Papaya Farming: पपीते की खेती से होगी प्रति एकड़ 12 लाख रुपये तक कमाई! जानिए पूरी विधि सोलर पंप संयंत्र पर राज्य सरकार दे रही 60% अनुदान, जानिए योजना के लाभ और आवेदन प्रक्रिया केवल 80 से 85 दिनों में तैयार होने वाला Yodha Plus बाजरा हाइब्रिड: किसानों के लिए अधिक उत्पादन का भरोसेमंद विकल्प किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ GFBN Story: मधुमक्खी पालन से ‘शहदवाले’ कर रहे हैं सालाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए उनकी सफलता की कहानी फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 19 July, 2019 12:00 AM IST

बिहार-असम में बाढ़ जैसे हालात ना तो अलग है और ना ही नए हैं, कई पीढ़ियां गुजर गई सरकार की योजनाओं को सुनते हुए, लेकिन ना तो किसी प्रकार के कोई इंतजाम हुए और ना ही सुरक्षा के कुछ उपाय कारगर साबित हुए. हां सरकारी फाईलों में जरूर बाढ़ एवं आपदा प्रबधंन के नाम पर कागज़ी घोड़े सरसरा के दौड़ाएं गए. वैसे सरकारी मदद का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपनी जान बचाने के लिए लोग वहां चूहे खाने पर मजबूर होने लगे हैं.

तटबंध इलाकों पर रहने वाले लोगों के बारे में आम धारणा यह है कि उन्हें बाढ़ झेलने की आदत होती है. मगर इस बात का अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता कि हर साल यह लोग अपनी थोड़ी सी कमाई का सारा हिस्सा किस तरह खो देते हैं और दिल्ली कितनी चालाकी से इनकी आवाज़ दबा देती है. अगले तीन महीने यहां के लोग दरिद्रता, कंगाली एवं भूखमरी को देखने वाले हैं, इनकी जमीनें इनकी होकर भी इनकी नहीं होंगी, जिन कुछ भागयशाली लोगों के घर बच गए वह रहने लायक नहीं रहेंगें.

सुपौल जिले का हाल देखेंगें तो साक्षात नर्क के दर्शन हो जाएंगें. यहां के बभनी स्कूल के प्रांगण तक लबालब पानी भरा हुआ है और सैकडों की संख्या में लोग भेड़-बकरियों की तरह कक्षाओं में शरण लिए हुए हैं. बच्चे भूख से बिलबिला कर दम तोड़ने पर मजबूर हैं, लोग सड़ा-गला खा रहें हैं और वहीं शोच भी कर रहें हैं. शासन-प्रशासन और मीडिया का कोई आदमी वहां मौजूद नहीं दिख रहा. खैर हम मीडिया को दोष नहीं दे रहे हैं, वर्ल्ड कप में भारत को शोक पहुंचा है और देश की मीडिया इस दुख की घड़ी में उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है.

यहां के लोग बताते हैं कि राहत और बचाव कार्य के नाम पर सरकार इतने आश्वासन दे रही है कि संभाले नहीं संभलती. 3 दिनों के विरोध के बाद अब एक बल्ब लगा दिया गया है . यहां बच्चों ने अपने दादा-दादी से कामधेनु गाय की कथाएं सुनी है, जो मन की सभी कामनाएं पूरी कर देती है. बात करने पर तोतली आवज़ में कहते हैं कि हमाली गाय तो पानी में बह गई औल साला सामान भी बह गया, अब सलकाल ने बल्ब लगाया है. दादी कहती है कि यह बल्ब हमे खाना-पानी और घर देगा. हमें पता है दादी झूंठ कहती है."

