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जैविक खेती में केंचुआ खाद का महत्व...

केंचुआ को कृषकों का मित्र एवं भूमि की आंत कहा जाता है। यह सेन्द्रिय पदार्थ (आर्गेनिक पदार्थ), ह्यूमस व मिट्टी को एकसार करके जमीन के अंदर अन्य परतों में फैलाता है, इससे जमीन पोली होती है व हवा का आवागमन बढ़ जाती है तथा जलधारण की क्षमता भी बढ़ जाती है। केचंुए के पेट में जो रासायनिक क्रिया व सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया होती है, उससे भूमि में जाये जाने वाले स्फूर (फास्फोरस), पोटाश, कैल्सियम व अन्य सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।

कृषि में केंचुओं का योगदान

केंचुआ को कृषकों का मित्र एवं भूमि की आंत कहा जाता है। यह सेन्द्रिय पदार्थ (आर्गेनिक पदार्थ), ह्यूमस व मिट्टी को एकसार करके जमीन के अंदर अन्य परतों में फैलाता है, इससे जमीन पोली होती है व हवा का आवागमन बढ़ जाती है तथा जलधारण की क्षमता भी बढ़ जाती है। केचंुए के पेट में जो रासायनिक क्रिया व सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया होती है, उससे भूमि में जाये जाने वाले स्फूर (फास्फोरस), पोटाश, कैल्सियम व अन्य सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है। ऐसा पाया गया है कि मिट्टी में नाइट्रोजन  7 गुना फास्फोरस 11 गुना व पोटाश 14 गुना बढ़ता है। तथा केंचुआ प्रतिवर्ष 1-5 मि.मी. मोटी कृषि योग्य भूमि का निर्माण करते है।    

केंचुआ खाद (वर्मी कम्पोस्ट)

अपघटित कार्बनिक पदार्थ को मिलाकर केंचुओं से प्राप्त विष्ठा को वर्मी कम्पोस्ट कहते है। वर्मी कम्पोस्ट एक प्राकृतिक जैविक उत्पाद है, जिसका मृदा व कृषि उत्पाद में किसी प्रकार से हानिकरक अवशेष नहीं रहता है। यह एक जटिल जैव-उर्वरक है एवं अन्य कम्पोस्ट खादों की अपेक्षा अधिक उपयुक्त एवं पोषक तत्वों से भरपूर होता है। केंचुऐं की विष्ठा (मल) में नाइट्रोजन  स्फूर,  पोटाश के अलावा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व पाये जाते है जो मृदा को उपजाऊ बनाते है, ओर पौधे की वृद्धि एवं विकास में सहायक होते हैं।

कृषि में केचुंआ खाद का महत्व

फसलोत्पादन के लिए मृदा की भौतिक संरचना व गुणवत्ता का अच्छा होना अत्यंत आवश्यक है। गुणवत्तायुक्त भूमि होने से मिट्टी में वायु एवं जल का संचरण व जल धारण क्षमता अच्छी होती है। मृदा में कई प्रकार के लाभदायक सूक्ष्मजीव निवास करते है। जिनकी उपस्थिति लम्बे समय तक मृदा को उपजाऊ बनाएंे रखती है। यह पौधे को विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व उपलब्ध कराते है जिससे उत्पादकता में वृद्धि होती है व मृदा संतुलित रहती है जिससे भूमि की टिकाऊ बनी रहती है। वर्मी कम्पोस्ट वाली भूमि में खरपतवार कम उगते है तथा पौधों में रोग कम लगते है। पौधों तथा भूमि के बीच आयनों के आदान-प्रदान में वृद्धि होती है। वर्तमान समय में उत्पादन बढ़ाने के लिए बिना सोचे समझे असंतुलित ढंग से रासायनिक उर्वरको, रासायनिक कीटनाशकों व खरपतवारनाशी के प्रयोग से भूमि की गुणवत्ता का निरंतर हृास हो रहा है जिससे मृदा की टिकाऊ व उत्पादकता पर विपरित प्रभाव पड़ रहा है इन सभी समस्याओं के निराकरण हेतु केंचुआ खाद (जैविक खाद) का खेती में उपयोग कर भूमि की गुणवत्ता व उत्पादकता को बनाएंे रखने का उत्तम विकल्प है।

