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पशुपालन में ध्यान देने योग्य जरूरी बातें...

पशुओं को हमेशा साफ सुथरे माहौल में रखना चाहिए. बीमार होने पर पशुओं को सेहतमंद पशुओं से तुरंत अलग कर देना चाहिए और उन का इलाज कराना चाहिए. इस के अलावा पशुपालकों को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए

पशुओं को हमेशा साफ सुथरे माहौल में रखना चाहिए. बीमार होने पर पशुओं को सेहतमंद पशुओं से तुरंत अलग कर देना चाहिए और उन का इलाज कराना चाहिए. इस के अलावा पशुपालकों को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए :

ब्यात के तुरन्त बाद बच्चे के शरीर की साफ - सफाई सूती कपड़े जैसे की तौलिया आदि मोटे कपड़े से करनी चाहिए, तथा नाक की सफाई रूई अथवा गाज द्वारा करनी चाहिए। ब्याने के तुरन्त बाद बछड़े को थोडे़ समय के लिए, उलटा लटकाना चाहिए, ताकि उसका सिर नीचे हो तथा नाक के अन्दर अगर कोई गन्दगी हो तो बाहर आ जाये.

ब्यात के समय अगर ज्यादा समय लग जाता है तो बच्चे को हाईपोक्सिया अथवा म्युकोनियम इन्हेलेशन नामक समस्या हो जाती है इस प्रकार के विकार होने पर इसे तुरन्त आक्सीजन दे अथवा साँस की नली से गन्दगी को चूषण नलिका /सक्सन पाईप द्वारा बाहर निकलवाये अन्यथा उसे निमोनिया नामक बीमारी का खतरा हो जायेगा.

बछड़े या बछिया के जन्म लेते ही उसकी नाभि नाल को बांधकर व नये ब्लेड अथवा विसंक्रमित किये हुए चाकू से काट कर उस पर कोई एंटीसेप्टिक द्रव्य जैसे की जेनसन वायलेट टिंचर आयोडीन, डिटोल, हल्दी पाउडर आदि लगाए तथा 3-4 दिनों तक लगाए जब तक घाव सूख न जाए।

बछड़े / बछिया को जन्म के लगभग 2-4 घंटे के अन्दर माँ का पहला दूध (खीस) अवश्य पिलाये. खीस अथवा दूध की प्रतिदिन मात्रा बछड़े / बछिया के शरीर भर के 1/10 हिस्से के बराबर होनी चाहिये, जिसे बराबर तीन या चार हिस्सों में बाँट कर पिलाना चाहिए।

ब्यात के तुरंत बाद यदि गाय के थन में खीस नहीं है अथवा कम हो तो बछिया / बछड़े को ग्लूकोज का 10 प्रतिशत घोल की 100 मि. लि. मात्रा अवश्य पिलाए, ताकि उसे नवजात हईपोग्लाई शिमिया नामक मेटावालिक रोग न हो सके.

ध्यान रहे की गाय के दूध पर गाय के बच्चे का पहला अधिकार / हक होता है अतः दूध की मात्रा कम होने पर बच्चे को आवश्यक मात्रा में दूध पहले पिलायें तथा अपने आप को बाद में, दूध बनने पर इस्तेमाल करे, अन्यथा दूध की आवश्यक मात्रा न मिलने पर गाय के बछड़े / बछड़ा में मिट्टी अथवा कंकड़ पत्थर आदि खाने की प्रवृति विकसित हो जाती है जिसकी वजह से वे बीमार हो जाते है तथा उनकी बाढ़वार रुक जाती है तथा प्रजनन हीनता का भी सम्भावना हो जाती है।

इक्कीस दिन की उम्र पर पिपराजीन नामक अन्तः कृमी नाशक दवा तीन चम्मच (३० मी.ली.) पिलाए. पहली खुराक के २१ दिन बाद पिपराजीन की दूसरी खुराक लगभग ४० मि. लि. पिलाये तथा 6 महीने के उम्र तक प्रत्येक महीने पर पिपराजीन की खुराक को दोहराव करें।

एक सप्ताह की उम्र पर बच्चे का सींग नाशन करना चाहिये।

तीन माह की उम्र होते ही खुरपका - मुंहपका रोग का टीका लगाए।

बरसात शुरू होने से पहले मई / जून में 6 माह और उससे बड़े प्रत्येक पशु को खुरपका - मुहपका, गला घोटू तथा लगडिया रोग का टीका लगाए।

छ माह के उम्र तक प्रत्येक कटिया / बछिया को संक्रामक गर्भपात नामक रोग का टीका लगाए।

