के लिए पीएच 4.5 से 8.0 तक उपयुक्त रहता है.

धान की उन्नत किस्में (Improved varieties of Paddy)

असिंचित दशा

 नरेन्द्र-118, नरेन्द्र-97, साकेत-4, बरानी दीप, शुष्क सम्राट, नरेन्द्र लालमनी

सिंचित दशा

सिंचित क्षेत्रों के लिए जल्दी पकने वाली किस्मों में पूसा-169, नरेन्द्र-80, पंत धान-12, मालवीय धान-3022, नरेन्द्र धान-2065 और मध्यम पकने वाली किस्मों में पंत धान-10, पंत धान-4, सरजू-52, नरेन्द्र-359, नरेन्द्र-2064, नरेन्द्र धान-2064, पूसा-44, पीएनआर-381 प्रमुख किस्में हैं.

ऊसरीली भूमि के लिए धान की किस्में (Paddy Varieties for Indigenous Lands)

  • नरेन्द्र ऊसर धान-3, नरेन्द्र धान-5050, नरेन्द्र ऊसर धान-2008, नरेन्द्र ऊसर धान-2009, पूसा – 1460

  • पैदावार 50 से 55 किवंटल / हेक्टेयर.

  • फसल पकने की अवधि 120 से 125 दिन.

धान के खेत की तैयारी (Preparation of paddy field)

खेत में फसल कटाई के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से भूमि की अच्छी तरह से जुताई कर देनी चाहिए. पहली बरसात में भूमि की एक जुताई के साथ गोबर की खाद व कम्पोस्ट खाद डालकर अच्छे से जुताई कर देना चाहिए.

धान के बीज की मात्रा (Paddy Seed Quantity

      विधि

बीज (किलोग्राम प्रति हेक्टेयर)

छिड़काव विधि

100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

पंक्तियों में बुवाई

60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

हाइब्रिड धान

15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

एस आर आई  विधि

5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

रोपा  विधि

35 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

डेपोग विधि

1.5 – 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

धान का बीज उपचार (Paddy Seed Treatment)

बुवाई के पूर्व बीज का उपचार करना अति आवश्यक होता है. धान की बुवाई के पूर्व बीज उपचार के लिए 10 लीटर पानी में 17% नमक का घोल तैयार करते हैं. इस घोल में धान के बीज को डूबोकर अच्छे से मिलाया जाता है, जिसमें  हल्के तथा खराब दाने  ऊपर तैरने लगते हैं और स्वस्थ दाने नीचे बैठ जाते हैं, फिर खराब दानों को निकालकर फेक देते हैं और अच्छे दाने को निकालकर स्वच्छ पानी में दो से तीन बार धोने के बाद फिर उसे छांव में सुखा दिया जाता है. थायरम व बाविस्टीन को 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें.

ट्राइकोडर्मा पाउडर 5 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें. उपचारित बीज को गीले बोरे में लपेटकर ठंडे कमरें में रखें. समय समय पर इस बोरे पर पानी सींचते रहें. लगभग 48 घंटे बाद बोरे को खोलें. बीज अंकुरित होकर नर्सरी डालने के लिए तैयार होते हैं. किसानों को बीज शोधन के प्रति जागरूक होना चाहिए. बीज शोधन करके धान को कई तरह के रोगों से बचाया जा सकता है. किसानों को एक हेक्टेयर धान की रोपाई के लिए बीज शोधन की प्रक्रिया में महज 25-30 रुपये खर्च करने होते हैं.

धान की बुवाई का समय (Paddy sowing time)

क्रमांक

    फसल

             ऋतु

बोने का समय

काटने का समय

1

अगेती फसल

ओस या ओटम (AUS - AUTUMN)

मई – जून

सितंबर – अक्टूबर

2

वर्षा ऋतु की   फसल

अमन/ साली  या विंटर (AMON/SALI - WINTER)

जून - जुलाई

नवंबर - दिसंबर

3

ग्रीष्मकालीन फसल

बोरो या स्प्रिंग (BORO - SPRING)

नवंबर - दिसंबर

मार्च – अप्रैल

 

पौध नर्सरी तैयार करना (Plant nursery preparation)

नर्सरी की तैयारी के लिए 12 मई से 31 मई तक का समय सबसे उपर्युक्त माना गया है. नर्सरी तीन प्रकार से तैयार की जाती है-

सूखी नर्सरी विधि (Dry Nursery Method)

  • इस विधि में धान की बुवाई शुष्क क्षेत्र में की जाती है. बुवाई के लिए खेत के 1/10 वाँ भाग में बीज को नर्सरी में बोया जाता है.

  • खेती में 10 से 15 टन गोबर की खाद जो अच्छी तरह सड़ी हुई हो मिला देना चाहिए.

