Diseases in Makhana Crop: मखाना की फसल किसानों के लिए काफी अच्छी लाभदायक फसलों में से एक है. लेकिन इस फसल से कम लागत में अच्छी उपज पाने के लिए किसानों को कई महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना होता है. दरअसल, मखाना भी अन्य फलों की भांति रोगों द्वारा प्रभावित होता है एवं मखाना की उपज रोग की गम्भीरता के अनुसार घटती है. मखाना के रोगों पर अनुसन्धान कम हुआ है.
बीज, जड़ एवं तना सड़न रोग
मखाना की खेती में यह रोग निम्न कवकों द्वारा उत्पन्न होता है. फ्यूजेरियम प्रजातियां, पीथियम प्रजातियां, फाइटोफ्थोरा प्रजातियां, राइजोक्टोनिया प्रजातियो से प्रभावित बीज सड़ने लगता है, यदि इस प्रकार के बीज में अंकुरण हो भी गया तो, उसकी जड़ें सड़ने लगती है. पौधे की वृद्धि रूक जाती है और अन्ततः पौधे मर जाते हैं. इस रोग द्वारा मखाना के पौधों के निचले भाग भी प्रभावित होते हैं, जिन पर भूरा गोल आकार से लेकर नाव के आकार के धब्बे बनते हैं, जो पौधों में गलन का कारण बनते हैं.
प्रबंधन
यह रोग मृदा एवं बीज जनित है, इसलिए आवश्यक है कि रोगग्रस्त पौधों को इकट्ठा करके जला दें. खेती सदैव साफ जल में करें. दो-तीन साल का फसल-चक्र अपनाएं. क्योंकि यह रोग बीज जनित भी है इसलिए आवश्यक है कि बीज सदैव स्वस्थ पौधों से ही प्राप्त किया जाय. बीज एवं बीज कवच साफ कर लेना अच्छा रहता है. बुआई से पूर्व बीज का उपचार कैप्टान या थिराम (0.3%) नामक कवकनाशक द्वारा शोधित कर लेना आवश्यक है.
पर्ण चित्ती या पत्ती का धब्बा रोग
यह रोग सर्कोस्पोरा एवं फाइटोफ्थोरा नामक कवकों द्वारा उत्पन्न होता है. इस रोग में सर्वप्रथम पत्तियों पर बड़ा अनियमित आकार का धब्बा बनता है, जो शुरूआत में हल्का भूरा एवं बाद में काला पड़ जाता है और बाद में पौधे से अलग हो जाता है. इस प्रकार प्रभावित पौधा अंतर्तः मर जाता है.
प्रबंधन
इस रोग से बचाव हेतु निम्न उपायों पर ध्यान देना चाहिए जैसे,तालाब को स्वच्छ रखना चाहिए. संस्तुति मात्रा में खाद एवं उर्वरक देना चाहिए. बीज का उपचार कवकनाशक थिरॉम या कैप्टान द्वारा करना चाहिए. प्रभावित पौधों पर ब्लाईटॉक्स- 50 @ 3.5 ग्राम/लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करने से रोग की उग्रता में भारी कमी आती है. इस घोल में प्रति लीटर की दर से 1 मिली लीटर तीसी का तेल या स्टीकर या टीपाल भी मिला लेना अच्छा रहता है.
फल सड़न रोग
इस रोग से ग्रसित पौधे देखने में स्वस्थ होते हैं, लेकिन इसके अविकसित फल सड़ने लगते हैं. अभी तक फल सड़न पैदा करने वाले रोगकारको का पता नहीं चला है. कार्बेन्डाजिम और डाइथेन एम 45 के 0.3 प्रतिशत (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) घोल का पत्तियों पर छिड़काव करने से इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है.
झुलसा रोग
यह रोग अल्टरनेरिया टिनुईस नामक रोगकारक के कारण होता है. इस रोग में पौधों में फफूंदी लग जाती है. इस रोग के आखिरी चरण में पत्ते पूरी तरह से झुलसे हुए नज़र आते हैं. पौधों को इस रोग से बचने के लिए कॉपर ऑक्सिक्लोराइड , डाइथेन जेड 78 या डाइथेन एम 45 का 0.3 प्रतिशत( 3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) घोल दो से तीन बार 15 दिन के अंतराल पर छिड़कना चाहिए.
हाइपरट्रॉफी (अति अंगवृद्धि)
इस रोग से ग्रसित पौधों के फूल और पत्ते असामान्य वृद्धि के कारण बुरी तरह खराब हो जाते हैं. हालांकि यह मखाना के पौधों/ Makhana Plants के लिए गंभीर बीमारी नहीं मानी जाती है. पौधों में यह रोग डोसानसियोपसिस यूरेली नाम के फफूंदी के कारण भी होता है. इस रोग के कारण पौधों के निचले हिस्से को नुकसान पहुंचता है और फूलों में बीज भी नहीं बन पाते हैं. मखाना के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए अभी भी प्रयोग किए जा रहे हैं.
पत्तियों का पीला रोग
यह रोग जैंथोमोनस नामक जीवाणु द्वारा होता है. इस रोग का मुख्य लक्षण है, पत्तियों का पीला होना एवं उनकी वृद्धि का रूक जाना. तनों पर काले धब्बे बनते हैं. रोगग्रस्त फलों एवं तनों से भूरे-सफेद स्राव निकलते हैं.
प्रबंधन
इस रोग से बचाव हेतु यह आवश्यक है कि मखाना की खेती/Makhana ki Kheti स्वच्छ जल में की जाय. बुआई हेतु सदैव कवकनाशक द्वारा शोधित बीज का ही प्रयोग किया जाय. स्ट्रेप्टोसाइक्लीन (250 पी0 पी0 यम0)या एग्रीमाइसीन (250 पी0 पी0 यम0) नामक एन्टीबायटीक को ब्लाइटाक्स-50 नामक कवकनाशक (3000 पी0 पी0 यम0) के साथ मिलाकर छिड़काव करना बेहतर रहता है. इसमें 1 मिली लीटर तीसी का तेल/लीटर घोल के हिसाब से मिला देना अच्छा रहता है.