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विशेष : क्या कर्ज माफी ग्रामीण संकट का समाधान है?

क्या क़र्ज़ माफ़ी ग्रामीण संकट का समाधान है? किसान संगठनों की राय पर ग़ौर करें, तो वे इसे आंशिक समाधान (या समस्या के हल की दिशा में जाने वाला एक क़दम) मानते हैं। उनके मुताबिक़ उन पर ऋण इसलिए चढ़ा, क्योंकि उन्हें सरकार उनकी उपज का वाज़िब दाम नहीं दिलवा पाई।

क्या क़र्ज़ माफ़ी ग्रामीण संकट का समाधान है? किसान संगठनों की राय पर ग़ौर करें, तो वे इसे आंशिक समाधान (या समस्या के हल की दिशा में जाने वाला एक क़दम) मानते हैं। उनके मुताबिक़ उन पर ऋण इसलिए चढ़ा, क्योंकि उन्हें सरकार उनकी उपज का वाज़िब दाम नहीं दिलवा पाई। इसलिए वे चाहते हैं कि एकमुश्त क़दम के तौर पर उन्हें पूरी ऋण मुक्ति मिले। साथ ही डॉ एमएस स्वामीनाथन फॉर्मूले के मुताबिक़ उन्हें उनकी उपज का लागत से डेढ़ गुना ज़्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिले। खेती के तमाम जानकार इस पर सहमत हैं कि किसानों की ये दोनों मांगें पूरी हो जाएं, तो कृषि क्षेत्र को बहुत बड़ी राहत मिलेगी।

लेकिन क्या इससे ग्रामीण संकट भी हल हो जाएगा? अगर क़र्ज़ और एमएसपी के पूरे स्वरूप पर ग़ौर करें, तो इस सवाल के किसी सीधे उत्तर तक पहुंचना आसान नहीं लगता। भारतीय रिजर्व बैंक ने किसानों को बैंकों से मिलने वाले ऋण के बारे में जो ताज़ा जानकारी दी है, उससे इस मुद्दे की पेचीदगी पर रोशनी पड़ी है। कृषि संबंधी स्थायी संसदीय समिति को रिजर्व बैंक ने बताया कि किसानों को कुल मिलने वाले छोटे क़र्ज़ का महज 42 फ़ीसदी हिस्सा ही छोटे और सीमांत किसानों को मिल पाता है। जबकि कुल किसानों में लगभग 85 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान हैं। दूर गांवों में रहने वाले किसानों को तो कुल ऋण का तक़रीबन 34 प्रतिशत ही मिल पाता है।

मतलब साफ़ है। क़र्ज़ की समान उपलब्धता नहीं है। बड़े और शहरों के क़रीब रहने वाले किसानों को क़र्ज़ अधिक और ज़्यादा आसानी से मिल जाता है। इसकी एक वजह प्राथमिकता वाले क्षेत्र के लिए ऋण की तय न्यूनतम सीमा की शर्त से जुड़ी है। रिजर्व बैंक का नियम है कि हर बैंक को अपने कुल क़र्ज़ में 18 फ़ीसदी कृषि क्षेत्र को देना होगा। उसमें से 8 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसानों को मिलना चाहिए। यानी तय 18 प्रतिशत के अंदर बाकी 92 फीसदी हिस्सा बैंक किस तरह के किसान को देते हैं, उसको लेकर कोई तय क़ायदा नहीं है।

इस कारण, ख़ासकर प्राइवेट बैंक उन किसानों को ज़्यादा ऋण देते हैं, जिनमें जोख़िम कम हो और जो शहरी या क़स्बाई क्षेत्रों के करीब रहते हों। ज़ाहिर है, बड़े और मध्यम किसानों को क़र्ज़ लौटाने में अधिक सक्षम माना जाता है। इसलिए उन्हें ऋण देना बैंकों की प्राथमिकता बन जाता है। यह मसला दीगर है कि कुल मिलाकर बैंकों की तरफ़ से कृषि क्षेत्र को मिलने वाले ऋण का अनुपात गिरता गया है। बहरहाल, उपरोक्त तथ्य के मद्देनज़र ये प्रश्न विचारणीय है कि क्या किसानों की क़र्ज़ माफ़ी से सभी तरह के किसानों को फ़ायदा मिलेगा? इस सिलसिले में एक और तथ्य को याद कर लेना प्रासंगिक होगा। वो यह कि दस फ़ीसदी से भी कम किसान ही अपनी उपज को एमएसपी पर बेच पाते हैं।

तो क्या यह मानने का आधार बनता है कि क़र्ज़ माफ़ी और एमएसपी सुनिश्चित कर देने भर से पूरे ग्रामीण क्षेत्र में खुशहाली आ जाएगी? अथवा, ये दोनों ग्रामीण खुशहाली की दिशा में महज आंशिक कदम होंगे? बेशक किसान संगठनों ने संपूर्ण ऋण मुक्ति की मांग की है, जिसमें स्थानीय महाजनों से लिए गए क़र्ज़ को भी उन्होंने शामिल किया है। इस ऋण के बोझ से किसान कैसे मुक्त होंगे, इसका तरीका भी उन्होंने बताया है। (ये बात उनके द्वारा तैयार उस विधेयक के प्रारूप में शामिल है, जिस पर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति फ़िलहाल राजनीतिक समर्थन जुटा रही है।) ऐसा हो, तो संभवतः इसका ज़्यादा फ़ायदा छोटे और सीमांत किसानों को मिलेगा। मगर, उससे उनके जीवन में टिकाऊ खुशहाली आएगी, यह मानने का आधार नहीं बनता। इसलिए कि लागत के डेढ़ गुना एमएसपी (अगर लागू हो भी जाए) से उन्हें ज़्यादा फ़ायदा नहीं होगा। खेतिहर मज़दूरों और ग्रामीण आबादी के दूसरे हिस्सों को इससे लाभ पहुंचना तो दूर की बात है।

तो सोचने का मुद्दा यह है कि वो एजेंडा क्या हो, जिसमें पूरी ग्रामीण आबादी के हित झलकें? इस प्रश्न पर नीति-निर्माताओं, किसान संगठनों, सामाजिक संगठनों और बुद्धिजीवियों को जरूर अपना दिमाग लगाना चाहिए। किसान आंदोलनों को अक्सर ‘इंडिया बनाम भारत’ की लड़ाई के रूप में पेश किया जाता है। अब इस बात पर ज़ोर डालने की ज़रूरत है कि अपनी मौजूदा मांगों के साथ ये आंदोलन “भारत” की तरफ़ से अधूरी लड़ाई लड़ रहे हैं। वे पूरे संघर्ष का रूप तभी ग्रहण करेंगे, जब कृषि आधारित पूरी आबादी के हितों के लिए लड़ने का माद्दा वे दिखाएं।

साभार : हिंदकिसान

English Summary: Special: Is debt forgiveness a solution to rural crisis? Published on: 30 May 2018, 05:16 IST

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