  • 15 किलोग्राम यूरिया 100 वर्ग मीटर नर्सरी बेड में डालना चाहिए.

गीली नर्सरी विधि (Wet Nursery Method)

  • इस विधि की नर्सरी अधिक पानी वाले क्षेत्र में प्रयोग किया जाता है.

  • इस नर्सरी की दो से तीन बार सुखी जुताई करें व तीन से चार बार 4 सेंटीमीटर पानी भरकर अच्छी तरह पडलिंग करें व गोबर की खाद 10 से 15 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई खेत में डालें. आखिरी जुताई मैं पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए. 

  • 15 किलोग्राम यूरिया 100 वर्ग मीटर नर्सरी बेड में डालना चाहिए.

डेपोग नर्सरी विधि (Dapog Nursery Method)

  • इस विधि में बिना मिट्टी का उपयोग किए फर्स, कंक्रीट और लकड़ी के तख्ते या ट्रे का उपयोग किया जाता है.

  • 10 से 12 घंटे तक बीज को पानी में भीगा कर रखा जाता है फिर बीज को निकाल कर फर्स में नमी रखकर अंकुरित किया जाता है.

  • इसे फर्स में रखने के बाद पॉलिथीन की चद्दर या केले की पत्तियों में ढककर नमी बनाए रखें, धान के बीज की जड़ हल्के पानी के संपर्क में रहना चाहिए.

  • 12 से 14 दिन में रोपाई के लिए पौध तैयार हो जाता है और इसे खेत में पडलिंग करके लगा देना चाहिए.

  • इस विधि में पौधों से पौधों की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर व कतार से कतार की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर होना चाहिए. 

धान की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक (Manures and Fertilizers for Paddy Cultivation)

  • मिट्टी परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का उपयोग किया जाना चाहिए.

  • 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी प्रकार से सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद का उपयोग करने से 50 से 60  प्रतिशत रसायनिक खाद में कमी आ जाती है.

क्रमांक

उर्वरक

बोनी जातियों के लिए

देसी जातियों के लिए

1

नाइट्रोजन (किग्रा/है0)

120

60

2

फास्फोरस (किग्रा/है0)

60

40

3

पोटाश (किग्रा/है0)

30

15

  • नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा पलेवा के समय जुताई करके अच्छी तरह से मिला देना चाहिए.

  • बाकी बचा नाइट्रोजन को रोपाई के 30 दिन बाद आधी मात्रा उपयोग में लाना चाहिए.

  • बची हुई नाइट्रोजन को रोपाई के 60 दिन बाद उपयोग में लाना चाहिए.

धान की फसल की सिंचाई (Paddy crop irrigation)

धान की फसल में 140 से 150 सेंटीमीटर प्रति हेक्टेयर पानी की आवश्यकता होती है.

धान की फसल के लिए खरपतवार नियंत्रण (Weed control for paddy)

  • कोनोवीडर की सहायता से खरपतवार में नियंत्रण पाया जा सकता है.

  • नर्सरी जमीन तैयार कर सिंचाई करें व खरपतवार उगे तो नष्ट कर दें.

  • कतार या रोपा विधि में बुवाई के तीन से चार दिन के अंदर पेंडीमेथालिन एक से डेढ़ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

धान की फसल की कटाई व मंडाई (Harvesting and threshing of paddy crop)

बुवाई के 3 से 5 माह में धान की अलग-अलग किस्में पककर तैयार होती हैं. फसल का रंग पीला, पत्तियों का रंग सुनहरा हो जाए तो कटाई कर लेना चाहिए. मंडाई जापानी थ्रेसर से करते हैं.

धान की फसल उपज (Paddy crop yield)

विधि

क्विंटल प्रति हेक्टेयर

छिड़काव विधि

15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

धान की देसी किस्म

20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

बौनी उन्नत किस्म

50 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

रोपाई की गई फसल

50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर


धान की फसल का भंडारण (Paddy crop storage)

धान को धूप में अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए. 12 से 13 प्रतिशत नमी होने पर उसे हवा व नमी रहित स्थान में भंडार करके रखें. भंडारित स्थान पर मेलाथियान 50 EC, 20 ml को 2 लीटर पानी में तैयार करके छिड़काव करें.

लेखक:

आदित्य कुमार सिंह1, डॉ.नरेन्द्र सिंह2, डॉ.एच.एस.कुशवाहा3
1वैज्ञानिक/तकनीकी अधिकारी, क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र, भरारी, झाँसी
2प्रोफेसर, बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा, उत्तर प्रदेश
3प्रोफेसर, महात्मा गाँधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, चित्रकूट, सतना, मध्य प्रदेश

English Summary: Advanced cultivation of paddy through scientific method
Published on: 16 June 2021, 05:22 PM IST

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