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दिसंबर माह के कृषि कार्य...

कृषि और किसानों के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की खेती-किसानी की विज्ञान सम्मत समसामयिक जानकारियां खेत किसान तक उनकी अपनी मातृ भाषा में पहुंचाई जाएं। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर पौध सरंक्षण, फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सूचनाओं से किसानों को अवगत कराना चाहिए। कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए।

कृषि और किसानों  के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की खेती-किसानी की विज्ञान सम्मत समसामयिक जानकारियां खेत किसान तक उनकी अपनी मातृ भाषा में पहुंचाई  जाएं। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर पौध सरंक्षण, फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सूचनाओं  से किसानों को अवगत  कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए।

उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है।


हेमन्त ऋतु के  माह दिसम्बर यानी मार्गशीर्ष-पौष  में तापक्रम काफी कम हो जाता है, इसलिए ठंड बढ़ जाती है। सापेक्ष आद्रता मध्यम एवं वायुगति शांत रहती है। इस माह औसतन  अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 27 एवं 10.1 डिग्री सेन्टीग्रेड होता  है। वायु गति 4.2 किमी प्रति घंटा के आस-पास  होती है। कुछ स्थानों  में कोहरा-पाला पड़ने की संभावना रहती है। इस माह गुरूघासीदास जयंती, ईद-ए-मिलाद एवं क्रिसमस डे  जैसे महत्वपूर्ण त्योहार जोश और उमंग के साथ मनाये जाते है।  फसलोत्पादन में इस माह नियत समय पर संपन्न किये जाने वाले आवश्यक कृषि कार्य प्रस्तुत है।

गेहूँ:  यदि गेहूँ की बुवाई अब तक न कर सके हों तो इस महीने के पहले पखवाड़े तक अवश्य कर लें। इस समय की बुवाई के लिए पिछेती किस्मों का चयन करें। प्रति हक्टेयर 125 किलोग्राम बीज प्रयोग करें। बुवाई कतारों  में 15-18 सेमी की दूरी पर करें।  बुवाई से 30 दिन के अन्दर एक बार निराई-गुड़ाई कर खरपतवार निकाल दें। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए 2,4-डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत 625 ग्राम प्रति हे. दवा को बुवाई के 35-40 दिन के अन्दर एकसार छिड़काव करें। गेंहू के प्रमुख खरपतवार  गेंहूँसा और जंगली जई की रोकथाम के लिए आइसोप्रोटूरान की 0.75 सक्रिय तत्व 30-35 दिन में या अंकुरण पूर्व पैडीमेथालीन 1.0 किग्रा. सक्रिय तत्व 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

पूर्व में बोये गये गेंहू में नाइट्रोजन की शेष मात्रा दें तथा 15-20 दिन के  अन्तराल से सिंचाई करते रहें। शरद ऋतु की वर्षा होने  पर असिंचित गेंहू में नाइट्रोजन धारी उर्वरक सिफारिस अनुसार गेंहू की कतारों में दे। 

जौः  जौ  की पछेती किस्मों की बुवाई करें। एक हैक्टेयर  के लिए 100-110 किलो बीज लेकर बुवाई कतारों में 18-20 से.मी. की दूरी पर करें। उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के बाद ही करें। समय पर बोई गई फसल में बुवाई के 30-35 दिन बाद पानी लगायें, निराई करें।

तोरिया व सरसों:  तोरिया दिसम्बर के अंतिम सप्ताह से जनवरी के प्रथम सप्ताह तक आमतौर पर पक जाती है। पकी हुई फसल की कटाई करें तथा समय पर बोई गई सरसों में दाने भरने की अवस्था में यदि वर्षा न हो तथा प्रथम पखवाडे में सिंचाई न की हो तो सिंचाई करना चाहिए।

मटरः  समय से बोई गई मटर में फूल आने से पहले एक हल्की सिंचाई कर देना चाहिए। तना छेदक की रोकथाम के लिये बुवाई से पूर्व 3 प्रतिशत कार्बोफ्यूरान की 30 किग्रा. दवा प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए। फसल में भभूतिया रोग के  लक्षण दिखने पर घुलनशील गंधक या केराथिन या कार्बेन्डाजिम के दो छिड़काव करना चाहिए। गेरूआ रोग लगने पर जिनेब या ट्राइडेमार्फ या आक्सीकार्बाक्सिन फंफूदनाशी का दो बार छिड़काव करें।

मसूरः  मसूर की पछेती बुवाई इस माह भी कर सकते हैं। इसके लिए 50-60 किलो बीज प्रति हैक्टेयर डालें। बोने से पहले बीजोपचार करें। एक हैक्टेयर में 15 किग्रा. नाइट्रोजन तथा 40 किग्रा फॉस्फोरस  प्रयोग करना चाहिए। बुवाई कूड़ों में 15-20 से.मी. दूरी पर करनी चाहिए। पूर्व में बोई गई फसल में फूल-फली बनते समय सिंचाई करें। 

बरसीम,लूर्सन एवं जईः बुवाई के  45-50 दिन बाद इन चारा फसलों  की प्रथम कटाई कर लेना चाहिए। इसके बाद 25-30 दिन के  अन्तराल से कटाई करते रहें। भूमि सतह से 5-7 से.मी. की ऊंचाई पर कटाई करें। कटाई के तुरन्त बाद सिंचाई कर देना चाहिए। गर्मी में पशुओं  के  लिए लूर्सन व बरसीम चारे का संरक्षण करें।

