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जलकुंभी से कमाई करते किसान...

हाइसिंथ यानि की जलकुंभी, पोखरे या तलाब में होने वाले एक तरह का खरपतवार जिसको अधिकांश लोग अब तक अभिशाप ही मानते आए हैं। लेकिन कृष्णा जिले के कुछ प्रगतिशील किसान इस अभिशाप को भी अब वरदान बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

विजयवाड़ा :  हाइसिंथ यानि की जलकुंभी, पोखरे या तलाब में होने वाले एक तरह का खरपतवार जिसको अधिकांश लोग अब तक अभिशाप ही मानते आए हैं। लेकिन कृष्णा जिले के कुछ प्रगतिशील किसान इस अभिशाप को भी अब वरदान बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। सालों साल पोखरों और तलाब में टिड्डी दल की तरह उगने वाले खर पतवार की सफाई में सार्वजनिक पैसे का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता रहा है। सफाई के बाद भी इस बात की गारंटी नहीं रहती कि अगले साल ये खर पतवार नहीं उगेगें या कि तालाब पूरी तरह साफ हो गया। 

सिंचाई विभाग ने इस वित्त वर्ष में पोखरों और तालाब की सफाई और पानी में उगे हाइसिंथ यानि की जलकुंभी के खात्मे के लिए खर पतवार नाशक के छिड़काव के मद में 5.5 करोड़ रुपए का बजट तय किया है। खर पतवार नाशक की मदद से जलकुंभी को पानी में ही नष्ट किया जाता है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया को उस सौर ऊर्जा की बर्बादी के रूप में देखा जाता है जो कि जैव पदार्थ में तब्दील होता है। इसके साथ ही खरपतवार नाशक पारिस्थितीकीय तंत्र के लिए भी हानिकारक साबित होता है। उद्यमी के रूप में पहचान स्थापित कर चुके प्रगतिशील किसान देवीनेनी मधुसूदन राव का मानना है कि योजनाबद्ध तरीके से काम करके जलकुंभियों का उपयोग मूल्यवान जैविक खाद (कंपोस्ट) बनाने के लिए किया जा सकता है जिसको 15 रुपए किलो के दर से बेचा जा सकता है।

साधारण प्रणाली
नियमित डीजल इंजन द्वारा संचालित मशीन के उपयोग से पानी में उगने वाले खर पतवार की कटाई आसानी से की जा सकती है। अपने गावं तेन्नेरु के पास बहने वाले वान्नेरू नाले में राव ने इस मशीन का उपयोग करते हुए जलकुंभियों  को साफ करना शुरू किया। मशीन जलकुंभियों को पानी की सतह से बाहर निकाल कर टुकड़ों में विभक्त कर देता है जिससे इनका उपयोग करना और इनके परिवहन में आसानी होती है। इन जलकुंभियों के कटे हुए टुकड़ों से उच्च श्रेणी के कंपोस्ट बनाए जा सकते हैं। परीक्षणों से पता चला है कि जलकुंभी उर्रवरक अवयवों का उच्च अवशोषक है। जलकुंभी शुद्दीकरण का एक साधन प्रदान करते हैं और बड़े पैमाने पर नष्ट हो जाने वाले उपजाऊ तत्वों को अवशोषित कर, पारिस्थितीकीय तंत्र पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम करते हैं। 

मुक्तापुर गांव के गोडास नरसिम्हा जिन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई अधूरी ही छोड़ दी थी ने इस मशीन का निर्माण किया। रस्सी के निचले हिस्से में फंसे बड़े बड़े हुक के जरिए जलकुंभियों को खिंच कर मशीन में डाला जाता है जिससे उन्हें टूकड़ों में काट दिया जाता है। वो कहते हैं कि सरकार को इस तरह के मशीनों में निवेश कर जलकुंभियों के माध्यम से कंपोस्ट बनाने में किसानों की सहायता करना चाहिए।

जलकुंभियों से बनने वाले उच्च श्रेणी के कंपोस्ट – मुख्य बातें

– जलकुंभियों से निर्मित कंपोस्ट 15 रुपये प्रति किलो बिकते हैं।
– पोखरे और तलाब के ताजे पानी में पैदा होने वाले खरपतवार को जलकुंभी कहते है। इससे पानी का बहाव बाधित होता है, पानी में नाव की गति को बाधा पहुंचती है और मछलीपालन जैसे उद्यम को इससे नुकसान होता है।
– मशीन की मदद से जलकुंभियों को टुकड़ों में काट कर उससे आसानी से उच्च श्रेणी के कंपोस्ट का निर्माण किया जा सकता है।
– जलकुंभियों में प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन अवयव होते हैं इसलिए इसे बायोगैस के लिए एक अवयव के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। 

साभार : इफको लाइव

English Summary: Farmers earning from hyacinth ... Published on: 11 December 2017, 02:38 AM IST

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