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भैया खेतीबाड़ी में धोखे से बचना है, तो रखिये सबका हिसाब किताब...

किसान भाइयों हमने फसल उगाई और फिर काट ली, उसके बाद उसे बाजार में भी बेच दी. क्या यही है खेती किसानी..? नहीं, बल्कि खेती किसानी का मतलब यह भी है कि उस फसल में हमने कितना खरचा किया और उसके बाद उससे कितनी कमाई हुई यह सब. जी हाँ यह सब भी किसानों को अपनी बेहतरी के लिए समझना होगा.

किसान भाइयों हमने फसल उगाई और फिर काट ली, उसके बाद उसे बाजार में भी बेच दी. क्या यही है खेती किसानी..? नहीं, बल्कि खेती किसानी का मतलब यह भी है कि उस फसल में हमने कितना खरचा किया और उसके बाद उससे कितनी कमाई हुई यह सब. जी हाँ यह सब भी किसानों को अपनी बेहतरी के लिए समझना होगा.

मगर दुख की बात यह है कि अभी भी किसान खेती के प्रति सही से जागरूक नहीं हुए हैं. इस से विदेशों के मुकाबले प्रति हेक्टेयर पैदावार में हम काफी पीछे हैं. नतीजतन, किसान खेती में घाटा झेलने को मजबूर हैं, जिस से खेतीकिसानी छोड़ने के आंकड़े भी बढ़ते जा रहे हैं.

एक अनुमान के मुताबिक, पिछले एक दशक में किसानों की तादाद तकरीबन 1 करोड़ घटी है. सरकारी कमियों को छोड़ दें तो इस के लिए बहुत हद तक किसान भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि किसान खेतीबागबानी की सही तरीके से देखभाल नहीं कर पाते हैं. यदि किसान सही तरह से खेती के तौरतरीके अपनाना शुरू करे तो खेतीबागबानी का यह नुकसान काफी हद तक कम हो सकता है.

खेती किसानी के इंतजाम में ऐसी ही एक जरूरी चीज है लेखाजोखा रखना. लेखाजोखा कितना महत्त्वपूर्ण है, यह हम इस बात से जान सकते हैं कि पिछले दिनों भारतीय किसान यूनियन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिस में पता चला था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक हेक्टेयर खेत में गेहूं की उत्पादन लागत 77,830 रुपए है, जबकि इस गेहूं की बाजार कीमत महज 61,400 रुपए ही है.

आमतौर पर किसान खेती से संबंधित काम का कोई लेखाजोखा नहीं रखते हैं, जिस से यह पता नहीं चल पाता है कि कौन सी फसल से नफा हुआ या नुकसान  वे यह भी नहीं जानते हैं कि उन्हें किस मद में अधिक पैसा खर्च करना पड़ रहा है  किन बिंदुओं पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है  इनसान मेहनत को अहमियत दे या आधुनिक औजारोंमशीनों को.

बदहाली की मार झेल रही किसानी में अब किसानों को खेती भाग्य के भरोसे नहीं, बल्कि व्यावसायिक रूप से करनी चाहिए. इस लिहाज से यह जरूरी हो जाता है कि खेती का बेहतर तरीके से लेखाजोखा हो.

इस से एक ओर जहां फुजूल खर्चों पर रोक लगती है तो वहीं दूसरी ओर आगे की योजना बनाने में भी मदद मिलती है. इस से कीमत संबंधी जोखिम और पैदावार की अनिश्चितता भी कम हो जाती है.

ऐसे रखें लेखाजोखा

खेती का लेखाजोखा रखना बहुत ही आसान काम है. इस के लिए आप को खेत की तैयारी से ले कर अनाज के भंडारण तक में किए गए कुल खर्च और फसल की कटाईमड़ाई के बाद मिली शुद्ध आमदनी का लेखाजोखा रखना पड़ता है. कुल खर्च और कुल आमदनी निकालने के बाद नफानुकसान भी निकाला जा सकता है.

