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अनुकूल नीतियों से होगी आय दोगुनी

देश की राजनीति में गत लोकसभा चुनाव के दौरान सत्ता परिवर्तन कई मायने में अहम थी। देश ने बड़ी आशा के साथ एक नया प्रधानमंत्री चुना था। खासकर युवा व किसानों ने अपनी उम्मीद से राजग सरकार का चुनाव कर सत्ता में वापस बुलाया। अब सरकार के सामने नई चुनौतियां थीं। कृषि में परंपरागत योजनाओं से ऊपर उठकर किसान की आय दोगुनी करने का लक्ष्य था। सरकार ने भी कुछ नया करने के प्रयास से योजना आयोग को नया रूप देकर नीति आयोग का गठन किया। किसान की आय दोगुनी करने के लिए निरंतर प्रधानमंत्री के दिशा निर्देशन में नीति आयोग प्रयासरत है। कृषि के रूपांतरण एवं आय दोगुनी करने के उद्देश्य से मंत्रालय भी फसल बीमा,राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में परिवर्तन आदि हरसंभव प्रयास कर रहा है। इस बीच किसानों की हितैषी कृषि जागरण ने "आय दोगुनी" के लिए किए जा रहे प्रयास व नीतियों को जानने की महात्वाकांक्षा के फलस्वरूप मशहूर कृषि अर्थशास्त्री व नीति आयोग में सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने अपना बहुमूल्य समय निकालकर हमारी टीम से बातचीत कर सरकार एवं आयोग द्वारा हर संभव प्रयासों के बारे में बताया। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश -

प्रश्न - किसानों की आय दो गुनी व कृषि से अधिकतम उत्पादन आपस में कितनी समानता रखते हैं?

इस प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया कि किसानों की आय व कृषि से अधिकतम उत्पादन दोनों ही अलग विषय हैं। भारत जैसे बड़े देश में राष्ट्रीय स्तर पर छह से सात वर्षों में कृषि  उत्पादन को दोगुना करना असंभव है। इसलिए कृषि नीतियों में सुधार के द्वारा किसानों की आय में यदि एक तिहाई वृद्धि होती है तो इसे आय दो गुनी करने के लक्ष्य में एक सफलता की दृष्टि से देखा जाएगा। आयोग ने मुख्य छह नीतियों का प्रस्ताव किया है। जिनमें उत्पादन,फसल रकबे में वृद्धि,सिंचाईं,गुणवत्ता युक्त बीज उपलब्धता प्रमुख हैं। भारत में हम फसल उत्पादन 45 प्रतिशत भूमि पर ही करते हैं जबकि 60 प्रतिशत भूमि में 7 से 8 महीने के दौरान फसल उत्पादित नहीं की जाती है। हमें फसल अधिक आमदनी के लिए फसलों के रकबे में अवश्य वृद्धि करनी होगी।

प्रश्न - हम हमेशा किसानों की आय बढ़ाने के मद्देनज़र उत्पादन को बढ़ाने की बात करते हैं। क्या खाद्द मुद्रास्फीति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा?

देखिए उत्पादन अधिक होने की दिशा में मूल्य कम हो जाएगा जिससे उन्हें अच्छा लाभ नहीं मिलेगा। इस बीच बाजार में बिचौलियों की मध्यस्तथा खत्म करना चाहिए। जैसे ही बिचौलियों की मध्यस्थता खत्म हो जाएगी किसानों को अपना उत्पाद के बदले अच्छे दाम मिल सकेंगे। जैसे बिचौलियों की आय में कमी होगी तो किसानों को ज्यादा मुनाफा मिलेगा।

प्रश्न- आय दो गुनी करने के लिए किस प्रकार की योजनाओं का प्रावधान किया गया है?

