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कृषि को सही दिशा देने के लिए सरकार को करने चाहिए ये काम

वित्त मंत्री अरुण जेटली इस साल संसद में कह चुके हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार खेती के लक्ष्य को देश में खाद्यान्न सुरक्षा से किसानों की आय सुरक्षा की ओर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है. बेशक यह काफी प्रशंसनीय लक्ष्य है लेकिन इस राह में अभी कई अड़चनें हैं जिनसे पार पाने की जरूरत है.

 

अंकुर अग्रवाल, प्रबंध निदेशक, क्रिस्टल क्रॉप प्रोटेक्शन प्रा. लि.

वित्त मंत्री अरुण जेटली इस साल संसद में कह चुके हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार खेती के लक्ष्य को देश में खाद्यान्न सुरक्षा से किसानों की आय सुरक्षा की ओर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है. बेशक यह काफी प्रशंसनीय लक्ष्य है लेकिन इस राह में अभी कई अड़चनें हैं जिनसे पार पाने की जरूरत है.  

पिछले दो दशकों में सरकार की दिशाहीन नीतियों की वजह से देश के काफी किसानों को आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम उठाने पड़े. वास्तविकता यह है कि 'किसान' और 'ग्रामीण विकास' को इस साल के केंद्रीय बजट में ऐसे क्षेत्र के रूप में रखा गया है जिस पर प्रमुखता से ध्यान दिया जाना है, और हकीकत यह भी है कि इन क्षेत्रों में बजट की हिस्सेदारी अंधेरे कमरे में एक छेद से आती रोशनी की महीन किरण भर है.  

अगर हम अपने किसानों को बचाने के साथ फिर से कृषि को सही राह पर वापस लाना चाहते हैं तो यह जरूरी नीतिगत हस्तक्षेप करने होंगे.  

किसानों के मुनाफा कमाने में इजाफा किया जाए

सबसे जरूरी चीजों में से सरकार को एक काम यह करने की जरूरत है कि वो किसानों को उत्पादकता और मुनाफा बढ़ाने में मदद करे. आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर देशों की तुलना में हमारे देश में प्रति हेक्टेयर औसत उपज बहुत कम है. यह केवल 39 फीसदी है जो चीन से भी कम है. यहां तक की धान की पैदावार के मामले में बांग्लादेश भी हमसे बेहतर प्रदर्शन करता है. इस समस्या से निपटने के लिए हमें किसानों को कृत्रिम रसायनों (एग्रोकेमिकल्स) के विवेकपूर्ण और उचित वक्त पर इस्तेमाल के बारे में शिक्षित करने की जरूरत है. यह फसलों की सुरक्षा व सर्वाधिक पैदावार के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है. जहां विश्व में फसल संरक्षण उत्पादों की प्रति हेक्टेयर खपत 3 किलोग्राम है, भारत में अभी भी यह बेहद कम यानी 0.60 किलो प्रति हेक्टेयर है. किसानों को प्रशिक्षित और खेती की सही तकनीकों के बारे में जागरूक करने के लिए सरकार को निजी क्षेत्रों से हाथ मिलाकर उनके साथ काम करने की जरूरत है.

विविधता को बढ़ावा 

भारतीय किसानों को भी धान और गेहूं पर अपनी निर्भरता छोड़कर अन्य फसलों पर भी ध्यान देने की जरूरत है. शायद उन्हें भारी पैदावार वाली मक्का की हाइब्रिड किस्मों, दलहन और नगदी फसलों पर ध्यान देना चाहिए. लेकिन, जब गेहूं और चावल को न्यूनतम समर्थन मूल्य और सब्सिडी का सहारा मिला है, जो किसानों को इन्हें उगाने के लिए प्रोत्साहित करने वाला ही है. सरकार को चाहिए कि वो अन्य फसलों के लिए भी ऐसे ही लाभ दे.

हालांकि किसानों की सबसे बड़ी समस्या यह रही है कि उन्हें फसल के बदले सही मेहनताना नहीं मिल पा रहा है, जिससे खेती एक मुनाफे के काम में नहीं बदल सकी है. न्यूनतम समर्थन मूल्य को परिस्थितियों के मुताबिक मॉनिटर और संशोधित करने की जरूरत है जिससे किसानों को उनकी फसल का उचित लाभ मिल सके. किसान अक्सर इस बात का रोना रोते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के कम होने के चलते कड़ी मेहनत करके उत्पादन बढ़ाना व्यर्थ है. इसके लिए आधारभूत संरचनाओं के साथ जुड़ने की आवश्यकता है, जैसे मिलिंग सुविधा और नजदीकी बाजार. 

जमीन और पानी की कमी को दूर करना

दूसरी परेशानी जिससे निपटने की जरूरत है वो कृषियोग्य भूमि और पानी की कमी है. बढ़ती आबादी के चलते खेतों के टुकड़े हो रहे हैं. प्रति व्यक्ति उपजाऊ या कृषि योग्य भूमि बहुत तेजी से कम हो रही है. अन्य कृषि मुल्कों की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति पानी भी बहुत कम है. जब खेती के विकास की बात आती है तो पानी सबसे जरूरी और सीमित कारक होता है. भारतीय किसान मानसून पर ही आश्रित हैं और इनमें से 80 फीसदी के हिस्से में काफी कम मात्रा आती है. इसलिए ऐसे किसानों के लिए इन्नोवेटिव और कम लागत वाले सिंचाई के साधन तैयार करना सर्वथा उचित है.

