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विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया

कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा द्वारा आज दिनांक 5 जून 2018 को डॉ. एस.के. पाण्डेय, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय, रीवा के मार्गदर्शन में ग्राम पिपरा, मऊगंज रीवा में मनाया गया। इस अवसर पर केंन्द्र के प्रमुख डॉ. अजय कुमार पाण्डेय ने अपने उद्यबोधन में बताया कि वृक्ष हमारे पर्यावरण के महत्वपूर्ण एवं अभिन्न घटक हैं। वृक्षों (हरे पेड़-पौधे) के बिना पृथ्वी पर मनुष्य अथवा किसी भी जीव - जन्तु, पशु - पक्षी का जीवन संभव नहीं है परन्तु वर्तमान समय में विकास तथा शहरीकरण के कारण हरे वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है जिससे हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। ज्यों - ज्यों वृक्षों की संख्या घटती जा रही है त्यों - त्यों मानव जीवन पर संकट बढ़ता जा रहा है। पर्यावरण को सुराक्षित रखने के लिये अधिक से अधिक वृक्ष लगाए जाय जिससे पानी एवं शुद्ध आक्सीजन मिलती रहे।

कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा द्वारा आज दिनांक 5 जून 2018 को डॉ. एस.के. पाण्डेय, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय, रीवा के मार्गदर्शन में ग्राम पिपरा, मऊगंज रीवा में मनाया गया। इस अवसर पर केंन्द्र के प्रमुख डॉ. अजय कुमार पाण्डेय ने अपने उद्यबोधन में बताया कि वृक्ष हमारे पर्यावरण के महत्वपूर्ण एवं अभिन्न घटक हैं। वृक्षों (हरे पेड़-पौधे) के बिना पृथ्वी पर मनुष्य अथवा किसी भी जीव - जन्तु, पशु - पक्षी का जीवन संभव नहीं है परन्तु वर्तमान समय में विकास तथा शहरीकरण के कारण हरे वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है जिससे हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। ज्यों - ज्यों वृक्षों की संख्या घटती जा रही है त्यों - त्यों मानव जीवन पर संकट बढ़ता जा रहा है। पर्यावरण को सुराक्षित रखने के लिये अधिक से अधिक वृक्ष लगाए जाय जिससे पानी एवं शुद्ध आक्सीजन मिलती रहे।

डॉ. बी.के. तिवारी, वैज्ञानिक ने बताया कि हमारे देश, प्रदेश तथा गाँवों मे कुछ ऐसी जमनी पड़ी है जहाँ कृषि फसलें उगाना संभव नहीं है। ऐसी जमीन पर खेती करने से लागत अधिक आती है तथा लाभ कम मिलता है। ऐसी सभी भूमियों को पड़ती बंजर भूमि कहा जाता हैं। नदियों तथा नालों के किनारे सड़क, रेलवे लाईन, नहरों के किनारे की उबड, खाबड भूमि पर खेती नहीं की जा सकती है परन्तु ऐसी भूमियों पर वृक्षारोपण करके बढ़ते हुए संकट को कम किया जा सकता है।

हमारे आस-पास का पर्यावरण मानव जीवन के लिए उपयुक्त हो, इसके लिए संपूर्ण भू - भाग के 1/3 (33 प्रतिशत) भाग पर हरे वृक्षों का होना आवश्यक है। वृक्षों से शुद्ध  ऑक्सीजन के अतिरिक्त फल, चारा, जलाऊ लकडी, ईमारती लकडी, गोंद, रेशा तथा विभिन्न प्रकार की औषधियाँ प्राप्त होती हैं इसके अलावा पेड - पौधों की जडे मिट्टी को बाँधे रहती हैं खेती में आधुनिक तकनीकियों का प्रयोग कर उचित मात्रा मे रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए जिससे जल को प्रदूषित होने से बचाया जा सकें।

पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ.अखिलेश कुमार ने कहा वर्तमान में फसल उत्पादन को दो गुना करने की होड़ लगी हुई है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अत्याधिक कीटनाशी, नीदानाशी, रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कृषि में किया जा रहा है जिसके कारण हमारी मिट्टी, हवा, पानी सभी प्रदूषित हो रहे हैं। इन रसायनों के कारण भूमिगत जल भी पीने योग्य नहीं रह गया है। फैक्ट्रीयों तथा ईटों के भठ्ठों की चिमनियों से निकलने वाले धुंए में मिली हुई विषैली गैसे मानव स्वास्थ्य के लिये खतरा बन गयी हैं। जिसके कारण अस्थमा, ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, किडनी फेल होना, ब्रेन हेमरेज तथा कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं।

इस बढ़ते हुए संकट से छुटकारा पाने का एक और केवल एक ही उपाय है कि अधिक से अधिक पेड़ - पौधे लगाये जाये, जैविक खेती एवं जैव कीटनाशियों का प्रयोग करके वातावरण को प्रदूषण मुक्त किया जा सकता है। इन्होने बताया कि इस पर्यावरण दिवस पर हम लोग संकल्प करें कि भारत को पॉलिथीन मुक्त बनाना है।

पौध रोग विशेषज्ञ डॉ. के.एस. बघेल ने कहा कि पेड़-पौधों की संख्या बढ़ाने के लिए बीज गेंद का निर्माण करें जिससे उचित मात्रा में मिट्टी व खाद का मिश्रण बनाकर उसे गेंद के आकार का बनाकर उसके अन्दर बीज डालकर समयानुसार खाली बेकार पड़ी भूमी में डालकर वृक्षों/पेड़ों की संख्या को बढ़ा सकते हैं। इस अवसर पर ग्राम के प्रगतिशील कृषक श्री विकास प्रजापति, श्री अरूणेश द्विवेदी, सरफुद्दीन अंसारी, नारायण प्रसाद द्विवेदी एवं रामप्रसाद प्रजापति उपस्थित रहें। 

English Summary: World Environment Day was celebrated Published on: 05 June 2018, 09:29 AM IST

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