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Updated on: 4 July, 2020 12:00 AM IST

आजकल मांस और अंडे का व्यवसाय तेजी से आगे बढ़ रहा है. इससे किसान और पशुपालक बहुत अच्छा मुनाफ़ा भी कमा रहे हैं. देश के किसान और पशुपालक अपने क्षेत्र के आधार पर पशुपालन करते हैं. इसमें गाय, भैंस, बकरी समेत कई पशु शामिल हैं. ऐसे में एक और व्यवसाय है, जिसको कम जगह और लागत में आसानी से शुरू किया जा सकता है. हम बटेर पालन की बात करे रहे हैं. इससे काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.

आपको बता दें कि देश में व्यवसायिक मुर्गी पालन, बतख पालन, चिकन फार्मिंग, के बाद तीसरे स्थान पर जापानी बटेर पालन का व्यवसाय आता है. इनके अंडे का वजन उसके वजन का 8 प्रतिशत होता है, जबकि मुर्गी का 3 प्रतिशत ही होता है. किसान और पशुपालक इस लेख में बटेर पालन और उसके व्यवसाय संबंधी ज़रूरी जानकारी पढ़ सकते हैं.

बटेर पालन का आवास प्रंबंध

इनका पालन पिंजड़ा और बिछावन विधि से किया जाता है, जो कि हवादार और रोशनीदार होना चाहिए. इसका साथ ही पानी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए. यह अधिक गर्म वातावरण में आसानी रह सकती हैं. एक व्यस्क बटेर को लगभग 200 वर्ग सेमी जगह में रखना चाहिए. जहां इन पर सूर्य की सीधी रोशनी न पड़ रही हो, तो वहीं इनको सीधी हवा से भी बचाना चाहिए. इसके अलावा बटेर के चूज़ों को पहले 2 सप्ताह में 24 घंटे तक रोशनी की जरुरत पड़ती होती है. इन्हें गर्मी पहुंचाने के लिए बिजली या फिर अन्य स्त्रोत की व्यवस्था करनी पड़ती है. अगर व्यस्क बटेर या अंडा देने वाली है, तो उन्हें करीब 16 घंटे तक रोशनी में रखें, साथ ही करीब 8 घंटे तक अंधेरे में रखना जरुरी होता है. इस तरह बटेरों से मांस उत्पादन अच्छा और ज्यादा प्राप्त होता है.

बटेर का आहार

  • करीब 6 से 8 प्रतिशत शीरे का घोल 3 से 4 दिनों के अंतर पर देते रहना चाहिए.

  • इनके आहार में 0-3 सप्ताह तक 25 प्रतिशत और 4 से 5 सप्ताह में 20 प्रतिशत प्रोटीनयुक्त आहार देना चाहिए.

  • इनको मक्का, मूंगफली, सोयाबीन, खनिज लवण, विटामिन्स, कैल्शियम उचित मात्रा में देते रहना चाहिए.

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बटेरों की पहचान करना

अगर कोई किसान या पशुपालक बटेर पालन करना चाहता है, तो उन्हें इनके लिंग की पहचान करना आना चाहिए. सबसे पहले बता दें कि इनकी पहचान मुर्गी चूज़ों की तरह एक दिन की आयु पर होती है, लेकिन अगर चूजें 3 सप्ताह के हैं, तो इनकी पहचान पंखो के रंग के आधार पर की जाती है. बता दें कि नर के गर्दन के नीचे के पंखों का रंग लाल, भूरा, धूसर होता है, तो वहीं मादा की गर्दन के नीचे के पंखों का रंग हल्का लाल और काला होता है. इसके अलावा मादा बटेरों के शरीर का वजन नर से करीब 15 से 20 प्रतिशत ज्यादा होता है.

बटेरों से अंडा उत्पादन

जानकारी के लिए बता दें कि बटेर अपने रोजाना अंडा उत्पादन में लगभग 65 से 70 प्रतिशत हिस्सा दोपहर के 3 से 6 बजे के बीच में करती है. इन अंडों को 3 से 4 बार में उठाना चाहिए. अगर अंडे से बच्चा निकालना है, तो नर और मादा 10 से 28 सप्ताह आयु के बीच के होने चाहिए. इसके साथ ही एक नर बटेर के साथ करीब 2 से 3 मादा बटेरों को रखना चाहिए. ध्यान दें कि बटेरों के चोंच और पैरों के नाखून को काट देना चाहिए, ताकि वह एक-दूसरे को नुकसान न पहुंचा पाएं.

इन कुछ बातों का रखें ध्यान

  • बटेर पालन में कम जगह की आवश्कयता होती है.

  • कम लागत लगती है.

  • यह आकार में छोटे होते हैं, इसलिए इनका रख-रखाव करना आसान होता है.

  • इनके अंडों को 3 से 4 बार में उठाना चाहिए.

  • इनमें करीब 5 सप्ताह में मांस तैयार हो जाता है.

  • इनमें किसी भी तरह का टीकाकरण नहीं कराना पड़ता है.

  • बटेर के मांस और अंडों में वसा. अमीनो एसिड, विटामिन समेत और खनिज लवण की भरपूर मात्रा पाई जाती है.

  • इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है.

English Summary: bater palan: Knowledge of quail farming for meat and eggs business
Published on: 04 July 2020, 04:57 IST

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