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खेती से बेरुखी के दौर में बड़ो की राह पर चलकर लखपति बना यह युवा किसान...

उत्तर प्रदेश में गन्ना खेती बड़े स्तर पर की जाती है जिसके लिए उसे चीनी का कटोरा भी कहा जाता है। कई बार यहां के किसानों ने अपनी सफलता से प्रदेश का गन्ना उत्पादन में बड़ा योगदान दिया है। जी हाँ पीलीभीत के किसान हरप्रीत सिंह औंजला ने भी गन्ने की खेती में नया मुकाम हासिल किया है। इनका कहना है कि बाप दादा ने जो खेती के गुर सिखाए व जो रास्ता दिखाया उस पर चलते हुए उन्होंने वक्त की नज़ाकत को समझकर वैज्ञानिकों की सलाह मानकर आधुनिक तकनीक से गन्ने की खेती सीखी। इस बीच उन्होंने प्रदेश के पीलीभीत जिले के जरा गाँव में स्थित अपने फार्म को गन्ना खेती के लिए प्रसिद्ध कर दिया।

उत्तर प्रदेश में गन्ना खेती बड़े स्तर पर की जाती है जिसके लिए उसे चीनी का कटोरा भी कहा जाता है। कई बार यहां के किसानों ने अपनी सफलता से प्रदेश का गन्ना उत्पादन में बड़ा योगदान दिया है। जी हाँ पीलीभीत के किसान हरप्रीत सिंह औंजला ने भी गन्ने की खेती में नया मुकाम हासिल किया है। इनका कहना है कि बाप दादा ने जो खेती के गुर सिखाए व जो रास्ता दिखाया उस पर चलते हुए उन्होंने वक्त की नज़ाकत को समझकर वैज्ञानिकों की सलाह मानकर आधुनिक तकनीक से गन्ने की खेती सीखी। इस बीच उन्होंने प्रदेश के पीलीभीत जिले के जरा गाँव में स्थित अपने फार्म को गन्ना खेती के लिए प्रसिद्ध कर दिया।

उनसे बातचीत के दौरान मालूम पड़ा कि वह खेती केवल जीवनयापन के लिए नहीं बल्कि उसे दायित्व समझकर एक नए मुकाम तक पहुंचाना चाहते हैं। वह प्रबंधन की नई तकनीकों को अपनाकर कम लागत का रास्ता भी अपना रहे हैं साथ ही अच्छे उत्पादन के लिए हरसंभव कोशिश कर रहें हैं एवं उसके लिए वह बजट बनाकर चलते हैं। यदि कोई नई तकनीक उन्हें समझ में आती है तो उसे अपनाने से वह बिल्कुल भी नहीं चूकते उसे इस्तेमाल कर दूसरों को भी सीखने के लिए प्रेरित करते हैं।

इस बीच गन्ना बुवाई की ट्रेंच विधि अपनाते हैं जिसके अन्तर्गत वह बीज की काफी बचत करते हैं। इस पद्धति के अनुसार एक एकड़ में 12-15 क्विंटल बीज की ही जरूरत पड़ती है जिसे ट्रेंच रिजर से बनी नालियों में एक आँख वाले बीज की बुवाई करते हैं। इस बीच वह अपने पिता के प्रयासों के द्वारा बनाई गई 40 एकड़ के रकबे में खेती करते हैं। इनका मानना है कि एक आँख की बुवाई पद्धति के द्वारा अच्छी उपज मिलती है क्योंकि तीन से चार आँख वाले बीज से तीन ही चार कल्ले निकलते हैं जबकि इसमें बीज बेकार नहीं होता बल्कि उसकी बचत होती है।

वर्तमान समय में वह ट्रेंच की बुवाई के द्वारा गन्ने की लंबाई 18 से 20 फीट पहुँच गई और वजन भी अच्छा मिला। फसल में उर्वरक में वह हरी खाद व जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन वह फसल की बुवाई सितंबर के पहले में करते हैं। यानिकि शरदकालीन सीजन में गन्ने की बुवाई करके वह अच्छी उपज प्राप्त करते हैं। हालांकि गन्ने की फसल में वह सिंचाईं को महत्वपूर्ण मानते हैं। इसके अतिरिक्त वह हरी खाद उपयोग विषय में बताते हैं कि खस्सी आदि को वह खेत में ही जुताई कर देते हैं और गन्ने की पत्तियों को सड़ाकर मल्चिंग की तरह उपयोग करते हैं।

इस बीच गन्ना अधिकारी जिला पीलीभीत ने जानकारी दी है कि हरप्रीत का नाम प्रदेश स्तर पुरुस्कृत किए जाने के लिए भेजा गया है। हरप्रीत सिंह औंजला के इस 15 वर्षीय खेती के दौरान आज वह एक सफल किसान की श्रेणी में शुमार हैं। आलम यह है कि वह अन्य किसानों को प्रेरित करते हैं कि वह आधुनिकतम तकनीकों के द्वारा अच्छी कमाई करें।  

English Summary: UP Sugercane Farmer Published on: 21 April 2018, 05:53 AM IST

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