राष्ट्रीय किसान आयोग (National Commission on Farmers) के प्रथम अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री ने कहा कि सरकार किसानों को फसलों का सही मूल्य नहीं दे रही है. कृषि मंत्री ने ये बातें एक निजी समाचार चैनल के साक्षात्कार कार्यक्रम में कहीं. उन्होंने ये भी कहा कि सरकार स्वामीनाथन आयोग के मुख्य उद्देश्य को पूरा नहीं कर रही है. स्वामीनाथन आयोग ने न्यूनतम समर्थन मूल्य का आधार किसानों के ए2+पारिवारिक श्रम को जोड़कर बनाया है. मौजूदा सरकार इस पर केवल उन्हें 50 प्रतिशत ही लाभ दे रही है. किसानों को उनके हिस्से का 50 प्रतिशत लाभ न देकर सरकार धोखा कर रही है.
सरकार को मौजूदा समय में सी2+50 प्रतिशत सूत्र पर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना चाहिए. उन्होंने कहा यदि सरकार सी-2 फॉर्मूला लागू कर देती है तो किसानों को गेहूं का मूल्य 1800 रुपये प्रति क्विंटल की बजाय 2300 रुपये प्रति क्विंटल मिलने लगेगा.
क्या है स्वामीनाथन आयोग और इसका उद्देश्य?
भारत सरकार ने 18 नवंबर 2004 को किसान राष्ट्रीय आयोग (एनसीएफ) का गठन किया. एनसीएफ की अध्यक्षता प्रोफेसर एम एस स्वामीनाथन ने की और उन्होंने सरकार को 5 रिपोर्ट प्रस्तुत की. पहली रिपोर्ट दिसंबर 2004 में प्रस्तुत की और अंतिम रिपोर्ट 4 अक्टूबर 2006 को प्रस्तुत की गई . रिपोर्ट में किसानों के लिए तेजी से और अधिक समावेशी विकास के सुझाव दिए गए थे जिसको योजना आयोग के दृष्टिकोण में 11वीं पंचवर्षीय योजना के लिए माना गया था . पांचवी रिपोर्ट सबसे महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसमें किसान और कृषि क्षेत्र के समावेशी विकास के सुझाव शामिल थे.
स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट का उद्देश्य खाद्य और पोषण सुरक्षा, कृषि प्रणाली में स्थिरता, किसी वस्तु की गुणवत्ता और लागत प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने जैसे कठोर कदमों क्या उपाय करना.
क्या है ए2, ए2+एफएल और सी2 फॉर्मूला?
बता दें, कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने खेती की लागत के तीन वर्ग बनाए हैं- ए2, ए2+एफएल और सी2.
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ए2 में फसल उत्पाद की बिक्री के लिए किसानों की फसल में लगाई गई सभी तरह के नगद खर्च जैसे- बीज, खाद, ईंधन और सिंचाई आदि की लागत को शामिल करके मूल्य का निर्धारण होता है.
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ए2+एफएल फॉर्मूले ( सूत्र) में किसानों के नगद खर्च के साथ ही फैमिली लेबर (मेहनताना ) को भी जोड़कर मूल्य निर्धारित होता है.
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इसके अलावा सी2 में फॉर्मूले (सूत्र) में खेती के व्यावसायिक मॉडल पर जोर दिया गया है जिसमें कुल नगद लागत और किसान के पारिवारिक परिश्रम के अलावा जमीन का किराया (लगान आदि ) और खेती की रकम पर लगने वाले ब्याज को जोड़ कर मूल्य निर्धारित किया जाता है.