21 अप्रैल को कृषि जागरण ने कपास की खेती करने वाले किसानों के लिए एक लाइव वेबिनार का आयोजन किया था. इस वेबिनार सेशन को ACFI यानी की एग्रो केम फेडरेशन ऑफ इंडिया के तहत चलाई जा रही Farmer campaign Jago Kisan Jago के साथ मिलकर आयोजित किया गया था.
एग्रो केम फेडरेशन ऑफ इंडिया (ACFI) एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो बीते कई सालों से किसानों के लिए काम कर रहा है. ACFI पूरे देश में कीटनाशकों के तकनीकी और निर्माण के निर्माताओं/आयातकों का प्रतिनिधित्व करता है. उनकी पूरी टीम देश के किसानों के साथ जुड़कर उनके हित में उन्हें उच्च पैदावार और विभिन्न प्रकार की कृषि उपज की बेहतर गुणवत्ता के लिए पौध संरक्षण रसायन (यानी की कीटनाशक) के बारे में शिक्षित करने का काम करते हैं.
21 अप्रैल को आयोजित लाइव वेबिनार का विषय "कपास की बुआई से पहले याद रखने योग्य बातें" रखी गई थी. वर्तमान में, भारत दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है. इसलिए भारत को 'कॉटनपोलिस ऑफ इंडिया' भी कहा जाने लगा है. भारत हर साल तकरीबन 6.12 मिलियन मीट्रिक टन कपास का उत्पादन करता है, जो पूरी दुनिया में पैदा होने वाले कपास का करीब 25 प्रतिशत हिस्सा है. यह देश में करीब 60 लाख 50 हजार कपास किसानों को रोजी-रोटी देने का काम करता है.
हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि कपास की खेती से किसानों को जितना फायदा होता है उतना ही अधिक इसकी खेती में चुनौतियां भी हैं. इन्हीं चुनौतियों और इसके समाधानों पर इस लाइव वेबिनार में चर्चा किया गया, ताकी कपास की खेती करने वाले किसानों को नुकसान का सामना ना करना पड़े.
इस लाइव वेबिनार में हमारा साथ देने के लिए डॉ. कल्याण गोस्वामी (एसीएफआई के महानिदेशक), डॉ. दिलीप मोंगा (सीआईसीआर क्षेत्रीय स्टेशन, सिरसा के पूर्व प्रमुख) और आरडी कपूर (कृषि समर्थन और गठबंधन पीआई इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रमुख) मौजूद रहें.
चर्चा की शुरुआत करते हुए डॉ. दिलीप मोंगा ने भारत में कपास की पत्ती कर्ल वायरस रोग का संक्षिप्त इतिहास बताया. उन्होंने कहा कि पत्ती कर्ल वायरस रोग बीते 30 साल पहले भारत में देखा गया. इससे पहले ये रोग नहीं देखा गया था. 1994 में ये रोग पाकिस्तान में बहुत फैला हुआ था, उसके बाद से पाकिस्तान से सटे भारत के बार्डर के समीप कपास लगे खेतों में इस रोग का हमला देखा गया. इसके बाद 3-4 वर्ष में उत्तर भारत में ये रोग फैल गया. उन्होंने कहा कि लेकिन अच्छी बात ये कि अभी मध्य भारत और दक्षिण भारत जहां कपास की ज्यादा खेती होती है वहां ये रोग नहीं पहुंचा है. डॉ. दिलीप मोंगा ने आगे इस रोग के लक्षण और इससे बचाव के हर पहलू पर बात की. जिसका पूरा वीडियो इस लेख में नीचे दिए गए डायरेक्ट लिंक के जरिए देख सकते हैं. डॉ. दिलीप मोंगा ने बताया कि अभी कपास की बुवाई का समय है तो किसान कपास लगाने वाले खेत के आसपास कद्दूवर्गीय फसलें जितना हो सकें उतना कम लगाएं. अगर लगातें भी है तो सफेद मच्छर की रोकथाम का उसपे ध्यान जरूर रखें. इसके साथ ही जो भी सिफारिश वाली दवाइयां है या नीम की दवाइयां है उनका इस्तेमाल करते रहें, ताकि उनके कारण से सफेद मच्छर ना बढ़ें. क्योंकि अगर ऐसा होता है तो ये वहां से विषाणु को लेकर कपास की फसल पे मरोड़िया रोक को फैलाते हैं.
इस लाइव वेबिनार में आगे डॉ. कल्याण गोस्वामी ने डॉ. दिलीप मोंगा के साथ मिलकर कपास की खेती में कीटनाशक के उपयोग को लेकर चर्चा की. वहीं आरडी कपूर ने बताया कि बीज उपचार करना बहुत महत्वपूर्ण है. कपास की खेती करने से पहले भी बीज उपचार कर लेना चाहिए, ताकि शुरू से ही पत्ती कर्ल वायरस को रोका जा सकें. इसके साथ ही आरडी कपूर ने ACFI और कल्याण गोस्वामी को इस विशेष चर्चा का आयोजन करने के लिए शुक्रिया किया और कहा की आगे भी किसानों के हित के लिए ऐसी चर्चाएं होनी चाहिए.
पूरा वेबिनार देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- कपास की बुआई से पहले याद रखने योग्य बातें
तीनों मेहमानों ने कपास की खेती में आ रही चुनौतियों से निपटने के लिए जानकारी साझा करते हुए किसानों को इंश्योर किया कि उनके मन में अगर कपास की खेती करने को लेकर कोई भी सवाल है तो उनकी पूरी तरह से मदद की जाएगी.
जैसा की कृषि जागरण हमेशा से किसानों के हित के लिए कई मुद्दों पर चर्चा का आयोजन करता रहता है. आगे भी हम आपके लिए ऐसी ही जानकारीपूर्ण चर्चाएं लेकर आते रहेंगे.