गन्नाः शरदकालीन गन्ने में नवम्बर के द्वितीय पखवाडे़ में सिंचाई न की गई हो तो सिंचाई करके निराई-गुड़ाई करें। शरदकालीन गन्ने के साथ राई व तोरिया की सह फसली खेती में आवश्यकतानुसार सिंचाई करके निराई-गुड़ाई लाभप्रद होता है। गेंहूँ के साथ सह-फसली खेती में बुवाई के 20-25 दिन बाद प्रथम सिंचाई करें । गेंहूँ के लिये 30 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की दर से ट्रापडेसिंग के रूप में प्रयोग करें। बसंतकालीन गन्ने की बुवाई हेतु खेत तैयार करें।

तीसी : खड़ी फसल में लीफ ब्लाईट तथा रतुआ रोग के नियंत्रण के लिए 2 ग्राम इंडोफिल एम-45 या 3 ग्राम ब्लाईटाक्स 50 प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें . 

आलू :  आलू लाही रोग के नियंत्रण हेतु रोपाई के 45 दिन बाद फसल पर 0.1 टक्के रोगर या मेटासिस्टोक्स का घोल 2-3 बार 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिये.  पिछात आलू में दिसम्बर तथा जनवरी माह में अधिक ठंड की आशंका होने पर फसल की सिंचाई कर देनी चाहिये . जमीन भिगी रहने पर पाला का असर कम हो जाता है .

आम : आवश्यकतानुसार पौधों में नियमित सिंचाई करें. मधुआ कीट एवं पाउडरी मिल्ड्यू के नियंत्रण के लिए मंजर निकलने के समय बैविस्टिन या कैराथेन (0.2 प्रतिशत) तथा मोनोक्रोटोफ़ॉस या इमिडाक्लोप्रिड (0.05 प्रतिशत) का पहला एहतियाती छिड़काव करें.

लीची : मंजर आने के 30 दिन पहले पौधों पर जिंक सल्फेट (2 ग्रा./लीटर) के घोल का पहला एवं 15 दिन बाद दूसरा छिड़काव करने से मंजर एवं फूल अच्छे होते है.

पपीता : वृक्षारोपण के छ: महीने के बाद प्रति पौधा उर्वरक देना चाहिए . नाईट्रोजन – 150 -200 ग्राम, फ़ॉस्फोरस 200-250 ग्राम, पोटाशियम 100-150 ग्राम. तीनों उर्वरक 2-3 खुराक में वृक्ष लगाने से पहले फूल आने के समय तथा फल लगने के समय दे देना चाहिए.

अमरुद : फल-मक्खी के नियंत्रण के लिए साइपरमेथ्रिन 2.0 मि.ली./ली. या मोनोक्रोटोफ़ॉस 1.5 मिली./ली. की दर से पानी में घोल बनाकर फल परिपक्कता के पूर्व 10 दिनों के अंतर पर 2-3 छिड़काव करें. प्रभावित फलों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए तथा बगीचे में फल मक्खी के वयस्क नर को फंसाने के लिए फेरोमोन ट्रेप लगाने चाहिए.

आँवला : तुड़ाई उपरांत फलों को डाइफोलेटान (0.15 प्रतिशत), डाइथेन एम – 45 या बैवेस्टीन (0.1 प्रतिशत)से उपचारित करके भण्डारित करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है.

पशुपालन : पशु को आहार देने के कुछ मूल नियम: पशु का आहार संतुलित एवं नियंत्रित हो . उसे दिन में दो बार 8-10 घंटे के अंतराल पर चारा पानी देना चाहिए . इससे पाचन क्रिया ठीक रहती है एवं बीच में जुगाली करने का समय भी मिल जाता है. पशु का आहार सस्ता, साफ़, स्वादिष्ट एवं पाचक हो . चारे में 1/3 भाग हरा चारा एवं 2/3 भाग सूखा चारा होना चाहिए. पशु को जो आहार दिया जाए उसमें विभिन्न प्रकार के चारे-दाने मिले हों. चारे में सूखा एवं सख्त डंठल नहीं हो बल्कि ये भली भांति काटा हुआ एवं मुलायम होना चाहिए. इसी प्रकार जौ,चना, मटर, मक्का इत्यादि दली हुई हो तथा इसे पक्का कर या भिंगो कर एवं फुला कर देना चाहिए. दाने को अचानक नहीं बदलना चाहिए बल्कि इसे धीरे-धीरे एवं थोड़ा-थोड़ा कर बदलना चाहिए. पशु को उसकी आवश्यकतानुसार ही आहार देना चाहिए. कम या ज्यादा नहीं . नांद एकदम साफ होनी चाहिए, नया चारा डालने से पूर्व पहले का जूठन साफ़ कर लेना चाहिए. गायों को 2-2.5 किलोग्राम शुष्क पदार्थ एवं भैंसों को 3.0 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम वजन भार के हिसाब से देना चाहिए.

English Summary: Agricultural work of the month of December ... Published on: 30 November 2017, 11:30 IST

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