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प्याज की खेती से किसान कर सकते हैं अच्छा मुनाफा, जानें कौन सा किस्म है फायदेमंद

किसान भाई प्याज की खेती करके अच्छी कमाई कर सकते हैं। प्याज की खेती रबी और खरीफ में साल में दो बार की जाती है। कई औषधीय गुणों से परिपूर्ण प्याज के बिना दाल हो या सब्जी सभी का स्वाद अधूरा रहता है। यही वजह है

किसान भाई प्याज की खेती करके अच्छी कमाई कर सकते हैं। प्याज की खेती रबी और खरीफ में साल में दो बार की जाती है। कई औषधीय गुणों से परिपूर्ण प्याज के बिना दाल हो या सब्जी सभी का स्वाद अधूरा रहता है। यही वजह है कि प्याज की मांग पूरे साल बनी रहती है। देश भर में प्याज की खेती होने के बावजूद कई बार बाजार में इसकी कीमतें बहुत अधिक हो जाती हैं। हालांकि, कई बार किसानों को कम मूल्य पर भी फसल बेचनी पड़ जाती है। इसके बावजूद प्याज की फसल से इतनी कमाई हो ही जाती है कि किसान को नुकसान नहीं होता है। अक्टूबर से दिसम्बर तक प्याज की पौध बनाए का समय होता है ।

 

महत्वपूर्ण बातें

बीज की मात्र    :    8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

कबजाई का ससमय  : मध्य अक्टूबर से दिसम्बर तक

पौधरोपण का समय  : दिसम्बर से जनवरी

 

भूमि का चुनाव

प्याज की फसल को तकरीबन हर प्रकार की मिटटी में उगाया जा सकता है। लेकिन दोमट या बलुई दोमट मिटटी अधिक उपयुक्त मानी जाती है। पानी के निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। मिटटी का पीएच मान 6-6.5 हो तो बेहतर माना जाता है। खाद के प्रयोग के लिये मिटटी की जांच जरूर करानी चाहिए।

खेत की तैयारी

खेत की पहली जुताई मिटटी पल्टू हल से करने के बाद दो से तीन जुताई देसी हल या हैरो से करनी चाहिए। ऐसा करने से मिटटी के नीचे की कठोर परत टूट जाती है। मिटटी भी भुरभुरी हो जाती है। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा जरूर लगाना चाहिए। इससे खेत समतल और मिटटी महीन हो जाती है। खेत तैयार करने के बाद क्यारियां और सिंचाई के लिये नालियां जरूर बना लेनी चाहिए। इससे सिंचाई करने में सुविधा रहती है।

सिंचाई

प्याज की फसल में सिंचाई की मिट्टी की किस्म, मौसम और फसल की स्तिथि पर निर्भर करती है। रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई जरूर करनी चाहिए। इसके 2-3 दिन बाद फिर से हल्की सिंचाई करनी चाहिए। ऐसा करने से मिटटी में नमी बनी रहती है और पौध अच्छी तरह से लग जाती है। प्याज की फसल की कुल 10-12 बार सिंचाई करनी पड़ती है। कंद (गांठ) बनते समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए। यदि जमीन रेतीली है तो उसमें दोमट मिटटी की अपेक्षा अधिक सिंचाई करनी पड़ती है। यदि सिंचाई अधिक कर दी गई तो बंगनी ध्बा रोग लगने की आशंका बढ़ जाती है। यदि अधिक समय तक खेत सूखा रह गया तो कंद के फटने की समथया हो सकती है। फसल जब पक जाए तो उसकी खुदाई से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।

उन्नत किस्में

हिसार-2 : इस किस्म की प्याज में तीखापन कम होता है, लेकिन इसकी भंडारण क्षमता अकधि होती है। फूल और डंठल कम निकलते हैं। फसल 130-145 दिन में पककर तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ 120 क्विंटल पैदावार हो जाती है।

हिसार प्याज-3 : इसमें भी तीखापन कम होता है। भंडारण की क्षमता अकधि होती है। इसकी खासियत यह है कि यह रोग प्रतिरोधि होती है। फसल 130-140 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ 125 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है।

पूसा रेड : इस किस्म की फसल 125-140 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ 100-120 क्विंटल पैदावार होती है। इनके अलावा एरीफाउंड लाइट रेड, एरीफाउंड वाइट, पूसा माधवी, एरीफाउंड डार्क रेड और एन-53 किस्में भी अच्छी मानी जाती हैं।

बीज पर 50 प्रतिशत अनुदान

सरकार प्याज के बीज पर 50 प्रतिशत अनुदान देती है, जो कि अधिकतम 500 रूपये प्रति किलोग्राम है। एक किसान एक हेक्टेयर के लिये 10 किलोग्राम तक बीज पर अनुदान प्राप्त कर सकता है। एग्रीफाउड लाइट रेड (एलआर) किस्म का एक किलो का बीज 900 रूपये में मिलता है। इस पर 450 रूपये प्रति किलो अनुदान सरकार की ओर से दिया  जाता है । प्याज के बीज को एनएिआरडीएफ सलारू एवं जिला स्तर पर एचएसडीसी बीज बिक्री केंद्र से खरीद सकते हैं।