केंचुआ खाद निर्माण के लिए आवश्यक सामाग्री

गाय का गोबर या स्लरी (15-20 दिन पुराना)

जैविक घटक व बायोमास

घास (हरी या सूखी)

सब्जी या पेड़-पौधों के अपशिष्ट पदार्थ

केंचुआ (उन्नत प्रजाती)

वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि

केंचुए की महत्वपूर्ण प्रजाति - आईसीनिया फेटिडा यूड्रिलस यूजिनी, फेरियोनिक्स एक्सकवेट्स इत्यादि।

केंचुआ के लिए उचित भोज्य पदार्थ - केंचुआ खाद बनाने के लिए सर्वप्रथम गोबर, घास, पुआल, पेड़-पौधों के उपशिष्ट व सड़े-गले सब्जी को छायादार स्थान में सबसे पहले ढेरी बनाकर सड़ाया जाता है, विघटन एवं रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप ढेरी का तापमान बढ़ जाता है। इस स्थिति में घास व गोबर से मिक्सचर पदार्थ को पलटना चाहिए। कुछ दिन बाद इस प्रक्रिया को पुनः दुहराते है।

कल्चर करना - सर्वप्रथम ऊंचे एवं ठण्डे साफ-सुथरे स्थान पर छप्पर बना लें या घने पेड़ों के नीचे छायादार स्थान पर ईंट बिछाकर या जमीन को अच्छे से समतल कर लें, पत्थर या ईंट या पालीथीन शीट से 10 मी. लम्बी, 1 मी. चैड़ी तथा 0.5 मी. गहरी क्यारी बनाते है। लम्बाई आवश्यकतानुसार बढ़ा सकते हैं।

30 दिन पश्चात तैयार भोज्य पदार्थ में केचुआं छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है, क्यारी अथवा टेंक में तैयार पदार्थ को लगभग 3 फीट की ऊंचाई तक क्यारी अथवा टेंक में भरना चाहिए पदार्थ में गोबर की स्लरी को परत ऊपर परत या मिलाकर डालते है, ध्यान रहे गोबर न अधिक नया हो न पुराना (15-20 दिन पुराना गोबर उपयुक्त होता है।)

तैयार पदार्थ में उच्च प्रजाति के केंचुओं को छोड़ा जाता है। केंचुओं को अच्छे से फैलाकर आंशिक रूप से ढंक दिया जाता है। 1-2 दिन में कुछ मात्रा में ऊपरी सतह पर केंचुऐ का मल (विष्ठा) दिखाई देने लगते है, इसे ही केंचुआं खाद कहते है यह चायपत्ती की तर भुरे रंग का दानेदार रहता है। लगभग एक माह पश्चात ऊपरी सतह (8 से 12 इंच मोटाई) से खाद को निकालना प्रारंभ कर देना चाहिए और इसे निश्चित अंतराल में निकालते रहें इस प्रकार गुणवत्तायुक्त केंचुआ खाद तैयार हो जाता है।

केंचुआं खाद उत्पादन हेतु उपर्युक्त दशाएं

ताप - केंचुआ की उपयुक्त बढ़वार एवं प्रजनन हेतु 25-32 सेन्टीग्रेट ताप उपर्युक्त होता है।

नमी - उपयुक्त जल निकास एवं पदार्थ में लगभग 40-50 प्रतिशत नमी।

प्रकाश - सूर्य का प्रकाश पदार्थ पर सीधे नहीं पड़ना चाहिए।

चभ् - 5.0-7.5 चभ् वाले माध्यम में उत्पादन संभव है अथवा पदार्थ का न्यट्रल होना सर्वोत्तम होता है।