सरकार से यहां के लोगों को नाराज़गी है, लेकिन विरोध करने वाले नौज़वान कम हैं. दरअसल घर के अधिकांश पूरुष एवं नौज़वान तो दो वक्त की रोटी या पढ़ाई के लिए दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में हैं. यहां घर वालों की मदद नहीं कर सकते. लेकिन हां, डीजिटल इंडिया की मदद से घर वालों की सहायता कर देते हैं. व्हाट्सप्प, फेसबुक आदि पर फीलिंग ट्रबल विथ 29 अदर्स इन फ्लड लिख रहे हैं. वैसे क्या इंस्टाग्राम पर मीम पढ़ने वाले युवा सरकार से भीषण विधवंस पर प्रश्न कर पाएंगें? बिहार के मधुबनी जिले के रहने वाले पंकज सिंह दिल्ली में पंचर की दुकान चालते हैं, कहतें हैं कि घर वालों से संपर्क नहीं हो पा रहा, कभी-कभी बड़ी मुश्किल से संपर्क होता भी है तो सबसे पहले यही पुछते हैं कि क्या-क्या बचा या कौन-कौन बचा है.

लोगों में आक्रोश तो है, लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा कि सवाल किससे किया जाए. सरकार हर साल बाढ़ के खतरे से निपटने की तैयारियां करती है, लाखों करड़ों रूपये भी खर्च करती है. इस बार तो तीन मई से ही तैयारियां चल रही थीं. लेकिन पानी के कहर ने प्रशासन के दावों पर पानी फेर दिया. अब जबकि मौत साक्षात सामने विकराल रूप में तांड़व कर रही है, सरकार आपदा प्रबंधन का ड्रामा करने में लगी है. कोसी बैराज का पानी बुलेट ट्रैन की स्पीड से यहां पांच घंटे से भी कम के समय में पहुंच जाता है. वहां कमला बलान नदी पर बना तटबंध कई स्थानों से टूट गया, जिससे कई लोग पानी में बह गए हैं. एनडीआरएफ की टीम लापता लोगों को खोजने में लगी हुई है. अब जबकि कुछ समय हो गया है तो लोगों की लाशें मिलनी शुरू हो गई हैं. लोग लाचार हुए किनारों पर खड़ें हैं, वह सोच रहे हैं कि उनके सगे-संबधी अगर मर चुके होंगें तो लाशे फूलकर स्वंय ऊपर आ जाएंगी. अंतिम संस्कार के लिए भी जगह नहीं है, इसलिए तम्बू गाड़कर लोग जहां रह रहे हैं, वहीं बगल में लाशों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं.

अब ज़रा आंकड़ों को पढ़िए बिहार के 12 जिलों में आई बाढ़ से अब तक 100 लोगों से अधिक की मौतें हो चुकी है, करिब 70 लाख 83 हजार से अधिक लोगों ने अपना घर-बार धन संपत्ति, खेत खलिहान खो दिए हैं. इन बातों को देखते हुए आगे की स्क्रिप्ट भी तय है. धड़ाधड माननीय नेताओं के हवाई दौरे होंगें, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमों को दिन रात राहत एवं बचाव कार्य में लगा दिया जाएगा. मुआवज़े की राशि तय होगी, जो मिलेगी या नहीं एक अलग प्रश्न है. यह सारा ड्रामा वहां के बुजुर्ग अपने बाल्यावस्था से देखते आएं हैं.

मुद्दा यह है कि क्यों सरकार पहले से तैयारी करने में हर बार फेल हो जाती है. जबकि वहां के बच्चे-बच्चे को पता है कि गंडक, बूढी गंडक, बागमती, अधवारा समूह, कमला बलान, कोसी, महानंदा और परमान नदियां समय-समय पर रौद्र होकर विधवंस करती है. वैसे खतरा जितना दिख रहा है, उससे कई ज्यादा बड़ा है.

बता दें कि बिहार में 38 जिले हैं जिनमे से 12 जिलों में बाढ़ लोगों को मार रही है और बाकि 26 जिलों को सुखे की समस्या. गौरवशाली इतिहास को समेटे बिहार राज्य के बीच से होकर पालनहारनी गंगा गुजरती है. लेकिन उसी बिहार के उत्तर में बाढ़ और दक्षिण में सुखाड़, अरे वाह रे सरकार.

English Summary: Bihar Assam floods and gimmick of politics
Published on: 19 July 2019, 03:51 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now