यह वक्त है कि हम सूक्ष्म सिंचाई (माइक्रो इरिगेशन) की ओर कदम बढ़ाएं, जिससे कम मात्रा में उपलब्ध जल संसाधनों के कुशल और समझदारी भरे प्रयोग किए जा सकें. लेकिन शुरुआत में काफी ज्यादा लागत, किसानों को नई तकनीक अपनाने से रोकती है. सरकार को चाहिए कि वो छोटे किसानों को सब्सिडी देने पर विचार करे ताकि वे इन नई तकनीकों को अपनाने में तेजी लाएं. हमें देखना होगा कि क्या मौजूदा सरकार द्वारा एक समर्पित सूक्ष्म-सिंचाई निधि (डेडिकेटेड माइक्रो-इरिगेशन फंड) स्थापित करने का फैसला एक जरूरी बदलाव ला सकेगा और किसानों को मानसून की अनियमितता से आजादी दे सकेगा.

राष्ट्रीय कृषि बाजार को प्रभावी बनाएं

कृषि उत्पादन प्रबंधन समिति (एपीएमसी) का गठन इसलिए किया गया था ताकि किसान अपनी फसल को सरकारी नियंत्रण वाले विपणन केंद्रों में बेच सके. जहां एपीएमसी का उद्देश्य बाजार को विनयमित करना और बाजार की पहुंच बढ़ाना था, इसने अक्सर अपने उद्देश्य से उलट एक व्यवधान की ही तरह काम किया. इसके अलावा एपीएमसी को अभी कई राज्यों में लागू भी नहीं किया गया है. कृषि में निजी क्षेत्र की सहभागिता बढ़ाने के लिए यह बहुत जरूरी है कि इससे जुड़ने (प्रवेश) की बाधाओं को दूर किया जाए.

अब सरकार राष्ट्रीय कृषि बाजार (नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट या ई-नैम) शुरू किया है, जो किसानों के लिए देश में अपनी फसल कहीं पर भी बेचने का एक इलेक्ट्रॉनिक जरिया है. लेकिन इसकी किफायती किसान हितैषी मंच के रूप में अभी तक स्थापना नहीं होना बाकी है. ई-नैम प्लेटफॉर्म के जरिये देश की 1.50 लाख ग्राम पंचायतों को डिजिटल इकोनॉमी से एकीकृत करने के लिए ब्रॉडबैंड से जोड़ने के सरकार के फैसले को भी काफी ज्यादा फॉलोअप की जरूरत है. 

कृषि अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करें 

खेती की उत्पादकता बढ़ाने से रोकने वाली प्रमुख बाधाओं में नई तकनीकों की कमी है. इसका मुख्य कारण नगदी की कमी है. आंकड़े बताते हैं कि चीन की तुलना में भारत, अपनी कृषि जीडीपी का आधा हिस्सा ही विकास और अनुसंधान पर खर्च करता है. यहां तक की बांग्लादेश भी हमसे ज्यादा खर्च करता है. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कृषि विश्वविद्यालयों में नामांकित छात्रों की संख्या काफी कम है और कृषि अनुसंधान करने में उनकी दिलचस्पी और भी कम है. सरकार को चाहिए कि वे निजी क्षेत्र के संस्थानों को कृषि अनुसंधान और विकास में दिलचस्पी लेने के लिए प्रोत्साहित करे. भारत के अनुसंधान और विकास तंत्र में सुधार के लिए कुछ निजी कंपनियां आगे आ रही हैं और इसके लिए सरकारी और शिक्षण संस्थानों से गठजोड़ कर रही हैं. सरकार को इन प्रयासों में जुटी कंपनियों को प्रोत्साहित करने पर ध्यान देने की जरूरत है. भारतीय कृषि में तकनीकी और उसके टूल्स को लागू करने के लिए एक मजबूत संस्थागत और नीतिगत ढांचे पर ज्यादा दबाव नहीं डाला जा सकता. 

जाहिर है कि किसानों को केवल ऋण छूट और न्यूनतम समर्थन मूल्यों की ही जरूरत नहीं है. उन्हें उत्पादन और मूल्य निर्धारण, खरीद और वसूली, बाजार और मुनाफे में सरकारी हस्तक्षेप की जरूरत है. सरकार को यह समझने की जरूरत है कि हमारे किसानों को राहत की नहीं बल्कि न्याय और खेती करने के लिए सक्षम माहौल दिए जाने की आवश्यकता है. जब तक ऐसा नहीं होता, भारतीय कृषि के पनपने की उम्मीद नहीं की जा सकती. 

English Summary: To carry agriculture in the right direction, the government should immediately do this five work Published on: 01 November 2017, 09:02 IST

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