रबी सीजन में रकबा कम होने की आशंका के चलते चना हर दिन मजबूत हो रहा है. वायदा बाजार में चना करीब एक साल के ऊंचे स्तर पर पहुंच चुका है. चालू महीने में चने के दाम 20 फीसदी बढ़कर 4,700 रूपये प्रति क्विंटल पार कर गए हैं. देशभर में चने की बुवाई करीब 33 फीसदी और दलहन फसल की लगभग 28 फीसदी पिछड़ती दिख रही है. कमजोर बुवाई और बेहतरीन मांग की वजह से चने के भावों में आगे भी पूरी तेजी की संभावना है. वायदा बाजार में करीब एक साल के बाद चना 4,70 रूपये की सीमा को पार कर गया.
एनसीडीएक्स कारोबार के दौरान चना बाजार 4,741 रूपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया हालांकि यह 4,700रूपये के नीचे बंद हुआ. इस समय हाजिर बाजार में चने के दाम बढ़कर 4,700 रूपये प्रति क्विंटल के करीब पहुंच गए हैं. हाजिर बाजार में लगभग पूरा साल चना न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे पर ही बिक रहा था. इस बार केंद्र सरकार ने चने का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,400 रूपये प्रति क्विटंल तय किया है.
चना के रकबे में आई कमी
चने के दामों में अचानक से आई तेजी की मुख्य वजह चालू रीब सीजन के रकबे का कम होना माना जा रहा है. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी फसल बुवाई के आंकड़ों के मुताबिक 9 नवंबर तक देश में 27.137 लाख हेक्टेयर में चने की बुवाई हुई है जबकि पिछले साल की सामान्य अवधि में देश में चने का रकबा 40.462 लाख हेक्टेयर पहुंच गया था. चना उत्पादक सभी प्रमुख राज्यों में रकबा कम दिखाई दे रहा है. सबसे अधिक चना उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में रकबा 25.37 फीसद कम है. मध्य प्रदेश में 10 लाख हेक्टेयर में चने की बुवाई हो सकी है. जबकि पिछले साल इस समय तक 13 लाख हेक्टेयर में चने की बुवाई हो चुकी थी.
राज्यों में घट रहा उत्पादन
देश के चने के प्रमुख उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में बुवाई संतोषजनक न होने से उत्पादन कम होने की आंशका जताई जा रही है. इसके चलते करोबारी जमकर चने की खरीद करने में लगे हैं. चना कारोबारियों के अनुसार पिछले कई महीनों से मिलों की तरफ से मांग सुस्त थी जो इस समय रफ्तार पकड़ चुकी है. इसके अलावा त्योहारी सीजन के बाद शुरू हो रहे शादी विवाह के सीजन को देखते हुए मिलों में चने की मांग भी बढ़ने लगी है. घरेलू मांग के साथ ही विदेशी मांग भी बढ़ने की खबरें है. अप्रैल से सितंबर के बीच चने का निर्यात 172 प्रतिशत बढ़कर 120,664 टन हो गया है.
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण