1. Home
  2. ख़बरें

रबी के मौसम में मसूर उत्पादन की अपार संम्भावना

रबी की दलहनी फसलों में मसूर का प्रमुख स्थान है। यह एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दलहनी फसल है जिसकी खेती प्रायः हर राज्य में की जाती है। कृषि वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि धान के कटोरे में दलहन की खेती की भी अपार संभावनाएं हैं। इसकी खेती प्रायः असिंचित क्षेत्रों में धान के फसल के बाद की जाती है। रबी मौसम में सरसों एवं गन्ने के साथ अंततः फसल के रूप में लगाया जाता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने में भी मसूर की खेती बहुत लाभदायक होती है। उन्नतशील उत्पादन तकनीको का प्रयोग करके मसूर की उपज में बढ़ोतरी की जा सकती है।

रबी की दलहनी फसलों में मसूर का प्रमुख स्थान है। यह एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दलहनी फसल है जिसकी खेती प्रायः हर राज्य में की जाती है। कृषि वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि धान के कटोरे में दलहन की खेती की भी अपार संभावनाएं हैं। इसकी खेती प्रायः असिंचित क्षेत्रों में धान के फसल के बाद की जाती है। रबी मौसम में सरसों एवं गन्ने के साथ अंततः फसल के रूप में लगाया जाता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने में भी मसूर की खेती बहुत लाभदायक होती है। उन्नतशील उत्पादन तकनीको का प्रयोग करके मसूर की उपज में बढ़ोतरी की जा सकती है।

जलवायु :

मसूर के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है,ऊष्ण-कटिबंधीय व उपोष्ण-कटिबंधीय क्षेत्रों में मसूर शरद ऋतू की फसल के रूप में उगाई जाती है। पौधों की वृद्धि के लिए अपेक्षाकृत अधिक ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है , अतः भारत में मसूर की फसल रबी की ऋतू में उगाई जाती है पौधों की वानस्पतिक वृद्धि के लिए अपेक्षाकृत उच्च तापक्रम आवश्यक होता है। इस प्रकार फसल वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं 65-85 डिग्री फारेन्हाईट तापक्रम अनुकूल में होता है।

भूमि का चयन:

मसूर की खेती के लिए दोमट मिट्टी काफी उपयोगी होती है। नमीयुक्त मटियार खेत में धान की अगेती फसल के बाद या फिर खाली पड़े खेत में मसूर की खेती आसानी से की जा सकती है।

खेत की तैयारी:

मसूर की खेती के लिए खेत को 2-3 बार देशी हल अथवा कल्टीवेटर से जुताई कर मिट्टी को भूरभूरी बना देते है। बीज की बोआई जीरो टिलेज मशीन से करने के बाद कल्टीवेटर या रोटावेटर से जोताई कर खेत भुरभुरा करना पड़ता है।

मसूर बोने का समय:

दलहन की बोआई के लिए वैसे तो असिंचित क्षेत्र में 15 से 31 अक्टूबर के बीच का समय उपयुक्त माना गया है। किन्तु सिंचित इलाकों में इसकी बोआई का समय 15 नवम्बर तक निर्धारित किया गया है। मसूर की उन्नत प्रजातियां को 15 अक्टूबर से 25 नवम्बर के बीज बुवाई कर देनी चाहिए।

मसूर की खेती के लिए अनुषंसित उन्नत प्रजातियां

छोटे दाने की प्रजातियां

पंत के 639, पी.एल. 406,

एच.यू.एल. 57, के.एल.एस. 218

बडे़ दाने वाली प्रजातियां

पी. एल.77-12 (अरूण),

के-75 (मल्लिका),

जे. एल. -1 3. एल-4076,

जे.एल.-3, आई. पी. एल.-18 (नूरी),एल. 9-2ः

बीज की मात्रा एवं बोने की विधि

छोटे दानों किस्मों के लिए एक हैक्टेयर क्षेत्रफल में बुवाई के लिए 35-40 किलोग्राम बीज जबकि बड़े दानों वाले किस्मों के लिए 50-55 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई के समय किस्मों के आधार पर कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी क्रमशः 25 से.मी. एवं 10 से. मी. रखनी चाहिए।

बीजोपचार:

प्रारम्भिक अवस्था के रोगों से बचाने के लिए बुवाई से पहले मसूर के बीजों को सही उपचार करना जरूरी होता है। इसके लिए ट्राइकोडर्मा विरीडी 5 ग्राम प्रति किलो बीज या कार्बेन्डाजिम 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। बीजोपचार में सबसे पहले कवकनाशी तत्पश्चात् कीटनाशी एवं सबसे बाद में राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने का क्रम अनिवार्य होता है।

उर्वरकों का प्रयोग:

मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग आवश्यतानुसार करना चाहिए। सामान्य परिस्थिति में 20 किलो नाइट्रोजन 40 किलोग्राम फॉस्फोरस एवं 20 किलोग्राम गंधक प्रति हैक्टेयर उपयोग करना चाहिए। प्रायः असिंचित क्षेत्रों में फॉस्फोरस की उपलब्धता घट जाती है। इसके लिए पी. एस. बी. का भी प्रयोग कर सकते हैं। 4 किलो पी एस बी (जैविक उर्वरक) को 50 किलोग्राम कम्पोस्ट में मिलाकर खेतों में बुवाई करें। जिन क्षेत्रों में जिंक एवं बोरॉन की कमी पाई जाती है उन खेतों में 25-30 किलोग्राम जिंक सल्फेट एवं 10 किलोग्राम बोरेक्स पाउडर प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए।

सिंचाई

जिन खेतों में नमी की कमी पाई जाती है वहां एक सिंचाई (बुबाई के 45 दिन बाद) अधिक लाभकारी होती है। खेतों में पानी का जमाव नहीं होना चाहिए। इससे फसल प्रभावित हो जाती है।

खरपतवार नियंत्रण

मसूर के खेत में प्रायः मोथा, दूब, बथुआ, वनप्याजी, बनगाजर आदि खरपतवार का प्रकोप ज्यादा होता है। इसके नियंत्रण के लिए 2 लिटर फ्लूक्लोरिन को 600-700 लिटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से अंतिम जुताई के बाद छिंटकर मिला दंे अथवा पेंडीमिथाइलिन एक किलोग्राम को 1000 लिटर पानी में घोलकर बुवाई के 48 घंटे के अन्दर छिड़काव करना चाहिए।

फसल सुरक्षा प्रबंधन

रोग प्रबंधन:

मसूर के प्रमुख रोग उकठा, ब्लाइट, बिल्ट एवं ग्रे मोल्ड है। इनसे बचाने के लिए फसलों में मेंकोजेब 2 ग्राम लिटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

कीट प्रबंधन:

मसूर के पौधे के उगने के बाद फसल की हमेशा निगरानी रखनी चाहिए जिससे कीड़ों का आक्रमण होने पर उचित प्रबंध तकनीक अपनाकर फसल को नुकसान से बचाया जा सके। कजरा पिल्लू, कटवर्म, सूंडी तथा एफिड कीड़ों का प्रकोप मसूर के पौधे पर ज्यादा होता है।

जैविक कीट नियंत्रण:

5 लिटर देशी गाय का मठा लेकर उसमे 15 चने के बराबर हींग पीसकर घोल दें, इस घोल को बीजों पर डालकर भिगो दें तथा 2 घंटे तक रखा रहने दें। उसके बाद बुवाई करें।

5 देशी गाय के गौमूत्र में बीज भिगोकर उनकी बुवाई करें। दीमक से पौधा सुरक्षित रहेगा इन कीटों को आर्थिक क्षतिस्तर से नीचे रखने के लिए बुवाई के 25-30 दिन बाद एजेडिरैक्टीन (नीम तेल) 0.03 प्रतिशत 2.5-3.0 मि.ली. प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए।

कटाई एवं भण्डारण:

जब 80 प्रतिशत फलियां पक जाएं तो कटाई करके झड़ाई कर लेना चाहिए। भण्डारण से पूर्ण दानों को अच्छी तरह से सुखा लेना याहिए। अगर किसान लोग उन्नत विधि से मसूर की खेती करें तो लगभग 18-20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त कर सकते हैं।

 

भोजराज वर्मा1, श्रवण कुमार यादव 2रामनारायण कुम्हार 3

    शस्य विज्ञान विभाग 1शस्य विज्ञान विभाग 2सूत्रकृमि विभाग3

    राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर।

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)-313001     

English Summary: Extreme embarrassment of lentil production in Rabi season Published on: 18 January 2018, 05:33 AM IST

Like this article?

Hey! I am . Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News