छ माह से अधिक उम्र के प्रत्येक पशु को वर्ष में कम से कम तीन बार फरवरी, जुलाई, एवं अक्तूबर माह में आंतरिक कृमिनाशक दवा दें।

प्रत्येक पशु के शरीर पर मई माह से सितम्बर माह तक प्रत्येक 15 दिनों के अन्तराल पर बाह्य कृमी नाशक दवा लगाए एवं दवा का छिडकाव पशु गृह में भी करें।

चारे का 60-70 प्रतिशत भाग हरा चारा तथा 30-40 प्रतिशत सूखा चारा होना चाहिए।

प्रत्येक वयस्क पशु को प्रतिदिन कम से कम 1-२ किलोग्राम राशन खिलाए।

तीन लीटर से अधिक दूध देने वाले प्रत्येक पशु को प्रत्येक तीन लीटर दूध पर अतिरिक्त 1 किलोग्राम राशन खिलाए।

अफरा से बचाव हेतु आवश्यकता से अधिक राशन या फूली हुई बरसीम न खिलाए।

यदि अफरा हो गया हो तो, आधा लीटर मीठा / खाने वाला तेल में 100 ग्राम काला नमक, 50 ग्राम खाने वाला मिठा सोडा, 50 ग्राम अजवाइन एवं 50 ग्राम हिंग मिलकर पिला दें।

थनैला से बचाव हेतु दूध निकलने से पूर्व तथा बाद में थान को स्वच्छ पानी से धोयें तथा साफ कपडे से पोंछ दें बरसात के दिनों में पानी में लाल दवा (1:1000) मिलाकर थन की गन्दगी साफ करें।

थनैला की जाँच हेतु एक कप पानी में एक चम्मच यह घोल मिला दें यदि दूध जेल बन जाये तो थनैला हो गया है।

कटिया या बछिया का शरीर भर यदि 250 कि.ग्रा. या उससे ज्यादा हो गया हो और वह गर्म नही हो रही हो तो गाभिन करने हेतु 50 ग्राम खनिज मिश्रण, 1 चम्मच कोलायडल आयोडीन तथा 125 ग्राम अंकुरित अनाज प्रतिदिन 20-40 दिन तक खिलाए।

पशु के गर्मी में आने के लगभग 12 घंटे बाद गाभिन करायें।

ब्याने वाले पशु को ब्याने के संभावित दिन से 15 दिन पूर्व दाना तथा खनिज मिश्रण की खुराक कम कर दें

अधिक उत्पादन हेतु दुधारू पशु को अगले ब्याने के संभावित दिनों से 2 महीने पूर्व दूध धीरे धीरे सुखा दें ।

ब्याने के 12 घंटे तक जेर न निकलने के पश्चात् बच्चेदानी में एंटीबयटिकस / एंटीसैप्टिक दवा डलवायें और 30 घंटे बाद ही जेर निकलवाएँ, अन्यथा बच्चेदानी के खराब होने का भय रहेगा।

ब्याने के बाद प्रत्येक पशु को प्रथम 5 दिन तक 100 मि.लि. पोविडोन आयोडीन 1 प्रतिशत बच्चेदानी की सफाई की दवा दिन में दो बार तथा संपूर्ण दुग्ध अवधि में 50 ग्राम खनिज मिश्रण प्रतिदिन अवश्य दें।

ब्याने के 60 दिन के बाद ही पशु को पुनः गाभिन कराने की व्यवस्था करें ।

बीस लीटर से अधिक दूध देने वाले पशु को दिन में तीन दुहें ।

कृत्रिम गर्भाधान, पशु चिकित्सक अथवा प्रशिक्षण प्राप्त इन्सेमिनेर से ही करायें।

सांड से गर्भाधान कराते समय यह ध्यान रहे की सांड द्वारा गाभिन किया जाने वाला उस दिन का प्रथम या द्वितीय पशु हो ।

छ माह से अधिक दिन के गाभिन पशु से लेकर ब्याने के तीन माह बाद तक के पशु को कच्चे फर्श पर ही रखें।

पशुशाला को मच्छर मक्खी से बचाने हेतु दरवाजे एवं खिडकियों पर जाली लगायें।

पशुशाला तथा उसके आसपास दूषित पानी न इकठ्ठा होने दें यदि ऐसा संभव नही है तो उसमे ब्लीचिंग पाउडर अथवा, डीडीटी कर सेवन करें ताकि वहां मक्खी व मच्छर तथा अन्य रोगाणु न पैदा हो सके।

सर्दी के दिनों में ठंढ से तथा गर्मी में लू से बचाव का उपाय समय से करें ।

पशुशाला के आसपास छायादार वृक्ष लगायें।

English Summary: Necessary things to note in animal husbandry ... Published on: 04 December 2017, 11:48 IST

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