आय की रकम खर्च से जितना ज्यादा होगी, वही शुद्ध आय होगी. वैसे, आय की गणना फसल के मुख्य उत्पाद (जैसे गेहूं, धान वगैरह) की बाजार कीमत और फसल के अवशेष जैसे भूसा, पुआल, रेशा आदि की बाजार कीमत. साथ ही, दूसरा अन्य कोई अवशेष यदि हो तो उस की कुछ बाजार कीमत रखते हैं.

इसी तरह यदि खर्च आमदनी से ज्यादा होगा तो वह शुद्ध नुकसान होगा. इन सब का लेखाजोखा रखने के लिए आप एक डायरी या अपनी सुविधानुसार कोई रजिस्टर या कौपी प्रयोग में ला सकते हैं.

खर्च निकालने का तरीका

दरअसल, खेती के कामों में लगा खर्च 2 तरीके का होता है, जिस में पहला स्थायी खर्च और दूसरा अस्थायी खर्च.

स्थायी खर्च : स्थायी खर्च वह खर्च कहलाता है, जो एक सीमा तक उत्पादन में कमी या बढ़ोतरी होने पर टिके रहते हैं. इस में प्रमुख खर्च शामिल हैं:

* स्थायी संपत्ति (टै्रक्टर, ट्यूबवेल, दूसरे कृषि यंत्र) में लगी रकम पर बैंक की मौजूदा दर से ब्याज की रकम.

* स्थायी संपत्तियों पर सालाना नुकसान व मरम्मत में खर्च की रकम.

* मजदूरों को दी गई मजदूरी.

* अन्य सभी संभावित खर्च, जो छूट गए हों (सभी खर्च रुपए में).

अस्थायी खर्च  : अस्थायी खर्च वे खर्च होते हैं, जो उत्पाद इकाई में कमी या बढ़ोतरी के साथसाथ घटतेबढ़ते रहते हैं. इन में ये खर्च शामिल होते हैं.

* मिट्टी की जांच, खेत की तैयारी (जुताई, निराईगुड़ाई वगैरह) में की गई खर्च की रकम.

* बीज की कीमत. अगर घर का बीज हो तो बाजार की कीमत.

* सिंचाई (डीजल, मरम्मत इत्यादि पर किए गए खर्च की रकम).

* फसल की निराईगुड़ाई पर दी गई मजदूरी की रकम.

* खाद, उर्वरक और जैव उर्वरकों पर की गई खर्च की रकम.

* कीटनाशक और खरपतवारनाशक दवाओं पर की गई खर्च की रकम.

* फसल की कटाई और मड़ाई पर की गई खर्च की रकम.

* फसल से संबंधित दूसरे सभी छूटे हुए संभावित खर्च की रकम.

* अस्थायी खर्च में कुल खर्च की रकम पर बैंक की मौजूदा दर से ब्याज (फसल की अवधि के आधे समय की रकम).

* अन्य सभी संभावित खर्च, जो छूटे हों (सभी खर्च रुपए में).

लेखाजोखा रखने से फायदे

खेती का लेखाजोखा रखने से मदवार खर्च, नफानुकसान तो पता चलता ही है, साथ ही मिले हुए आंकड़ों से किसान तमाम उपयोगी फैसले लेने में कामयाब होंगे. मोटे तौर पर इस के प्रमुख फायदे हैं:

* आय बजटिंग के लिए आप को मार्गदर्शन मिलता है. यदि खेती के कारोबार में शुद्ध मुनाफा कम है तो नई योजना फिर से बनाने या नए कारोबार को चुनने में मदद मिलती है.

* अधिकतम शुद्ध लाभ हासिल करने के लिए सही तरीकों व प्रक्रियाओं को अपनाने या छोड़ने के लिए मजबूर करता है. प्रक्षेत्रीय (खेती) क्रियाओं में संभावित फुजूलखर्जी को रोकने में भी मदद मिलती है.

* ज्यादा फायदा देने वाली फसलों के चुनने में सुविधा.

* प्राप्त आंकड़ों से प्रति इकाई उत्पादन खर्च का पता लगा सकते हैं.

* प्राप्त आंकड़ों के आधार पर लगने वाली लागत और होने वाली आमदनी के पारंपरिक संबंधों को मालूम कर सकते हैं.

English Summary: khetibadi me hisab Published on: 19 April 2018, 04:17 AM IST

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