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जलस्तर में कमी है किसान की सबसे बड़ी चुनौती

2019 का चुनाव सर पर है और सब राजनितिक दल जनता के सामने अपनी छवि चमकाने के चक्कर में लगे हुए हैं और किसान भी अपने मुद्दों को लेकर सरकार को घेर रहे हैं परंतु एक बात जो महसूस हो रही है

गिरीश पांडेय
गिरीश पांडेय

2019 का चुनाव सर पर है और सब राजनितिक दल जनता के सामने अपनी छवि चमकाने के चक्कर में लगे हुए हैं और किसान भी अपने मुद्दों को लेकर सरकार को घेर रहे हैं परंतु एक बात जो महसूस हो रही है वो ये है कि अब चुनाव मुद्दों पर न होकर भावनाओं और मार्किटिंग पर लड़ा जा रहा है. सभी राजनितिक दल खूब पैसा बहा रहे हैं. वो चाहे सरकार हो या विपक्ष, सभी ने जनता को गुमराह करने का ठेका ले लिया है. परंतु सरकारें और खुद किसान भी इस मुद्दे को नहीं उठा रहे हैं कि जलस्तर में लगातार कमी आ रही है और अगर यही हालात रहे तो वो दिन दूर नहीं सब सारा जल समाप्त हो जाएगा और उस दिन न तो फसलें बचेंगी और न ही मानवजाति.

भारत में आज कईं किसान और राज्य ऐसे हैं जो वर्षाजल और भूमिगत जल पर निर्भर हैं और यह 3 से 4 हज़ार लीटर जल प्रतिदिन सिंचाई के लिए निकाल रहे हैं. हर सीमा की तरह जलस्तर की भी एक सीमा है यदि लगातार और धड़ल्ले से इसका उपयोग किया जाएगा तो यह ज़्यादा समय तक टिकने वाला नहीं है.

दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्य हिमनद हैं अर्थात यहां पानी बर्फ के पिघलने से आता है. उन्हें वर्षाजल पर निर्भर नहीं होना पड़ता. बर्फ पिघलती है और जल का बंदोबस्त हो जाता है. लेकिन दक्षिण और पश्चिम में बसे राज्य पूरी तरह वर्षा और भूमि के जल पर निर्भर हैं और वह धान, गेहूं, चावल और दूसरी सभी फसलें उगाते हैं. अगर सिर्फ धान की ही बात करें तो 1 किलो धान की सिंचाई के लिए 1 हज़ार लीटर पानी लगता है तो ज़रा सोचिए कि कितने प्रकार की फसलें और किस्में हैं जिनकी सिंचाई की जाती होगी.

क्या है समाधान ?

किसान हो या कोई आम आदमी, यदि उससे सरकार के बारे में पूछें तो वह गाली-गलौच ही करता है परंतु यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि आदमी अपने कामों और ज़िम्मेदारियों को हमेशा दूसरे पर थोपता है. सरकारें कुछ करें या न करें, उनको चुनाव में जवाब मिलेगा परंतु क्या हम अपनी ज़िम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं ?

अगर जलस्तर में कमी आ रही है और हमें इस बात का बोध है तो हमें चाहिए कि किसानों को उन उपायों के बारे में बताया जाए जिससे पानी को बचाया जा सके. जैसे - हमें परंपरागत और प्राचीन किस्मों को बचाना होगा क्योंकि यह किस्में कम जल या ओस में भी पक जाती हैं. जलवायु परिवर्तन और बेमौसम में भी यह तैयार हो जाती हैं. किसानों को इसके लिए जागरुक करना अनिवार्य है.

इसके अलावा किसान को यह भी बताना होगा कि वह वर्षाजल को किस प्रकार बचा सकता है ताकि आगे चलकर वही वर्षाजल उसके काम आए.

English Summary: decrease in water level is crises Published on: 26 March 2019, 03:15 IST

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