खाद का इस्तेमाल

प्याज की रबी की फसल में खाद व उर्वरक की मात्र जलवायु एवं मिटटी के प्रकार पर निर्भर करती है। अच्छी फसल के लिये 20-25 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की अंतिम तैयारी के समय मिटटी में मिलानी चाहिए। इसके अलावा 100 किलोग्राम नत्रजन (यूरिया), 60 किलोग्राम फॉस्फोरस व 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए।

पोटाश का उचित इस्तेमाल

नत्रजन (यूरिया) की आधी मात्रा और फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मारा रोपाई से पहले खेत में मिलानी चाहिए। नत्रजन  की शेष मारा को 2 बराबर भागं में बांटकर रोपाई के 30 दिन एवं 45 दिन बाद छिड़कना चाहिए। इसके  अतिरिक्त 50 किलोग्राम सल्फर व 5 किलोग्राम जिंक प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई से पहले खेत में डालना बेहतर रहता है।

निराई गुड़ाई

फसल को खरपतवार से बचने के लिये समय-समय पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त  खरपतवारनाशी जैसे स्टाम्प 30 ईसी का 3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 2-3 दिन बाद छिडकाव करना चाहिए। खड़ी फसल में यदि सकरी पत्ती वाले नींदा अधिक हो तो क्विजालोफोप ईथाइल 5 ईसी के 400 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से स्प्रे करें ।

ऐसे करें खुदाई

प्याज की जब 50 प्रतिशत पौधों की पत्तियां पीली पड़कर  मुरझाने लगें तब खुदाई करनी चाहिए l इसके पहले या बाद में कंडों की खुदाई करने से उनकी भंडारण क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है l

पौध तैयार करने की विधि

बीज को 3 मीटर लंबी, 1 मीटर चौड़ी और 20-25 सेंटीमीटर ऊँची उठी हुई क्यारियां बनाकर बुवाई करनी चाहिए। 500 मीटर वर्ग क्षेत्र में तैयार की गई नर्सरी की पौध एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिये पर्याप्त होती है। प्रत्येक क्यारी में 40 ग्राम डीएपी, 25 ग्राम यूरिया, 30 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश व 10-15 ग्राम फ्यूराडान डालकर अच्छी तरह से मिटटी में मिला लेना चाहिए। सितम्बर से अक्टूबर माह में क्यारियों को तैयार करके क्लोरोपाय्रीफोस (2 एमएल एक लीटर पानी) कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम एक लीटर पानी) को घोलकर क्यारी की मिटटी को तर करके 250 गेज मोटी सफेद पॉलिथीन बिछाकर 25-30 दिन तक मिटटी का उपचार करना चाहिए।

ऐसा करने पर मिटटी का तापमान बढ़ने से भूमि जनित कीटाणु एवं रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। बीजों को क्यारियों में बोने से पहले थायरम या कर्बोसिन, बाविस्टिन नामक फफूंद नाशक दवा से 2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। उपचारित बीजों को 5-10 सेंटीमीटर के अंतर पर बनाई गई कतारों  में 1 सेंटीमीटर की गहराई पर बुवाई करनी चाहिए। अंकुरण के बाद पौध को जड़ गलन बीमारी से बचाने के लिये 2 ग्राम थायरम, 1 ग्राम बाविस्टिन  को एक लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। बुआई के करीब 7-8 सप्ताह बाद पौध रोपने के लिये तैयार हो जाती है।

रोपाई

रोपाई करते समय कतारों से कतारों के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर और पौध से पौध की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। रोपाई करने के बाद हल्की सिंचाई जरूर करनी चाहिए। रोपाई से पहले पौध की जड़ों को 2 ग्राम बाविस्टिन  को 1 लीटर पानी में घोलकर 15-20 मिनट डुबो देना चाहिए। इससे फसल को बैगनी ध्बा रोग से बचाया  जा सकता है।

भंडारण

आमतौर पर खरीफ की तुलना में रबी की प्याज में भंडारण करने की आवश्यकता ज्यादा होती है। फसल के पकने के साथ ही यह बाजार में कम बिकता है। भंडारण से पहले प्याज के कंदं को अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए। पके हुए स्वस्थ चमकदार व ठोस कंदं का ही भंडारण करं। भंडारण नमी रहित हवादार गृह में ही करं। भंडारण में प्याज के परत की मोटाई 15 सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए। भंडारण के समय सड़े-गले कंद समय-समय पर निकलते  रहना चाहिए।

उत्पादन

रबी फसल से औसतन 250-300 क्विंटल प्रति हेवटेयर तक उपज हो जाती है।

 

विक्रम (स्नातकोत्तर, सब्जी विज्ञान विभाग),

संजय (स्नातकोत्तर, कृषि अर्थशास्त्र विभाग),

चौ. च. सिं. ह. कृषि विश्वविध्यालय), हिसार, हरियाणा

 

English Summary: Farmers can make good profits by cultivating onion, know which type is beneficial Published on: 10 July 2018, 07:24 IST

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