सावधानियाँ

टैंक का निर्माण छायादार स्थान पर शेड बनाकर करना चाहिए।

टैंक का तल सख्त होना चाहिए जिससे केंचुए जमीन के अंदर न घुस जाएं व तल में पर्याप्त ढाल होना चाहिए जिससे अनावश्यक जल को निकाला जा सके।

केंचुओं को खाने वाले जीव-जन्तुओं जैसे- चींटी, कीड़े-मकोड़े, मुर्गी एवं पक्षियों से उनकी रक्षा करना चाहिए।

खाद बनाने वाले पदार्थ में कांच, पत्थर, प्लास्टिक, अम्लीय पदार्थ व अन्य पदार्थ जो आसानी से अपघटित न हो निकाल देना चाहिए।

अत्यधिक धुप से केंचुओं का बचाव करना चाहिए।

केंचुआ खाद के लाभ

केंचुआ खाद के प्रयोग से मिट्टी भुरभुरी हो जाती है, जिससे उसमें पोषक तत्व व जल धारण क्षमता बढ़ जाती है व मिट्टी में हवा का आवागमन भी ठीक रहता है व मृदा में हृयूमस की मात्रा बढ़ती है।

दूसरी खादों की तुलना में वर्मी कम्पोस्ट में फसल के लिए आवश्यक पोषक तत्व ज्यादा मात्रा में उपलब्ध होते है।

केंचुआ खाद के प्रयोग से फसल, मौसम एवं अन्य कारकों के आधार पर उत्पादकता में 30-60 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है।

केंचुआ खाद को भूमि में बिखेरने से तथा भूमि में इसकी सक्रियता से भूमि भुरभुरी एवं उपजाऊ बनती है। इससे पौधों की जड़ों के लिए उचित वातावरण बनता है, जिससे उनका अच्छा विकास होता है।

वर्मी कम्पोस्ट से उत्पादित उत्पादन का सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है व उत्पाद का बाजार में अधिक मूल्य भी मिलता है।

वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग कर हम अपनी कृषि लागत को कम कर अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते है।

वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से गांव का स्वावलम्बी विकास हो सकता है। अर्थात् बेरोजगारों को रोजगार प्राप्त हो सकता है।

यह बहुत कम समय में तैयार हो जाता है।

केंचुएं में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीव मिट्टी का चभ् संतुलित करते है।

केंचूआ खाद मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की वृद्धि करता है तथा भूमि में जैविक क्रियाओं में निरंतरता प्रदान करता है।

केंचुआ खाद कृषि उत्पाद की भण्डारण क्षमता को बढ़ाता है।

केंचुआ खाद के लगातार प्रयोग से कीटर एवं बिमारियों की समस्या में कमी आती है व खरपतवार खेत में कम उगते है जिससे इन सभी में होने वाले खर्च में कमी भी आती है।

मृदा की लवणीयता को कम करने में सहायक है।

यह नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करता है।

केंचुआ खाद बनाने में चूंकि गोबर, फसल अवशेष, कुड़ा-करकट व सड़े-गले सब्जियों का उपयोग किया जाता है जिससे गंदगी में कमी आती है व पर्यावरण सुरक्षित व संतुलित रहता है।

केंचुआ खाद के उपयोग से पादप पोषक तत्वों का लीचिंग नहीं होता है।

केंचुआ खाद के प्रयोग से सिंचाई में बचत होती है।

इसके प्रयोग से फलों, सब्जियों एवं अनाजों के स्वाद, आकार, रंग, गुणवत्ता में सुधार एवं उत्पादन में वृद्धि होती है।

केंचुआ खाद व कम्पोस्ट खाद की तुलना

लता वर्मा, एम.एस.सी. (एग्रोनामी)

हेमन्त कुमार, एम.टेक. (एफ.एम.पी.ई.)

English Summary: Importance of earthworm fertilization in organic farming ... Published on: 25 May 2018, 05:11 IST

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