सरकार बेहतर कृषि आदानों को प्रदान कर कृषि से अधिक उत्पादन करने के लिए प्रयत्नशील है। किसानों को अधिक आमदनी प्रदान करने वाली फसलों का उत्पादन करना चाहिए। बागवानी फसलों की खेती करके अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। प्राकृतिक सम्पदाओं जैसे पानी,भूमि के समुचित उपयोग अधिक आय हासिल करने की दिशा में कारगर साबित होंगे।

केंद्र सरकार असरकारक योजनाओं के साथ लक्ष्यप्राप्ति के लिए अग्रसर है। लेकिन राज्य सरकारों को भी केंद्र के साथ मिलकर कार्य करना होगा अन्यथा आय दो गुनी करने का लक्ष्य अधूरा रह जाएगा। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ रुचि में भी भिन्नता बढ़ती जा रही है। जिसके लिए फसलोत्पादन में वर्गीकरण कर आय को चार गुना तक बढ़ाया जा सकता है। किसानों को अधिक मूल्य वाली फसलों को उगाना होगा। यदि सिर्फ अधिक उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा तो मूल्यों में गिरावट की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।

वर्तमान परिस्थितियों में लोगों की भारी संख्या में खेती से रुचि खत्म होती जा रही है। खेती में अपनी रुचि न दिखाकर अन्य रोजगारों को अपना रहें हैं। अर्थात कृषि को अपना पेशा बनाने वाले लोगों के लिए अधिक आमदनी कमाने के लिए अधिक अवसर हैं।

फसलोपरान्त मूल्य संवृद्धि के विषय पर भी किसानों को गंभीरता दिखानी होगी। किसान अपने उत्पाद का उचित वर्गीकरण नहीं करता जिसके फलस्वरूप उसे अच्छा दाम नहीं मिलता। किसानों को बाजार में अपने उत्पाद को वर्गीकृत करके लाना चाहिए। जिसके अनुरूप उसे बाजार में उत्पाद के बदले अच्छे दाम मिल सकें।

केंद्र द्वारा लागू की गई चार महत्वपूर्ण योजनाओं जैसे- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना,परंपरागत कृषि विकास योजना,ई-नाम व मृदा स्वास्थ्य कार्ड कृषि से आय दो गुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में अच्छा कार्य कर रहीं हैं।

प्रश्न - जाहिर है कि कृषि राज्य का विषय है, इसके बावजूद केंद्र और राज्य किस प्रकार आपसी सहमति पर कृषि उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं?

राज्य हमेशा से ही अपने उत्पाद को अपनी सीमा के भीतर बेचते आए हैं। आज के समय में कुछ राज्य दूसरे राज्यों के बीच अपने उत्पादों की बिक्री करते हैं। लचीली राज्य नीति को बनाने का उद्देश्य रखना चाहिए। सभी राज्यों और केंद्र के साथ मिलकर कार्य का लक्ष्य रखना चाहिए। नीति आयोग ने राज्यों से भी केंद्र के साथ मिलकर कार्य करने के लिए दिशा निर्देश मांगे हैं। राज्यों के समक्ष सिंचाईं,उर्वरकों की खपत,मृदा स्वास्थय कार्ड व बीज उपलब्धता जैसे लक्ष्य रखे गए हैं। ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अन्तर्गत केंद्र और राज्य को क्रमश: 60 से 40 के अनुपात में लागत लगाने का प्रावधान है । लेकिन उसे पूर्णतया लागू करने का काम राज्य को करना होगा। कृषि सहकारिता विभाग ने राज्यों में कार्य योजना एवं क्रियान्वन के लिए कमेटियों का गठन किया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ने केंद्र और राज्य की सहभागिता का एक अच्छा उदाहरण है। जिसके अन्तर्गत किसानों द्वारा 2000 करोड़ का प्रीमियम दिया गया है और केंद्र ने क्लेम के रूप में 9000 करोड़ का भुगतान हो गया है साथ ही 1000 करोड़ का भुगतान और प्रस्तावित हो गया है।

प्रश्न - जल्द खराब होने वाले उत्पादों के उचित भंडारण की व्यवस्था के लिए क्या योजनाएं हैं?

खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्रालय के अन्तर्गत भंडारण एवं विनियामक प्राधिकरण अधिनियम में शीतगृहों एवं भंडारण के तहत कई बदलाव किए गए हैं। जिसके तहत किसान अपने उत्पाद को प्राधिकरण से संबद्ध शीतगृहों में रख सकेंगे। शीतगृह की रसीद के द्वारा किसान बैंक से लोन प्राप्त कर सकेंगे। इस योजना से एक राज्य से दूसरे प्रदेश में विपणन किया जा सकेगा। अच्छी भंडारण व्यव्स्था के द्वारा जल्द खराब होने वाले उत्पादों के मूल्य में वृद्धि हो सकेगी। कृषकों को उत्पाद को शीतगृह में भंडारण करना चाहिए जिससे उनकी आय में अधिक वृद्धि हो सके। एक उदाहरण देते हुए बताया कि मध्य प्रदेश में एक बार प्याज के दाम 200 रुपए प्रति किलो हो गया था जबकि उत्तर प्रदेश में प्याज के दाम 700 रुपए प्रति क्विंटल थे। इन परिस्थितियों में एक राज्य को दूसरे राज्य में अपने उत्पाद का विपणन करना चाहिए। किसानों को शीतगृहों में अपने उत्पाद को अवश्य रखना चाहिए।

प्रश्न - सरकार द्वारा बीज उत्पादन एवं वितरण के लिए निजी कंपनियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसे में बीज की गुणवत्ता एवं मूल्य पर किस प्रकार नियंत्रण किया जाएगा?

इस परिप्रेक्ष्य में प्रोफेसर चंद के अनुसार निजी कंपनियों की आपसी प्रतिस्पर्धा से गुणवत्ता अच्छी होगी। यदि इसके लिए अधिक से अधिक कंपनियां बाजार में आएंगी तो बीज के मूल्यों पर नियंत्रण की आवश्यकता नहीं होगी और स्वत: ही मूल्य का निर्धारण हो जाएगा। हमारे पास कपास एवं मक्का जैसे उदाहरण हैं जिनके बीज वितरण में निजी कंपनियों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया है। यदि सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र एक साथ मिलकर इस विषय पर सही दिशा में कार्य करेगा तो अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकेगी। क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा भारी मात्रा में बीज उपलब्ध कराना आसान नहीं होगा।

प्रश्न - नीति आयोग ने सस्टेनबल डेवलेपमेंट गोल 2030 के एजेंडा के तहत देश का वालेंट्री नेशनल रिव्यू प्रस्तुत किया है। भूख सूचकांक में भारत (100वां स्थान) की स्थिति सुधारने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं ?

यद्दपि भारत कृषि उत्पादन का बड़े उत्पादक देशों की श्रेणी में आता है फिर भी देश में भूख एवं अच्छा स्वास्थ्य सबसे अहम समस्याओं में है। देश आयात की तुलना में दोगुना निर्यात करता है जिसमें चावल का निर्यात सबसे अधिक है। लोगों में खरीदने की क्षमता कम होने के साथ-साथ पोषण के लिए जागरुकता भी नहीं है। यही नहीं प्रतिदिन आहार में भी भिन्नता होनी चाहिए ताकि आवश्यक मात्रा में पोषक तत्व उन्हें मिल सके। जिसके लिए नीति आयोग में मशहूर नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. पॉल को नियुक्त किया गया है। जो स्वास्थ्य एवं पोषण पर ध्यान देने के उद्देश्य से कार्य करेंगे।

स्वच्छ एवं पोषक भोजन को उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। जैसे गेहूं में जिंक की मात्रा में वृद्धि कर खेतों में उपलब्ध कराया गया है। इसी प्रकार आयोग ने सुझाव दिया है कि बाजरा,रागी जैसी बायोफोर्टिफाइड जिंसों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिए। जिससे लोगों में स्वास्थ्य का स्तर बढ़ सके।

प्रस्तुति – मोनिका मण्डल, इमरान खान, विभूति नारायण

English Summary: Revenue doubled from favorable policies: Ramesh Chand

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