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बकरी पालन कर राशिद ने पेश की मिसाल..

केंद्रीय बकरीपालन अनुसंधान केंद्र मथुरा द्वारा बकरी की प्रमुख प्रजातियों जैसे बरबरी,जमुनापरी के संरक्षण के लिए एक स्कीम बनाकर कार्य करना शुरु किया। जिसका प्रमुख उद्देश्य किसानों को बकरीपालन के लिए प्रशिक्षित कर उन्हं बकरीपालन के माध्यम से अधिक से अधिक लाभ प्रदान करना था।

KJ Staff
Rashid
Goat Farming

केंद्रीय बकरीपालन अनुसंधान केंद्र मथुरा द्वारा बकरी की प्रमुख प्रजातियों जैसे बरबरी,जमुनापरी के संरक्षण के लिए एक स्कीम बनाकर कार्य करना शुरु किया। जिसका प्रमुख उद्देश्य किसानों को बकरीपालन के लिए प्रशिक्षित कर उन्हें बकरीपालन के माध्यम से अधिक से अधिक लाभ प्रदान करना था। इस बीच इन प्रमुख नस्लों से मीट व ब्रीडिंग के जरिए व्यापार का जरिया बन सके इसके लिए वैज्ञानिकों ने किसानों को प्रशिक्षण दिया। जिसके मद्देनज़र  केंद्र ने कई एक किसानों को प्रशिक्षण दिया साथ ही बकरीपालन के जरिए उद्दम स्थापित करने की जानकारी दी।

यह योजना दो प्रमुख उद्देश्य से चलाई गई थी। बकरी की प्रमुख नस्ल जमुनापरी. बरबरी, सिरोही आदि का संरक्षण ,बकरीपालन से उद्दम का विकास इस प्रयास के प्रमुख बिंदु थे। 

इस पूरी परियोजना में केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. एम.के सिंह, एस पॉल, एम.एस डीगे, ए,के दीक्षित, पी.के राउत, नितिका शर्मा, अशोक कुमार आदि ने किसानों के प्रशिक्षण एवं उनके प्रोत्साहन के लिए बढ़चढ़कर हिस्सा लिया।

इस बीच एक बकरीपालन करने वाले किसान की कहानी है जिसने संस्थान द्वारा दिए गए सुझावों के अनुरूप बकरीपालन किया और एक अच्छा बकरीपालन फार्म विकसित किया। उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए सुझाव कई बार किसानों को रास नहीं आते या फिर उनकी समझ नहीं पाते लेकिन इन किसान भाई ने केंद्र के वैज्ञानिकों के अनुसार ही अपने कदम बकरीपालन के लिए बढ़ाए। ये किसान मथुरा, वृंदावन के राशिद खान हैं। इन्होंने साल 2012 में केंद्र से व्यावसायिक बकरीपालन के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया। जिन्हें शुरुआती दौर में शुद्ध बरबरी नस्ल की बकरी प्राप्त करने में काफी मुश्किल हुई। शुरुआत में इस नस्ल की बकरी या तो मर जाती या फिर उनकी वृद्धि ढंग से नहीं हो पाती। इस बीच इन्हीं मुश्किल से निजात पाने के लिए वह फिर से केंद्र पहुंचे। जहां उन्हें इस दौरान बरबरी की शुद्ध नस्लें मिल सकीं। साथ ही बकरीपालन की एक विशेष मल्टीप्लायर स्कीम के तहत उन्हें कई प्रकार की बकरी रख-रखाव एवं स्वास्थ्य, प्रजनन के लिए जानकारी दी गई। राशिद को 3-4 माह के नवजात बकरी शिशु व 6 बकरियों एवं प्रजनन के लिए एक बकरा दिया गया था।

इस दौरान उन्होंने लेबल लगाकर चिन्हित कर लिया। साथ ही नस्लों का डाटा रिकार्ड कराया, बकरियों के दूध उत्पादन क्षमता के साथ-साथ दवा, जानवारों की बिक्री आदि की जानकारी एकत्र की। इसके बाद उन्होंने लगभग 20 प्रतिशत बकरों को विकसित करना पड़ा ताकि नस्लों विकास के लिए प्रजनन करा सकें एवं मीट आदि के लिए उपयोग में लाए जा सकें। इसके साथ-साथ राशिद के फार्म पर आज के समय में 50 बकरियां एवं 45 बच्चे को साथ 3 बकरे हैं। 2016-17 के दौरान उनके फार्म पर सभी जानवर स्वस्थ थे जिससे उनके द्वारा बकरीपालन के दौरान उनके स्वास्थ्य के प्रति किए जा रहे प्रयासों को दर्शाता है। फार्म पर सभी जानवरों को मानक के हिसाब से वजन भी मानक के अनुरूप है। एक स्वस्थ बकरे का वजन 46 से 55 किलोग्राम है जबकि बकरियों का औसत वजन 22 से 28 किलो है। इसके साथ-साथ एक बकरी पर उनका वार्षिक खर्च 7000-7200 रुपए है।

जबकि एक बकरी की बिक्री पर उन्हें 6780 रुपए का फायदा होता है लेकिन बकरियों की संख्या बढ़ाने के मद्देनज़र वह बकरियों की बिक्री नहीं करते हैं। वह अपने फार्म पर बकरियों की संख्या अधिकतम करना चाहते हैं।

English Summary: Rashid's example of the goat rearing. Published on: 20 December 2017, 11:01 PM IST

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